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श्री गंगानगर

सूचना आयोग ने लगाया जुर्माना, फिर भी नहीं सुधरे कुछ अधिकारी

सरकारी कामकाज की पारदर्शिता अधिकारियों की लापरवाही के चलते दम तोड़ रही
है। राज्य सूचना आयोग ने ऐसे ही बेपरवाह प्रदेश के एक हजार दो सौ अठाइस
अफसरों को दोषी ठहराते हुए पांच हजार से 25 हजार रुपए तक का जुर्माना ठोका।

श्री गंगानगरFeb 16, 2016 / 02:14 pm

सरकारी कामकाज की पारदर्शिता अधिकारियों की लापरवाही के चलते दम तोड़ रही है। राज्य सूचना आयोग ने ऐसे ही बेपरवाह प्रदेश के एक हजार दो सौ अठाइस अफसरों को दोषी ठहराते हुए पांच हजार से 25 हजार रुपए तक का जुर्माना ठोका। फिर भी आधे अधिकारियों ने तो वांछित सूचना उपलब्ध करवाना तो दूर जुर्माना राशि तक जमा नहीं करवाई। इसके चलते सरकारी कामकाज में पारदर्शिता के दावे महज कागजी होकर रह गए हैं और लोग वांछित सूचना सरकारी महकमों से प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।

सूचना नहीं देने वाले लोक सूचना अधिकारियों में ग्राम पंचायत के ग्रामसेवक से लेकर तहसीलदार, विकास अधिकारी, उपखंड अधिकारी, चिकित्सा, शिक्षा, वन, पशुपालन, कृषि के साथ तमाम महकमों के खंड, जिला व प्रदेश स्तरीय अधिकारी भी शामिल है। विभागीय अधिकारियों की मनमानी के चलते न तो सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की पालना हो पा रही है और न ही आमजन को इससे कोई राहत मिल रही है।

वर्ष   इन अधिकारियों पर लगा जुर्माना इन अधिकारियों ने नहीं दिया जुर्माना

2009 148 22
2010 357 95
2011 132 52
2013 456 302
2014 135 126

ग्रामसवेक, एसडीएम पर भी जुर्माना

राज्य सूचना आयोग द्वारा वर्ष 2009 से 2014 तक राजसमंद जिले में भी सूचना नहीं देने पर ग्रामसेवक से लेकर उपखंड अधिकारी व जिला परिषद सीईओ तक पर जुर्माना लगा। सैवंत्री ग्रामसेवक पर दो बार वर्ष 2009 में क्रमश: पांच हजार व दो हजार रुपए का जुर्माना लगाया, मगर एक बार पांच हजार ही जमा कराए। इसी तरह उखंड अधिकारी भीम पर दो हजार, जिला शिक्षाधिकारी माध्यमिक पर दस हजार, विकास अधिकारी देवगढ़ पर पांच हजार, जिला परिषद सीईओ पर 25 हजार देवगढ़ नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी पर 15 हजार रुपए, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान के अधीक्षक पर 15 हजार रुपए जुर्माना व उपली ओडन ग्रामसेवक पर 3 हजार रुपए का जुर्माना लगाय गया।

नहीं होती मासिक समीक्षा

सूचना का अधिकार अधिनियम की पालना के लिए साप्ताहिक व मासिक समीक्षा जिला स्तर पर करने के लिए कलक्टर की अध्यक्षता में विशेष कमेटी भी गठित है, मगर इसकी कभी बैठक ही नहीं होती। इस कारण न तो विभागों में लंबित आवेदनों का पता चलता और न ही समीक्षा व मॉनिटरिंग। वांछित सूचना न मिलने पर पीडि़त के पास आयोग में अपील का ही विकल्प रह गया हैं।

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