पर्यावरण दिवस विशेष: 100 युवा,20 हजार पौधे, मियावाकी से बनाया नखलिस्तान
-2018 में शुरूआत,खुद ही करते हैं आर्थिक सहयोग
पत्रिका एक्सक्लूसिव-कृष्ण चौहान
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- श्रीगंगानगर.मई-जून में हीटवेव चली, पारा 45 से 50 डिग्री तक रहा तो लोगों को पेड़-पौधे याद आए। हकीकत यह भी है कि हर साल वन विभाग और सामाजिक संगठन पौधरोपण करते हैं। इनमें से ज्यादातर पौधे चंद दिनों बाद ही दम तोड़ देते हैं। सरकारी प्रयास तो नाकाफी है ही,वहीं लोग भी पेड़ों को काटकर आरों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। ऐसे में पाक सीमावर्ती क्षेत्र के गांव फतूही के युवाओं के संगठन द क्लब ऑफ यूथ स्पिरिट फतूही के प्रयास हरियाली ला रहे हैं।
- छह साल पहले करीब तीस युवकों ने फतूही गांव के सरकारी स्कूल में पीपल और बरगद के 80 पौधे लगाए। अब टीम में 100 युवा हैं। यह टीम अब तक जापान की मियावाकी पद्धति से 30 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुकी हैं। इनमें से 20 हजार पौधे लहलहा रहे हैं।
- टीम ने मियावाकी पद्धति से सात जगहों पर दो-दो फीट की दूरी पर पौधे लगाए। अब ये जंगल का रूप ले चुके हैं। अब गांव में खूब हरियाली है। जंगल में पक्षी व वन्यजीवों का ठिकाना है। मोर, तितलियां और जुगनू भी रहते हैं।
यह है मियावाकी पद्धति
- पौधरोपण की जापानी पद्धति है। इसमें देसी प्रजाति के पौधे पास-पास लगाए जाते हैं,जो कम स्थान घेरने के साथ अन्य पौधों की वृद्धि में भी सहायक होते हैं। सघनता की वजह से सूर्य की रोशनी धरती तक नहीं पहुंचती। इससे खरपतवार नहीं उग पाता। साथ ही अगले तीन वर्षों के बाद यह पादप रख-रखाव मुक्त हो जाते हैं। पौधे की वृद्धि दस गुणा तेजी से होती है।
डेढ़ बीघा लंबी तथा 55 फीट चौड़ी भूमि पर जंगल
- गांव कोनी की पीएचसी में सुपरवाइजर अनिल कलवानिया ने बताया कि वर्ष 2018 में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के खेल मैदान पर पीपल व बरगद के पौधे लगा मुहिम शुरू की। शुरू में इन पौधों का रख-रखाव व पानी देना चुनौती भरा था। अब विद्यालय में करीब सात सौ पेड़ हैं। अगस्त 2019 में स्कूल के पास डेढ़ बीघा लंबी तथा 55 फीट चौड़ी भूमि मिल गई। यहां पर मिायावाकी पद्धति से पौधे रोपे। गांव का नाली का रॉ-वाटर व गोशाला के ट्यूबवेल का पानी मिला। अब सात जगह लगाएं जंगलों में पाइप से सिंचाई की जाती है।
ऐसे मिलता है आर्थिक सहयोग
- युवा अनिल का कहना है कि पौधरोपण के लिए पहले बजट की समस्या आती थी। अब मई, जून व जुलाई में सरकारी नौकरी करने वाले युवा पांच-पांच सौ रुपए तथा अन्य युवा प्रति माह दो-दो सौ रुपए जमा करवाते हैं। इससे पौधों की खरीद की जाती है।
फायदे ही फायदे
- प्रकृति संतुलन, हरियाली को बढ़ावा,पर्यावरण संरक्षण,युवा शक्ति नशे के बजाय पौधरोपण मुहिम से जुड़ी। समाज व देश सेवा का जज्बा,भावना व जागृति आई।
इनसे गुलजार है गांव
- जंगल में छायादार पौधों में नीम,बरगद,पीपल, सहतूत, आम, अनार जामुन, खजूर, अमरूद, सफेदा सहित विभिन्न प्रकार के छायादार,फलदार व औषधीय पौधे लगे हैं।
जनसंख्या से आठ गुणा पौधे
- फतूही गांव में पौधों की संख्या गांव की जनसंख्या से आठ गुणा अधिक है। युवाओं का संकल्प इसे 20 गुणा करने का है। इस वर्ष के लिए गांव की चार-पांच जगह चिन्हित की है। यहां लगभग 20 हजार पौधे लगाए जाएंगे। जुलाई में किसी दिन विशेष पौधरोपण किया जाता है। ये एक त्योहार की तरह है। चूंकि तब बारिश शुरू हो जाती है, इससे पौधों को पनपने में आसानी रहती है।
यहां के हम सिकंदर
- पौधरोपण के लिए द क्लब ऑफ यूथ स्पिरिट फतूही का गठन किया गया। क्लब अध्यक्ष अनिल कलवानिया के नेतृत्व में अवनीश खोथ, विनोद झाझड़ा, सुनील जांदू, चेतन खोथ, अमनदीप जांदू, राकेश गौड़, मेनपाल भाट, अनिकेत कालेरा, कपिल चाहर, संतोष श्योराण, करण भांभू, वेद राव, भूपेंद्र, कलवंत, हितेश खिलेरी, रोनित गोदारा, रॉबिन चाहर, हरबंस वर्मा, जय प्रकाश बेरड़, सुरेंद्र कड़वासरा, प्रकाश कलवानिया, कपिल सियाग, राजेंद्र माकड़, साहिल चाहर, रॉकी जांदू, विक्की कलवानिया, साहिल गोदारा, अजय भांभू, धर्मवीर तेतरवाल, अजय वर्मा, अंकित सियाग, मंगलदीप भांभू, सुरेंद्र कलवाणिया, अशोक कलवाणिया सहित अन्य युवा निस्वार्थ भाव से गांव को हरा-भरा करने में जुटे हैं।
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