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सूरत

फाइलों में कैद होकर रह गई जैविक खेती

पांच वर्ष पहले स्वीकृत 10 करोड़ रुपए विभाग के पास जमा

सूरतJun 29, 2021 / 01:27 am

Gyan Prakash Sharma

फाइलों में कैद होकर रह गई जैविक खेती

फाइलों में कैद होकर रह गई जैविक खेती

सिलवासा. संघ प्रदेश दादरा नगर हवेली में जैविक खेती फाइलों में कैद होकर रह गई है। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की अदला-बदली से जैविक खेती की फाइल भी दब गई है। चालू वर्ष में जैविक खेती के लिए कोई योजना नहीं हैं। केन्द्र सरकार ने जैविक खेती के लिए अनुदान के तौर पर 10 करोड़ रुपए स्वीकृत किए थे, जो पिछले पांच वर्ष से बैंक में जमा हैं।
मानसून में अच्छी वर्षा के कारण जिले में जैविक खेती की अपार संभावनाएं हैं। दपाड़ा, आंबोली, सुरंगी, दूधनी, खेरड़ी, रूदाना, मांदोनी, कौंचा, सिंदोनी, रांधा के गांवों में कृषि मुख्य व्यवसाय हैं। यहां मानसून में कृषि योग्य जमीन का पूरा उपभोग होता हैं। पांच वर्ष पूर्व कृषि विभाग ने शुरुआत में जैविक खेती के लिए दपाड़ा, आंबोली तथा दुधनी पंचायत को चयनित किया था। इन पंचायतों में 4500 एकड़ कृषि भूमि पर जैविक खेती की तैयारी की थी। किसानों को जैविक खेती का तरीका भी समझाया गया। कृत्रिम खाद की जगह प्राकृतिक खाद एवं सामान्य तरीकों के इस्तेमाल की जानकारी दी गई। जब खरीफ की बुवाई हुई तब किसान जैविक खेती के लिए तैयार नहीं हुए, फलस्वरूप विभाग को हाथ पीछे खींचने पड़े।
गौरतलब है कि देशभर में जैविक खेती की ओर किसान अग्रसर हो रहे हैं। इस खेती में उपज के दाम अधिक मिलते हैं। जैविक खेती में किसी तरह के रासायनिक खाद, उर्वरक या पेस्टिसाइड्स का प्रयोग नहीं किया जाता है। फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए शहरी कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, गोबर की खाद हरी खाद प्रयुक्त की जाती है। आर्गेनिक फूड में केमिकल, पेस्टिसाइड्स, ड्रग्स, प्रिजवेंटिव जैसे नुकसान पहुंचाने वाले जहरीले तत्व नहीं होते। ऐसे उत्पादन में पोषक तत्व बरकरार रहते हैं, जो सेहत के लिए ज्यादा लाभदायी हैं। कोरोना काल में आर्गेनिक खेती से उत्पादित सब्जियां और अनाज की मांग बढ़ी हैं।
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