उधर, आमतौर पर रात के समय शांत रहने वाली सीमावर्ती इलाके की सड़कों पर अंधेरा होने के साथ ही सुरक्षा बलों की चहल पहल बढ़ गई है। सुरक्षा बल अंधेरा होने के साथ ही अपने नाके लगाते है तथा बॉर्डर की तरफ जाने वाले हर वाहन की बारीकी से जांच कर रहे है। जांच व तलाशी का यह सिलसिला प्रात: चार बजे तक जारी रहता है।
सीमा से सटे गांवों में गुवाड़ एक बार फिर आबाद से हो गए है। चौकियों व गुवाड़ों पर बैठे लोगों की जुबान पर बस एक ही सवाल है कि बदला कब लिया जाएगा। रात के समय खेतों में पानी लगाने या रखवाली के लिए जाने वाले ग्रामीणों के लिए भले ही यह दुविधा भरा है लेकिन सुरक्षा बलों के साथ हर कोई सहयोग को तत्पर है। गांवों की गुवाड़ पर भी कश्मीर के पुलवामा हमले का ही जिक्र है।
चुल्हा चौका करने वाली महिलाएं हो या फिर स्कूल जाने वाले बच्चे। खेतों में काम करने वाला युवा हो या फिर चौकी पर बैठकर आराम कर रहे बुजूर्ग। सबके जेहन में पुलवामा हमले के अलावा दूसरी बात नहीं है। युवाओं का मन टटोलते ही उनमें केवल गुस्सा ही दिखाई देता है।
सीमा से सटे गांव खाटां निवासी वीरेन्द्र भादु ने बताया कि इस बार अगर युद्ध हुआ तो कोई भी गांव छोडऩे को तैयार नहीं है। चक 41 पीएस निवासी शमीरसिंह बराड़ कहते है कि क्रूरता की हद होती है। करारा जवाब दिया जाना चाहिए। इस बार अगर युद्ध हुआ तो पीछे नहीं हटेंगे। चक 36 पीएस निवासी कुलवंत भारी कहते है कि गांव के युवा इस बार आक्रोशित है।
युवाओं के आक्रोश को बदला लेकर ही शांत किया जा सकता है। लखाहाकम निवासी संदीप कुमार कहते है कि पहले बॉर्डर पर खेतों में जाना सुरक्षा बलों के कारण मुश्किल लगता था लेकिन अब लगता है कि सुरक्षा बल अपनी जगह पर सही थे। अब सभी सुरक्षा बलों को खूब सहयोग कर रहे है।