सूरजपुर जिले की सांस्कृतिक विशेषताओं का मुख्य प्रतिनिधित्व जनजातीय समुदाय करता है, जो अपने रहन सहन के विशिष्ट तौर तरीकों के लिए जाना जाता है। यहां निवासरत कोरकू जनजाति के लोग भूमि खोदने का कार्य करने के लिए जाने जाते हैं। साथ ही काष्ठ पर की गई अपनी विशिष्ट कला में भी ये अद्वितीय हैं।
वृक्षों पर मचान बनाकर रहते हैं कोरवा
कोरवा जनजाति के लोग भी अपना विशिष्ट महत्व रखते हैं। ये दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में वृक्षों पर मचान बनाकर रहने के लिए जाने जाते हैं। साथ ही साथ कृषि कार्य से संबंधित कोरा और धेरसा जैसे पर्व भी इनकी सांस्कृतिक विशिष्टता को दर्शाते हैं। इनके द्वारा संपादित दमनक नृत्य बड़ा भयोत्पादक नृत्य माना जाता है। चावल से बनाई जाने वाली हडिय़ा शराब भी इनका विशिष्ट पेय पदार्थ है।
खैरवार जनजाति की ये है पहचान
खैरवार जनजाति भी निवासरत है जो कत्था बनाने के लिए जानी जाती है। यहां के आदिवासियों के खुडिय़ारानी,सगराखण्ड, भटुवा देव,सिंगरी देव जैसे देवी देवता भी अपने आप मे विशिष्ट हैं। फसलों से संबंधित करमा नृत्य त्योहार यहां सभी आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्गों में बड़े स्तर पर प्रचलित है।
सुआ व शैला नृत्य मोह लेता है मन
सुआ गीत नृत्य भी यहां की महिलाएं बड़े मनोरंजक ढंग से संपन्न करती हैं। शैला या डंडा नृत्य भी व्यापक रूप से चलन में है। यहां के आदिवासी अब अन्य समुदायों से घुल मिलकर होली,दीवाली,तीज और छठ जैसे त्योहारों को भी चाव से मनाने लगे हैं। गणेश उत्सव और दुर्गापूजा के साथ साथ काली पूजा भी धूमधाम से बनाई जाती है।
मोहर्रम और ईद जैसे त्योहारों में भी यहां इतनी ही धूम रहती है। आदिम और जनजातीय समूहों के त्योहार और रीति रिवाज तथा हिंदुओं, मुस्लिमों, ईसाइयों और सिखों के तीज त्योहार मिलकर सूरजपुर क्षेत्र को सांस्कृतिक सम्पन्नता और विविधता से लबरेज कर देते हैं।