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लाइफ का बेस्ट अवॉर्ड, पिता की आंखों में मेरे सक्सेस की चमक

बॉलीवुड एक्टर रवि झांकल ने श्याम बेनेगल सहित कई नामचीन डायरेक्टर्स के साथ किया है काम, थिएटर ने ही दुनिया दिखाई, आज भी रंगमंच पहली प्राथमिकता

Dec 17, 2018 / 06:27 pm

Anurag Trivedi

ravi jhankal

लाइफ का बेस्ट अवॉर्ड, पिता की आंखों में मेरे सक्सेस की चमक

जयपुर. ‘मेरा आर्ट से जुड़ा कोई बैकग्राउंड नहीं था। मेरे पिता बनवारी लाल सरकारी कॉन्ट्रेक्टर थे। मेरा ना तो पढ़ाई की तरफ कुछ खास रूझान था ना ही पिता के काम में। इस दौरान गलत लोगों की संगत हो गई और परिणाम स्वरूप कई बार कक्षा में फेल हुआ। पढ़ाई में होशियार नहीं था, लेकिन मुझमें आत्मविश्वास गजब का था। मैं किसी भी बात से शर्माता नहीं था और ना ही मुझमें स्टेज फीयर था। यहीं कारण था कि मैं अक्सर स्टेज पर गाना गाने लग जाता था, गाने की वजह से रिश्तेदारी में इतना पॉपुलर हो गया कि जानने वाले मुझे अपनी शादी में जरूर बुलाया करते थे। जब ९वीं क्लास में पढ़ रहा था, तब मैंने शहर के दरबार बैंड में गाना शुरू कर दिया। लेकिन बैंड का माहौल पसंद नहीं आया और वहां से दूर होना ही बेहतर समझा। यहां से दिमाग ने यूर्टन लिया और कुछ अलग करने की ठानी।” कुछ इसी तरह अपने जीवन की कहानी शेयर करते हुए पत्रिका से रूबरू हुए जाने-माने एक्टर रवि झांकल।
पत्रिका की मंडे मोटिवेशन सीरीज के तहत रवि ने कहा कि स्कूल के टाइम में आम लोगों की मिमिक्री किया करता था। अपने दोस्तों के बीच आस-पास के लोगों की नकल करना और उनका मनोरंजन करना मेरा स्टाइल बन गया था।
वासुदेव भट्ट की रिहर्सल देखा करता था

जब ११वीं क्लास में था, तब घर के सामने सीनियर थिएटर डायरेक्टर वासुदेव भट्ट अपने नाटक की रिहर्सल किया करते थे। मैं चुपचाप रिहर्सल देखा करता था और अकेले में उसकी प्रेक्टिस करता था। कुछ दिनों बाद मैं भी उनसे जुड़ गया। पहला प्ले था ‘मादा कैक्टसÓ और इसी नाटक ने मुझे थिएटर की अहमियत सिखाई। नाटक ‘शास्त्र देखो शास्त्र” के लिए मुझे अवॉर्ड भी मिला। कॉलेज में जब पहुंचा तो मेरे पास फीस जमा करवाने के लिए पैसे नहीं होते थे, लेकिन थिएटर के अनुभव से मुझे रेडियो पर काम मिलना शुरू हो गया। महीने में दो शो करता था और ५० रुपए मिल जाया करते थे, यह उस समय की काफी अच्छी रकम थी।
भानुभारती ने सिखाया ऑर्गनाइज्ड थिएटर
कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वरिष्ठ रंगकर्मी भानुभारती यूनिवर्सिटी में आ गए थे और हम उनसे जुड़ गए। इसके बाद उन्होंने हमारे टैलेंट को निखारा। बॉडी पॉश्चर्स से लेकर मूवमेंट और एक्सप्रेशंस सहित हमें एक्टिंग और बॉडी लैंग्वेज के बेसिक्स समझाए। साथ ही हमें ऑर्गनाइज्ड थिएटर की अहमियत समझाई और सिखाई। मैंने यूनिवर्सिटी से एमए किया और भानुजी ने मुझे एनएसडी के लिए प्रेरित किया। उस समय मेरे सहित पांच स्टूडेंट्स ने एनएसडी के एडमिशन के लिए ट्राई किया और गुरू की मेहनत की वजह से सभी को एडमिशन मिल गया। मैंने एडमिशन फीस जुटाने की कोशिश की, लेकिन ४०० रुपए तक आते बात रूक कई। एडमिशन के लिए १४०० रुपए चाहिए थे, जो कि नहीं जुटा पा रहा था। फिर तत्कालीन कल्चरल सेक्रेटरी ने मेरी समस्या सुनी और उसका हल भी निकाला। उन्होंने कहा कि विभाग पुस्तकों के लिए दो हजार रुपए दे देगा। इसके तहत विभाग ने न सिर्फ मेरी बल्कि साथी स्टूडेंट्स रवि चतुर्वेदी, सुनील सिन्हा और राजेश सेठ को भी एडमिशन के लिए मदद की। हमारे साथ जयरूप जीवन भी एनएसडी पहुंचे थे।
पिता के लिए कुर्ता और मां के लिए साड़ी
एनएसडी में पढ़ाई के दौरान ही मुम्बई में काम करना शुरू कर दिया था। ग्रेजुएशन के बाद रेपेट्री जॉइन कर ली। यहां से जो पैसा मिला उससे पिता के लिए कुर्ता-पायजामा और मां के लिए साड़ी लेकर गया। मेरे काम को देखकर पिता बहुत खुश थे, उन्होंने उस वक्त कहा था कि मैंने तुम्हारी पढ़ाई में मदद नहीं की, मैंने तुम्हें ताना ही दिया कि तुम सिर्फ ढपली बजाते रहोगो, लेकिन आज तुमने मेरा नाम रोशन कर दिया। पिता की आंखों में जो खुशी थी, वो मेरे लिए आज भी किसी बड़े अवॉर्ड से कम नहीं है।
एक छोटी सी कसक

आज देश के नामचीन डायरेक्टर्स के साथ कई सुपरहिट फिल्में कर चुका हूं, लेकिन मेरे लिए श्याम बेनेगल के साथ काम करना सबसे खास रहा है। थिएटर से अभी भी मेरे कनेक्शन है और जयपुर व मुम्बई में लगातार काम कर रहा हूं। लेकिन खुद के शहर में कुछ लोग अपने ही थिएटर को निशाना बना रहे हैं, परिणाम यह है कि अन्य जगहों पर हमारे शहर का नाम खराब हो रहा है। एेसे में अब नए रंगकर्मियों को जयपुर थिएटर के लिए काम करना चाहिए और उसे मजबूत बनाना चाहिए। मैं हमेशा यहां के रंगकर्मियों और थिएटर के लिए खड़ा रहूंगा।

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