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‘रातभर जगाकर नहीं कर सकते पूछताछ’, बॉम्बे हाईकोर्ट ने ईडी को लगाई फटकार, जानें पूरा मामला

अगस्त 2023 में याचिकाकर्ता को ईडी ने देर रात तक पूछताछ करने के बाद गिरफ्तार किया था।

मुंबईApr 16, 2024 / 04:55 pm

Dinesh Dubey

Bombay High Court
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एक वरिष्ठ नागरिक से देर रात तक पूछताछ करने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को फटकार लगाई है। कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताते हुए सोमवार को कहा कि सोने का अधिकार एक बुनियादी मानवीय जरूरत है और इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की अगुवाई वाली खंडपीठ ने कहा कि बयान दिन के समय दर्ज किए जाने चाहिए, न कि रात में, क्योंकि रात में कॉग्निटिव क्षमता प्रभावित होती है, जिस वजह से बयान उतना सही नहीं हो सकता है।
कोर्ट ने यह आदेश 64 वर्षीय राम कोटुमल इसरानी (Ram Kotumal Issrani) द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया। इसरानी को केंद्रीय जांच एजेंसी ने लंबी पूछताछ के बाद अगस्त 2023 में गिरफ्तार किया था।
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि उसकी गिरफ्तारी अनुचित और गैरकानूनी थी। वह जांच में ईडी का पूरा सहयोग कर रहे थे और सम्मन पर एजेंसी के सामने लगातार उपस्थित हो रहे थे। याचिका में दावा किया गया था कि पिछले साल 7 अगस्त को वह समन मिलने पर एजेंसी के सामने उपस्थित हुए थे, तब पूरी रात उनसे पूछताछ की गई और अगले दिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
हालांकि कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। लेकिन याचिकाकर्ता से रात भर पूछताछ करने पर सवाल खड़े किए। ईडी की तरफ से पेश हुए वकील ने कोर्ट को बताया कि राम इसरानी ने रातभर में अपना बयान दर्ज कराने पर सहमती जताई थी। याचिका के मुताबिक, इसरानी से ईडी अधिकारियों ने सुबह 3 बजे तक पूछताछ की थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि नींद की कमी किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है और उसकी मानसिक क्षमताओं व मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ सकती है। समन भेजकर बुलाये गए व्यक्ति को उसके मूल मानव अधिकार यानी सोने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। बयान एक उचित समय से परे जाकर दर्ज नहीं किए जाने चाहिए, वो भी तब जब देर रात में व्यक्ति का संज्ञानात्मक कौशल क्षीण हो सकती है।
अपने आदेश में पीठ ने कहा कि जब किसी व्यक्ति को पूछताछ के लिए बुलाया जाता है, तो जांच एजेंसी को उसे किसी अपराध का दोषी नहीं समझ लेना चाहिए। कोर्ट ने टिप्पणी की, 64 वर्षीय याचिकाकर्ता को उसकी कथित सहमति के बावजूद आधी रात तक इंतजार कराने के बजाय किसी अन्य दिन या अगले दिन भी पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता था। वह पहले भी अपना बयान दर्ज कराने के लिए एजेंसी के सामने पेश हो चुके थे।

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