सुलतानपुर में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने गांधी-नेहरू परिवार की छोटी बहू मेनका गांधी के नाम की जब घोषणा की तो सभी को उनकी जीत आसान लग रही थी। लेकिन जब 30 मार्च को केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने बतौर भाजपा प्रत्याशी जिले में कदम रखा तो प्रचार के बजाय पार्टी नेताओं में चेहरा दिखाने की होड़ लग गई। इस पर मेनका गांधी ने कई नेताओं को फटकार लगाई तो मठाधीश नेता किनारा करने लगे। मेनका के कड़े रुख से पार्टी के नामदार चेहरे साथ तो खड़े दिखाई दिये लेकिन, चुनाव प्रचार से कतराते रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि चुनाव प्रचार के आखिरी चरण तक पहुंचते-पहुंचते आसान लग रही जीत कांटे की टक्कर में तब्दील हो गई।
बाहरी नेताओं ने दिया था समर्थन
पार्टी नेताओं के किनारा कसने के बाद बसपा सरकार में मंत्री रहे पूर्व मंत्री विनोद सिंह, पूर्व विधायक पवन पांडेय एवं जिला पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि शिवकुमार सिंह मेनका गांधी की नुक्कड़ सभाओं से लेकर जनसम्पर्क करने के आयोजन का जिम्मा संभालने लगे। स्थानीय नेता भी अपना चेहरा दिखाने के लिए मौजूद रहते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि मेनका गांधी की आसान लगने वाली जीत कड़े संघर्ष में बदल गई और पार्टी नेताओं की फूट का फायदा गठबंधन प्रत्याशी को मिलने लगा। मेनका गांधी बमुश्किल साढ़े चौदह हजार वोटों से ही जीत हासिल कर सकीं।