script‘भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनता है वीर-शहीदों का स्मरण’ | Remembrance of brave martyrs becomes a source of inspiration for futu | Patrika News
श्री गंगानगर

‘भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनता है वीर-शहीदों का स्मरण’

श्रीकरणपुर के गांव नग्गी में सेना का आयोजन, गार्ड सलामी व पुष्पचक्र अर्पित कर दी शहीदों को दी श्रद्धाजंलि, सैन्य अधिकारी हुए शामिल

श्री गंगानगरDec 28, 2023 / 06:02 pm

Ajay bhahdur

‘भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनता है वीर-शहीदों का स्मरण’

श्रीकरणपुर. गांव नग्गी में शहीद स्मारक पर पुष्प चक्र चढ़ाते अमोघ डिवीजन के ब्रिगेडियर एसपीएस रावत। -पत्रिका

श्रीकरणपुर. वीर-शहीदों का स्मरण भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनता है। यह बात सेना की अमोघ डिवीजन के ब्रिगेडियर एसपीएस रावत ने गुरुवार को गांव नग्गी के निकट भारत-पाक सीमा पर हुए आयोजन विजय दिवस समारोह में कही। बतौर मुख्य अतिथि फॉरएवर विक्टोरियस ब्रिगेड के बिग्रेडियर रावत ने कहा कि जो देश अपने वीरों के शौर्य और बलिदान को याद रखता है। शत्रु उससे सदैव भयभीत रहता है। उन्होंने कहा कि सेना के साहस व पराक्रम की शौर्य गाथा के माध्यम से भावी पीढ़ी में देशभक्ति का संचार होता है। उन्होंने गांव नग्गी के निकट रेतीले धोरों के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले भारतीय जांबाज सैनिकों को सलाम किया। डिवीजन अंतर्गत बिहार रेजीमेंट के कर्नल हर्षदीप गहलोत, कर्नल रोहित सूरी व लेफ्टिनेंट अमन नैण ने भी विचार व्यक्त किए। उन्होंने 1971 की लड़ाई के दौरान ग्रामीणों व अन्य इलाकावासियों की ओर सेे की गई सहायता को अभूतपूर्व बताते हुए कहा कि सीमावर्ती लोग भारतीय सेना की सबसे बड़ी ताकत हैं। लोगों का यह जज्बा, उत्साह व हौंसला सेना को कभी हारने नहीं देता। उन्होंने स्थानीय युवाओं को भी सेना में शामिल होने का आह्वान भी किया।
बिगुल बजाकर चढ़ाए पुष्प…

नग्गी विजय दिवस की 52 वीं सालगिरह पर सीमा पर बने शहीद स्मारक व मंदिर पर 1971 के धोरों की लड़ाई (सैंड ड्यून) के शहीदों को श्रद्धाजंलि दी गई। बिगुल बजाकर कार्यक्रम का आगाज किया गया। ब्रिगेडियर व अन्य सैन्य अधिकारियों के साथ बीएसएफ 77-वीरचक्र पलटन के समादेष्टा देसराज के अलावा नागरिकों ने भी शहीदों की स्मारक पर पुष्पचक्र व श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस दौरान दो मिनट का मौन रखा गया। सैन्य अधिकारियों व उनके परिजन ने स्मारक परिसर में बने दुर्गा मंदिर में धोक लगाई। पुजारी मोहन लाल ने इलाके की खुशहाली की कामना की। मौके पर गांव नग्गी के सरपंच माया देवी, हेतराम, पूर्व सरपंच बलराज सिंह डीसी, राजेंद्र सिहाग, समीर सहू, किशन ग्रोवर, सुरेंद्र वाट्स, अर्पणा रानी, निर्मला वाट्स, संदीप गोयल व भारत विकास परिषद के अध्यक्ष राजेंद्र भादू सहित अन्य गणमान्य नागरिक भी शामिल हुए। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे सभी लोगों के लिए चाय व नाश्ते की व्यवस्था भी की गई थी।
सेना का सहयोग करने वालों का सम्मान

शहीद स्मारक पर हुए कार्यक्रम के दौरान पहली बार सम्मान समारोह भी हुआ। इसमें वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान सेना का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने वाले नागरिकों को प्रमाण-पत्र व उपहार देकर सम्मान किया गया। मंच संचालक सूबेदार संजय भारती ने बताया कि इसके तहत कुल आठ लोगों मनजीत सिंह बुर्जवाला, गुरदित्ता सिंह बुर्जवाला, दीना राम बुर्जवाला, गुरांदित्ता सिंह बुर्जवाला, अर्जुनराम झूरिया नग्गी, बलदेव सैन श्रीकरणपुर, मास्टर दूलचंद रस्सेवट व गुरतेजसिंह बुर्जवाला का सम्मान किया गया। मौके पर वरिष्ठ नागरिकों ने सैन्य अधिकारियों के समक्ष 1971 की घटना से जुड़े अनुभव साझा किए तो सैन्य अधिकारी भी भावुक हो गए।
…इसलिए मनाते हैं नग्गी दिवस

वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना की करारी हार के बाद सीमा क्षेत्र शांत था। सीमा पर तैनात भारतीय सैना लौट चुकी थी। इसी दौरान युद्ध के दस दिन बाद पाक सेना नापाक इरादों के साथ भारतीय सीमा में घुसी और गांव 36 एच नग्गी के नजदीक रेतीले धोरों में करीब एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (कोनी टिब्बा क्षेत्र) पर कब्जा कर लिया। इस पर भारतीय सेना की 4-पैरा बटालियन को क्षेत्र मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। आदेश की पालना में बटालियन के जाबांज सैनिकों ने योजना बनाकर 28 दिसम्बर 1971 को सुबह चार बजे पाक सेना पर हमला बोला और दो घंटे में ही पाक सेना को वापिस घर भेज दिया। युद्ध के दौरान पाक सेना ने तोप से 72 गोले बरसाए इससे बटालियन के 3 अधिकारी व 18 जवान शहीद हो गए। गांव नग्गी के पास धोरों में हुई लड़ाई भारतीय सेना में आज भी अविस्मरणीय है। इसका कारण है कि यह 1971 के भारत-पाक युद्ध समाप्त होने के बाद हुई। रेतीले धोरों में होने के कारण यह लड़ाई भारतीय सेना के इतिहास में सैण्ड ड्यून के नाम से दर्ज है। ऐसे रणबांकुरों की स्मृति में यहां एक स्मारक व मंदिर बनाया गया। सीमा से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित यह स्मारक आज भी युद्ध में प्राण न्योछावर कर चुके वीरों की याद दिलाता है। उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष 28 दिसंबर को यह आयोजन किया जाता है।
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