नई तकनीक का नाम अल्ट्रा-थिन कार्बन नैनोट्यूब है। इसके जरिए समुद्र के खारे पानी को पीने लायक बनाया जा सकता है। इससे वैश्विक स्तर पर लोगों को पानी की कमी से निजात दिलाना संभव होगा। खासतौर से अरब देशों के लोगों के लिए यह तकनीक वरदान साबित हो सकता है।
अल्ट्रा-थिन कार्बन नैनोट्यूब तकनीक की खोज उत्तर-पूर्व विश्वविद्यालय अमरीका के वैज्ञानिकों ने की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इसके बल पर समुद्री जल से खारेपन को दूर करना संभव है। नैनोट्यूब का आकार 0.8 नैनोमीटर व्यास है। इसकी पानी में पारगम्यता अभी तक उपलब्ध तकनीक से कई गुना ज्यादा है। नैनोट्यूब का ढांचा मानव बाल की तुलना में 50,000 गुना ज्यादा पतला है।
नैनेट्यूब का सूक्ष्म रोमकूप नमक के आयनों को पूरी तरह से ब्लॉक कर देता है। लारेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी (एलएलएनएल) के शोधकर्ता राम्या तुनुगुंतला का कहना है कि अल्ट्रा-थिन कार्बन नैनोट्यूब एक प्रभावी संरचनात्मक तकनीक है। यह तकनीक एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होगा, क्योंकि इसका परिणाम काफी उत्साहवद्र्धक है।
प्रिंसिपल इनवेस्टीगेकर का कहना है कि नैनोट्यूब आण्विक ट्रांसपोर्टेशन और नौनोफ्लूइडिक्स के अध्ययन के लिए एक अनोखी तकनीक है। इस तकनीक के बल पर एक सिंथेटिक वाटर चैनल तैयार करना संभव हुआ, जो नेचुरल वाटर से भी बेहतर पानी देने में सक्षम है। इसका नौनोमीटर साइज पानी को न केवल साफ कर देता है, बल्कि समुद्री पानी से खारेपन को भी दूर कर देता है। यही कारण है कि पेयजल संकट से राहत दिलाने के दावे किए जा रहे हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्लोबल स्तर पर फ्रेश वाटर की मांग की तेजी से बढ़ रही है। हर साल वैश्विक आबादी में करोड़ों नए मेहमान जुड़ जाते हैं। यानी आगामी दशकों में पेयजल संकट बढऩे की संभावना ज्यादा है। यह स्थायी विकास के लिए खतरा है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से यह खतरा और बढ़ता जा रहा है। इससे ४ अरब लोगों के सामने पेयजल का गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
वर्तमान में जिस वाटर प्यूरीफाई का प्रयोग होता है, वह मेम्ब्रेन व पोर्स के जरिए होता है, जो पानी साफ कर प्रोटीनयुक्त पानी उपलब्ध कराने में सक्षम है। लेकिन इसकी क्षमता समुद्री पानी के खारेपन को दूर करने की नहीं है। जबकि नैनोट्यूब की पारगम्यता काफी ज्यादा है। नैनोट्यूब की व्यवस्था में कार्बन परमाणुओं से बनी खोखली संरचना मानव बाल की तुलना में कई गुना ज्यादा पतली है।
अल्ट्रा-थिन कार्बन नैनोट्यूब पानी के अणुओं के परिवहन और नैनोफ्लुइडिक्स का अध्ययन करने के लिए अनूठा और कारगर मंच साबित हो रहा हैं। तकनीक को मिले बढ़ावा
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक की मदद से इस बात की संभावना बढ़ी है कि वैश्विक स्तर पर पेयजल संकट से निजात दिलाया जा सकता है। यह तभी हो सकता है कि अल्ट्रा-थिन कार्बन नैनोट्यूब तकनीक को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा मिले और समुद्री पानी का इस तकनीक के जरिए इस्तेमाल किया जाए।
पृथ्वी की सतह का लगभग 71त्न हिस्सा पानी से ढंका है। महासागरों में पृथ्वी पर उपलब्ध पानी का 96.5त्न हिस्सा है। समुद्र में पानी के कुल आयन की हिस्सेदारी 90त्न है। केवल 3.5त्न पानी बर्फ, नदियों, झीलों व ग्लेशियरों में है, जो वर्तमान में मानवीय उपयोग के लायक है।