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छतरपुर

विष्णु और लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए मनाई आंवला नवमी

आवंला की पूजा कर पेड़ के नीचे बैठकर किया भोजन

छतरपुरNov 18, 2018 / 11:56 am

Dharmendra Singh

celibrating akshay navmi

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छतरपुर। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को छतरपुर में महिलाओं ने अक्षय नवमी का त्योहार मनाया। इसे आंवला नवमी भी कहते हैं। आंवले के पेड़ की पूजा की गई और उसके नीचे बैठकर खाना खाया गया। ऐसा माना जाता है कि, आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिव का निवास होता है, यही वजह है कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। ऐसा करने पर इंसान की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
आंवला नवमी की कथा
काशी में एक नि:संतान धर्मात्मा वैश्य रहता था, एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार किया ,लेकिन उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हो गया और लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी। इस पर वैश्य कहने लगा तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है। वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी,जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। तभी से इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ गया।
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