मनपा संचालित स्मीमेर अस्पताल में ‘प्रोजेक्ट यशोदा’ के तहत पिछले दस साल से मिल्क बैंक का संचालन हो रहा है। स्मीमेर अस्पताल में बच्चों को जन्म देने वाली माताएं इस बैंक में दूध दान देती हैं। यह अमूल्य दूध स्मीमेर अस्पताल के एनआईसीयू वार्ड में बीमार बच्चों को उपलब्ध कराया जाता है।
जागरुकता नहीं होने के कारण मिल्क बैंक में दूध का दान देने वाली माताओं की संख्या काफी कम है। समाज में जागरुकता लाने के लिए मोढ वणिक महिला मंडल हर साल इस तरह का आयोजन करता है। एक से आठ अगस्त तक स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है, लेकिन इस बार अगस्त में त्योहार होने के कारण १० सितम्बर को दूधदान शिविर का आयोजन किया गया।
रविवार को नानपुरा के एक निजी अस्पताल में आयोजित शिविर में करीब ६४ माताओं ने दूध का दान किया। करीब तीन लीटर दूध एकत्रित हुआ। सूरत पिड्याट्रिक डॉक्टर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष डॉ. सुषमा देसाई ने बताया कि मोढ़ वणिक महिला मंडल ने कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की थी।
शहर में कार्यरत उनकी चार शाखाओं ने महिलाओं को शिविर तक लाने का कार्य किया। इसमें सूरत मोढ वणिक समस्त पंच महिला मंडल के साथ-साथ अडाजण, अठवा और नानपुरा शाखा की महिलाओं ने हिस्सा लिया। स्मीमेर अस्पताल के यशोदा बैंक के सहयोग से पिड्याट्रिक एसोसिएशन प्रति वर्ष दूध दान शिविर का आयोजन करती है। सूरत में आयोजित दूध शिविर कार्यक्रम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में भी दर्ज हो चुका है।
बीमारी से सुरक्षा
डॉ. सुषमा देसाई ने बताया कि मां का दूध दवा से भी कीमती है। जिन माताओं में दूध नहीं बनता, उनके बच्चों को गाय-भैंस का दूध पिलाना पड़ता है। सूरत में मिल्क बैंक की सुविधा होने से कई जरूरतमंत बच्चों को मां का दूध उपलब्ध हो पाता है। नवजात को मां का दूध देने से एलर्जी या उल्टी-दस्त की आशंका नहीं रहती। रविवार को एक मां दस दिन के बच्चे को लेकर दूध दान करने आई।
ऐसे होता है दूध का संग्रह
रक्तदान की तरह संपूर्ण वैज्ञानिक पद्धति से माताओं के दूध का संग्रह किया जाता है। स्मीमेर संचालित यशोदा मिल्क बैंक दस साल पहले शुरू किया गया था। इस मिल्क बैंक में दूध को प्रोसेस करने के बाद चार महीने तक सुरक्षित रखा जाता है। जरूरत पडऩे पर यह दूध नवजात शिशुओं को निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है।