scriptPATRIKA ALERT : कहीं परिश्रम की मीठी नींद से बंद आंखें फिर खुल ना पाए | If system not wake up, there can be an accident like in kim in Surat | Patrika News

PATRIKA ALERT : कहीं परिश्रम की मीठी नींद से बंद आंखें फिर खुल ना पाए

locationसूरतPublished: Jan 21, 2021 12:27:16 pm

Submitted by:

Dinesh M Trivedi

– तीन साल पूर्व भी राजस्थान पत्रिका ने उठाई थी श्रमिकों के हक की आवाज…- समय रहते नहीं जागे तो सूरत में भी हो सकता है कीम जैसा हादसा- लंबे समय से बंद हैं अधिकतर रैन बसेरे, फुटपाथ पर सोते हैं हजारों श्रमिक और भिक्षुक
– Three years ago, PATRIKA raised the voice of the rights of workers …- Most of night shelters are closed, thousands of laborers and beggers sleep on footpaths

PATRIKA ALERT : कहीं परिश्रम की मीठी नींद से बंद आंखें फिर खुल ना पाए

PATRIKA ALERT : कहीं परिश्रम की मीठी नींद से बंद आंखें फिर खुल ना पाए

दिनेश एम. त्रिवेदी.

सूरत. कीम के फुटपाथ पर हुए हादसे से यदि प्रशासन ने अभी भी सबक नहीं लिया तो सूरत शहर में भी ऐसा दर्दनाकहादसा हो सकता है। यहां प्रवासी श्रमिकों के लिए विभिन्न इलाकों में बनाए गए 27 रैन बसेरों में से अधिकतर बंद हैं। सिर्फ तीन-चार कार्यरत हैं। सूरत में तो फुटपाथ और सड़क के बीच ना दूरी है न अधिकऊंचाई रफ्तार से भागते शहर में मुश्किल से कोई ऐसा ओवरब्रिज या फुटपाथ होगा, जिसके ऊपर या नीच श्रमिकों या भिक्षुक आदि का जमावड़ा ना दिखता हो।
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इसलिए यहां हादसों की आशंका अधिक है। घर के सपने लिए सड़क किनारे सोने वाले परिवारों की आंखें किसी और बेकाबू वाहन से हमेशा के लिए बंद हो सकती है। गौरतलब है कि सूरत में आए दिन हिट एंड रन के मामले होते रहते हैं।

कोर्ट ने भी लिया था संज्ञान :


फुटपाथ पर सोते श्रमिकों के हादसों का शिकार बनने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया था। कोर्ट ने सभी महानगरों में इन प्रवासी श्रमिकों के लिए रैन बसेरे (शेल्टर होम) बनाने का आदेश दिया था। उस दौरान सूरत महानगर पालिका ने भी शहर के इलाकों में 27 रैन बसेरे बनाए थे। जबकि एक लाख की आबादी पर एक रैन बसेरा बनाने का प्रावधान था।
PATRIKA ALERT : कहीं परिश्रम की मीठी नींद से बंद आंखें फिर खुल ना पाए
इस हिसाब से सूरत की करीब 60 लाख आबादी पर शहर में 60 शेल्टर हो बनाने की जरूरत थी। जो 27 रैन बसेरे बनाए गए थे, वे भी कई कारणों से सफल नहीं रहे। समय के साथ उनमें से अधितर रैन बसेरे बंद हो गए। फिलहाल सहारा दरवाजा, चौकबाजार, बॉम्बे मॉर्केट इलाके के 2-3 रैन बसेरे ही कार्यरत हैं। जो रात आठ से सुबह आठ बजे तक खुले रहते हंै। शेष सभी पर हमेशा के लिए ताले लग चुके हैं।
इन वजहों से श्रमिकों ने मुंह मोड़ा :


1. रैन बसेरों के निर्माण में एनयुएलएम (नेशनल अर्बन लाइवली हुड मिशन) की गाइड लाइन का पालन नहीं किया गया।
2. रैन बसेरों में श्रमिकों के लिए परिवार सहित रहने की व्यवस्था नहीं की गई।
3. अधिकतर रैन बसेरों का निर्माण सार्वजनिक शौचालयों पर किया गया, जो श्रमिकों के साथ भद्दा मजाक जैसा था।
4. बहुत छोटी जगह में दस-दस पुरुषों के कतार में बिस्तर वाले शेड तैयार किए गए थे, जो ठीक नहीं है।
5. रैन बसेरों के रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया, बिस्तर नहीं धुलतें, टूटे पलंग, पंखों की मरम्मत नही हुई।ं
फुटपाथ पर सोते हैं करीब 20 हजार :


शहर के चौकबाजार, गांधीबाग,, मजूरागेट, सबजेल, वराछा चौपाटी, बॉटनिकल गार्डन, परवत पाटिया, वरियाव, डिंडोली फाटक, उधना-मगदल्ला रोड़, भटार चौराहा, जलानी ब्रिज, वरियावी बाजार, मोटा वराछा रिवर व्यू, रामनगर, सहारा दरवाजा, रेलवे स्टेशन, दिल्ली गेट, लंबे हनुमान रोड, स्मीमेर हॉस्पिटल, वेसू केनाल रोड,
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बोम्बे मार्केट, योगीचौक, कतारगाम, ललिता चौकड़ी, सरदार मार्केट, लिम्बायत, नीलगिरी सर्कल, महाराणा प्रताप सर्कल, कं गारू सर्कल, अर्चना स्कूल, उधना रोड, पांडेसरा, एसवीएनआईटी समेत शहर में ऐसे सैकड़ों ठिकाने हैं। जहां सड़क किनारे करीब 20 हजार से अधिक प्रवासी श्रमिक अपने परिवारों के साथ सोते हैं। रात भर इनके बगल से सैकड़ों वाहन दनदनाते हुए गुजरते हैं।

मौसम व हादसे ही नहीं, अपराध भी :


सड़क किनारे सोने वाले प्रवासी श्रमिक व भिक्षुक प्रशासन की संवेदनहीनता के चलते सर्दी, गर्मी, बरसात आदि मौसम की मार और हादसों का खतरा तो झेलते ही हैं, कई बार उन्हें अपराधियों से भी दो-चार होना पड़ता है। शहरों के विकास में मील के पत्थर इन श्रमिकों की लाचारी का अपराधी भी फायदा उठाते हंै।
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वे रात में इनके सस्ते मोबाइल समेत उनके लिए तो कीमती जैसा सामान भी चुरा लेते हंै। विरोध करने पर पीट देते है। कई बार शिकायत पुलिस तक भी जाती है, लेकिन अनाथों की सुनवाई कौन करे? ं
फुटपाथ पर खास जगह के लिए संघर्ष भी :


शहर में हालत यह हैं कि फुटपाथ पर मनपा की बैंच समेत सुरक्षित जगहों पर सोने के लिए संघर्ष होता है। सामान्य मारपीट की घटनाओं के अलावा जानलेवा हमले भी हुए हैं।
– अक्टूबर में पुणागाम में रघुवीर हब के सामने रात में फुटपाथ की बैंच पर सोने को लेकर दो भिक्षुकों के विवाद में एक ने दूसरे के गले पर ब्लैड से वार कर दिया था।
– लंबे हनुमान रोड पर भी दिहाड़ी श्रमिक का अन्य श्रमिक के साथ बैंच पर सोने को लेकर विवाद हुआ में उस पर धारदार हथियारों से हमला किया था।
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