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दिखी लोकतंत्र के दो स्तंभों की ताकत

तीन तलाक, निजता और बाबा राम रहीम मामले में न्यायपालिका और पत्रकारिता की ताकत आई सामने ऐसा वीक एंड होगा शायद किसी ने सोचा नहीं था।

जयपुरAug 26, 2017 / 04:25 pm

Kamlesh Sharma

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राजेंद्र शर्मा/ जयपुर। तीन तलाक, निजता और बाबा राम रहीम मामले में न्यायपालिका और पत्रकारिता की ताकत आई सामने ऐसा वीक एंड होगा शायद किसी ने सोचा नहीं था। न तत्काल तीन तलाक के समर्थकों ने, न निजता पर सुप्रीम कोर्ट के अधिकार पर सवाल उठाने वाली केंद्र सरकार ने और न ही डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम ने। खासकर, उन्होंने तो ऐसी कल्पना की ही नहीं होगी, जो लोकतंत्र के तीसरे और चौथे स्तंभ पर संदेह करने लगे थे।
वाकई यह सप्ताह न्यायपालिका और पत्रकारिता पर विश्वास को और मजबूत कर गया। इस हफ्ते तीन बड़े फैसले आए, दो सर्वोच्च अदालत के और एक पंचकुला की सीबीआई कोर्ट का। तीनों फैसलों में न्यायपालिका की शक्ति तो सामने आई ही, कलम की ताकत भी सबको माननी पड़ी। असहिष्णुता से शुरू हुई बहस को अभिव्यक्ति की आजादी और आखिरकार निजता के अधिकार तक पहुंचाने वाली प्रेस ही थी। तीन तलाक के मुद्दे को भी मीडिया ने आम किया। जब ये मसले सर्वोच्च अदालत में पहुंचे तो क्या हुआ देखें-
तीन तलाक
सुप्रीम कोर्ट ने न्याय की शानदार नज़ीर पेश की। केंद्र सरकार ने तो शरियत के तीनों तरह के तलाक को ही रद्द करने, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को अवैध ठहराने इत्यादि का आग्रह किया था। अदालत ने इसे नहीं माना। सिर्फ तत्काल तीन तलाक यानी वॉट्स एप, फोन, कागज पर या फिर पत्नी को तलाक-तलाक-तलाक बोल किस्मत के भरोसे छोडऩे वाली तलाक पर ही रोक लगाई। बाकी तलाक के तरीकों पर कोई टिप्पणी तक नहीं की।
निजता मौलिक अधिकार
निजता मौलिक अधिकार मामले में जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया तो सरकार ने जवाब दिया कि कानून बनाना कोर्ट का काम नहीं, संसद का है। इतना ही नहीं, ‘मोदीनीत’ सरकार ने यह भी दलील दी कि राज्य की कल्याण योजनाओं के हित में निजता का अधिकार मायने नहीं रखता, तो कोर्ट ने कहा मानवाधिकारों के सबसे बुरे उल्लंघन के समर्थन में यही दलील दी जाती रही है, जबकि गरीब राजनीतिक अधिकार नहीं महज़ आर्थिक विकास चाहते हैं। और आधार कार्ड के डेटा पर सरकार की इस दलील पर कि आधार खतरा या शरीर पर अधिकार नहीं, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह दावा तब किया जा रहा है, जब पर्सनल डेटा लीक हो रहा है। सरकार पहले डाटा सुरक्षा के कड़े उपाय सोचे। साथ ही, अदालत ने कहा-निजता यानी प्राइवेसी को मान्यता देना संविधान बदलना नहीं है।
राम रहीम रेप केस
पंचकुला की सीबीआई कोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम के खिलाफ चल रहे यौन उत्पीडऩ के मामले में फैसला सुना दिया है। स्पेशल जज जगदीप सिंह ने फैसला सुनाते हुए राम रहीम को दोषी करार दिया। अब इस मामले में सजा 28 अगस्त को सुनाई जाएगी। जब फैसला सुनाया जा रहा था, तब बाहर खड़े ताकत दिखाते लाखों समर्थकों की हमदर्दी काम न आई और राम रहीम जज जगदीप सिंह के सामने हाथ जोड़े खड़ा था। जब दोषी करार दिया गया, घुटनों के बल बैठ गया आंखों से आंसू छलक पड़े। ये उन आंसुओं का शायद सूद भी नहीं थे, जो यौनशोषण की शिकार और बाद में प्रताडि़त होते वक्त इस कथित बाबा की शिष्याओं की आखों से बरसे होंगे। और तो और, राम रहीम के समर्थकों के हिंसा फैलाने पर कोर्ट ने राम रहीम की सारी संपत्ति जब्त करने का आदेश देकर जता दिया कि कानून और देश से बड़ा कोई नहीं।
पत्रकार ने किया था राम रहीम का पर्दाफाश
राम रहीम पर न सिर्फ रेप का, अपितु एक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या का भी आरोप है। रामचंद्र के बेटे अंशुल को अपने पिता के कत्ल के मामले में इंसाफ का इंतजार है। दरअसल रामचंद्र ने अपने अखबार में 30 मई 2002 के अंक में राम रहीम के खिलाफ साध्वी के साथ रेप का मामला उजागर किया था। दरअसल पत्रकार ने जो चिट्ठी अपने अखबार में छापी थी, वह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, चीफ जस्टिस पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट सहित कई लोगों को भेजी गई थी।
अज्ञात महिला की इस चिट्ठी पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सिरसा के डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज को इसकी जांच कराने का आदेश दिया, जिसके बाद जज ने यह जांच सीबीआई को सौंपी। फिर दिसंबर 12, 2002 को सीबीआई की चंडीगढ़ यूनिट ने इस मामले में धारा 376, 506 और 509 के तहत मामला दर्ज करते हुए जांच शूरू की। इससे पूर्व 24 अक्टूबर 2002 में रामचंद्र की हत्या उनके घर पर ही गोली मारकर कर दी गई।
राम रहीम और सियासत का गठजोड़
वर्ष 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में राम रहीम का समर्थन लेने के लिए बीजेपी के बड़े नेताओं ने उनसे मुलाकात हुई बताई जाती है। इस मुलाकात के बाद डेरा ने बीजेपी को हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन देने का एलान किया था। डेरा के इतिहास में यह पहली बार था कि डेरा ने किसी राजनीतिक दल का खुलकर समर्थन किया था। बाद में, लोकसभा चुनाव में भी डेरा ने बीजेपी को सपोर्ट किया। कई बड़े राजनीतिक दल और उनके नेता बाबा राम रहीम के डेरे पर आशीर्वाद लेते नजर आए हैं। कांग्रेस के नेता भी इस कथित बाबा का आशीर्वाद लेने जाते रहते हैं। बताते हैं २००७ के चुनाव ने डेरा ने अंदरूनी तौर पर कांग्रेस को सपोर्ट किया था।
कार्यपालिका सवालों के घेरे में
बहरहाल, समूचे देश को प्रभावित करने वाले इन तीनों ही मामलों में न्यायपालिका और पत्रकारिता की ताकत सामने आई, तो कार्यपालिका यानी सरकार की भूमिका तीनों ही मामलों में गड़बड़ ही दिखी और वह सवालों के घेरे में आ गई। जहां निजता और तीन तलाक के मामले में सरकार की निष्पक्षता पर सवाल उठने की गुंजाइश रह गई, वहीं राम रहीम के मामले में तो लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगडऩे की वजह ही सरकार की अदूरदर्शिता रही। इसके कारण देश के कई हिस्सों में हिंसा भड़क गई और निर्दोषों को बलि देनी पड़ी।

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