कोरोना महामारी के बाद आत्महत्या के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि, छोटी सी असफलता पर गले लगा रहे मौत
चिकित्सा विभाग के मनोरोग विशेषज्ञों ने बताया कि युवाओं में दिन प्रति दिन तनाव बढ़ता जा रहा है। समाज में मनोरोगी बढ़ रहे हैं, लेकिन मनोरोग विशेषज्ञों की कमी है।
नागेश शर्मा/श्यामलाल चौधरी प्रदेश में आत्महत्या के मामलों में साल दर साल बढ़ोतरी हो रही, जो चिंता का विषय बन गया। कोरोना महामारी के दौरान आत्महत्या के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। अब भीषण गर्मी के इस दौर में युवा अकाल मौत को गले लगा रहे। जो समाज के लिए चिंताजनक विषय बनता जा रहा।
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजस्थान में आत्महत्या की दर वर्ष 2015 में जहां एक लाख पर 4.8 थी, वहां 2022 में 7.2 हो गई। लेकिन, कहते हैं जीवन का दूसरा नाम संघर्ष है, जो लोग जीवन में संघर्ष करते हैं और जिन लोगों ने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष किया, उन्होंने सफलता को प्राप्त किया है।
देश में मनोरोग विशेषज्ञों की भारी कमी
चिकित्सा विभाग के मनोरोग विशेषज्ञों ने बताया कि युवाओं में दिन प्रति दिन तनाव बढ़ता जा रहा है। समाज में मनोरोगी बढ़ रहे हैं, लेकिन मनोरोग विशेषज्ञों की कमी है। जानकार सूत्रों के अनुसार भारत में जितने मनोरोग विशेषज्ञों की आवश्कता है, उनके 40 फीसदी भी नहीं हैं। नागौर जैसे बड़े जिले में एक मात्र मनोरोग विशेषज्ञ है।
राजस्थान की बात करें तो यहां हर साल 5 हजार से अधिक लोग आत्महत्या कर रहे, इसमें छात्रों की संख्या अधिक है, जो विभिन्न कारणों से आत्महत्या कर रहे हैं। मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक डरावनी तस्वीर है, जिसे नहीं रोका गया तो आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता जाएगा।
युवाओं में खत्म हो रहा धैर्य
विशेषज्ञों की माने तो आत्महत्या करने का मुख्य कारण हमारा पाश्चात्य संस्कृति को फॉलो करना भी है। परिवार व रिश्ते दिनों-दिन छोटे होते जा रहे हैं। पहले संयुक्त परिवार में रहते थे, तो किसी बच्चे को समस्या होने पर कोई न कोई बड़ा सदस्य बात संभाल लेता था, लेकिन आजकल के बच्चे परिवार व रिश्तेदारों से दूर हो गए। कामकाजी होने से मां-बाप बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। परिवार में माहौल ऐसा बनने लग गया कि घर में बाहरी व्यक्ति को बच्चे स्वीकार ही नहीं कर पाते। दूसरा बड़ा कारण बच्चों के हाथों में मोबाइल आना भी है, सोशल मीडिया के साथ ऑनलाइन गेम बच्चों को आत्महत्या की ओर धकेल रहे हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सुसाइड की घटनाएं ज्यादा होने लगी हैं। जाने युवा किस दिशा में जा रहे हैं।
तनाव व नशे की प्रवृत्ति मुख्य कारण
वर्तमान में युवा सहनशील नहीं रहा, वह कम समय में सबकुछ प्राप्त करना चाहता है। जब वह उसमें सफल नहीं होता है तो तनावग्रसत हो जाता है। यही तनाव लम्बे समय तक रहने से वह अवसाद में चला जाता है और फिर आत्महत्या कर लेते हैं। युवाओं में तनाव एवं नशे की प्रवृत्ति ही आत्महत्या के प्रमुख कारण हैं। इसके साथ एकल परिवार, मोबाइल की लत भी आत्महत्या का बड़ा कारण बन रहा है।
डॉ. राधेश्याम रोज, मनोरोग विशेषज्ञ, जेएलएन अस्पताल, नागौर
पत्रिका व्यू: बच्चों पर अपने विचार नहीं थोपें
आत्महत्या की प्रवृत्ति खासकर बच्चों एवं युवाओं में ज्यादा बढ़ रही है। इसके लिए जितने जिम्मेदार ऐसा कदम उठाने वाले हैं, उतने जिम्मेदार हम भी हैं। भागदौड़ वाली जिंदगी में हमने अपने बच्चों पर ध्यान देना बंद कर दिया है। तनाव में जी रहे युवाओं को अपनी समस्या परिवार के लोगों, मित्रों एवं डॉक्टर को बताना चाहिए, ताकि समय रहते उसका समाधान किया जा सके। तनाव का इलाज नशे में नहीं ढूंढ़े, बल्कि इसके लिए उन्हें फिट एवं सक्रिय रहना चाहिए। माता-पिता को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों की गतिविधि एवं शिक्षा पर ध्यान रखें। उनकी संगत का ध्यान रखें। बच्चों पर अपने विचार नहीं थोपें, इससे बच्चे तनाव में आकर अवसाद में चले जाते हैं।
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