scriptश्योपुर में 400 साल पुरानी है गणगौर मेले की परंपरा | The tradition of the Gangaur fair is 400 years old in Sheopur. | Patrika News
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श्योपुर में 400 साल पुरानी है गणगौर मेले की परंपरा

श्योपुर में 400 साल पुरानी है गणगौर मेले की परंपराकभी किले में लगता था मेला जहां राजा बैठकर देखते थे गणगौर की सवारी, अब सूबात कचहरी पर होता है आयोजन

श्योपुरApr 09, 2019 / 08:37 pm

jay singh gurjar

sheopur

श्योपुर में 400 साल पुरानी है गणगौर मेले की परंपरा

श्योपुर,
अखंड सुहाग की कामना के साथ मनाया जाने वाला गणगौर पर्व यूं तो राजस्थान का मुख्य त्योहार है, लेकिन इसी संस्कृति में रचे-बसे होने के कारण श्योपुर में भी गणगोर न केवल पारंपरिक रूप से मनाया जाता है, बल्कि गणगौर मेले का भी आयोजन होता है। हालांकि समय के साथ गणगौर मेले की चमक कम हो रही है, लेकिन मेले की ये परंपरा बीते 400 सालों से बदस्तूर जारी है।
इतिहासकार और पुरातत्वविद् कैलाश पाराशर बताते हैं कि राजस्थान के इस त्योहार पर मेले की शुरुआत लगभग 400 साल पूर्व गौड़ राजाओं के समय हुई थी। तत्समय मेले का आयेाजन किले में होता था और गुरुमहल के नीचे की ओर स्थित बाजार में गणगौर की सवारियां रखी जाती थी, जहां राजा स्वयं आकर बैठते थे। बाद में सिंधिया रियासत के दौरान गणगौर की सवारियां किले के नीचे बैठने लगी और फिर यहां सूबात कचहरी(वर्तमान में भी यहीं) पर ये मेला आयोजित किए जाने लगा। सिंधिया रियासत के समय गणगौर मेले के दौरान सूबा साहब(कलेक्टर) बैठते थे। आजादी के बाद मेले का आयोजन स्थानीय समितियों के हाथों में आ गया। यही वजह है कि बीते 400 सालों से गणगौर मेला और गणगौर की सवारियां निकाले जाने की परंपरा चल रही है।
पाराशर कहते हैं कि पूर्व में राजा और सिंधिया रियासत द्वारा गणगौर की सवारियां निकाली जाती थी, लेकिन बाद में विभिन्न मोहल्लों द्वारा गणगौर निकाली जाती है। इसी के तहत भूरी पाड़ा, पचरंग पाड़ा, टोड़ी बाजार, चौपड़ आदि की गणगौर पहले दिन मोहल्लों में ही बैठती हैं और दूसरे व तीसरे दिन सवारी निकलती है। मेले में विभिन्न स्वांग भी आयोजित किए जाते हैं।
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