1939 में सुल्तानपुर से बलिदानी जत्था हैदराबाद के लिए रवाना हुआ। इसमें बाबू संगमलाल, सुंदर लाल, पलहीपुर के केदारनाथ आर्य, करथुनी के चन्दरमित्र उपाध्याय और कादीपुर के केदार हलवाई शामिल थे। यह जत्था ट्रेन से रोटेगांव स्टेशन पर जैसे ही उतरा, निजाम की पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के दूसरे दिन ये लोग बीजापुर कोर्ट में पेश किए गए। माफीनामा देने का दबाव बनाया जाने लगा। नहीं माने तो वहां के काजी ने सारे सत्याग्रहियों को दो-दो साल की सजा देकर जेल भेज दिया। सत्याग्रहियों को सजा दिये जाने का विरोध इतना व्यापक हो गया कि कांग्रेस सहित कई सामाजिक संगठनों ने आंदोलन में कूद पड़े। यह आंदोलन इतना तेज था कि निजाम को बैकफुट पर आना पड़ा। 8 अगस्त 1939 को सारे बन्दी सत्याग्रही रिहा कर दिये गए। इस आर्य सत्याग्रह को आजादी के बाद सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा माना और सारे सत्याग्रही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी माने गये।