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सूरत

अनलॉक 2.0 में भी रिक्शा चालकों का धंधा ‘लॉक’

कोरोना संकटकालसवारियों के इंतजार में बीत रहा दिन ऑटो रिक्शा चालकों की आर्थिक स्थिति हुई डांवाडोल
Corona crisisDay waiting for ridersThe economic condition of auto rickshaw drivers was disastrous
 

सूरतJul 03, 2020 / 12:10 am

Sunil Mishra

अनलॉक 2.0 में भी रिक्शा चालकों का धंधा 'लॉक'

auto

राजेश यादव . वापी. कोरोना महामारी के कारण पहले लॉकडाउन और उसके बाद अनलॉक के बाद भी ऑटो रिक्शा चालकों की परेशानी खत्म नहीं हो रही है। ट्रेन परिचालन, शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने तथा कई प्रतिबंधों के कारण रिक्शा चालकों को अनलॉक में जिस तरह के धंधे की उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हुई। जिससे उनकी आॢथक हालात डांवाडोल हो गई है। कई रिक्शा स्टैन्ड पर तो पूरे दिन सवारियों के इंतजार में रिक्शा वाले बैठे रहते हैं। लेकिन शाम होने तक दो या तीन फेरे ही लगते हैं।
कभी स्टेशन के दोनों ओर रिक्शा वालों के कारण जाम की स्थिति हमेशा बनी रहती थी। वहीं, अब वहां नाम मात्र के ऑटो रिक्शा ही खड़े दिखाई देते हैं। क्योंकि अनलॉक के बाद में नाम मात्र की ही ट्रेनें चल रही हैं और उनमें आने वाले यात्रियों की संख्या भी पहले की अपेक्षा बहुत कम रहती है। कोरोना के डर से लोग जल्दी बाहर निकलने से बच रहे हैं और इससे बचने के लिए रिक्शा में भी दो से ज्यादा सवारी न ले जाने के निर्देश हैं। कई बार रिक्शा वाले चाहें तो भी यात्री सुरक्षा के लिहाज से स्वयं बैठने से मना कर देते हैं। यदि तीन या चार सवारी बैठ भी गई तो किसी न किसी नाके पर तैनात पुलिस द्वारा पकडऩे का डर लगा रहता हैं।
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वापी शहर में 30 हजार से ज्यादा रिक्शा
वापी में करीब 30 हजार से ज्यादा रिक्शा हैं। इनमें से करीब दो हजार से ज्यादा रिक्शा वाले विभिन्न स्कूलों में विद्यार्थियों को पहुंचाने और लाने का काम करते थे। इसके अलावा पूरे दिन सवारी भी भरपूर मिलती थी। इसके अलावा भी बड़ी संख्या में नौकरी पर जाने वाले और ट्रेन के यात्रियों से रिक्शा भरी रहती थी। अन्य कामों से भी लोग बड़ी संख्या में निकलते थे। लेकिन अभी इनमें से ज्यादातर प्रवृत्तियां बंद हैं या सीमित तौर पर चल रही हैं। जिसका सीधा असर रिक्शा चालकों की आय पर पड़ा है। कई साल से रिक्शा चालक परिवार चलाने वाले विनोद जैसवाल ने बताया कि घर से इसी उम्मीद में निकलते हैं कि शायद आज अच्छी कमाई हो लेकिन शाम को घर जाने के समय तक उत्साह जनक कमाई नहीं होती है। कई बार तो पूरे दिन में एक या दो सवारी ही मिलती है। विनोद जैसवाल के अनुसार पहले नजदीकी बाजार में जहां लोग रिक्शा में जाते थे अब वहां तक पैदल जाना पसंद करते हैं। जैसे हालात हैं, उससे मन में निराशा घर कर रही है।
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कइयों ने रात में तलाशा दूसरा काम
खर्चे बढऩे और रिक्शा की आय कम होने का ही असर है कि कई रिक्शा चालक रात में सिक्योरिटी गार्ड या कंपनियों में नौकरी करने लगे हैं। छीरी निवासी रामजन्म दिवाकर ने बताया कि पहले दो स्कूलों के छात्रों को छोडऩे तथा दिन में सवारियां ढोने से अच्छी खासी आय हो जाती थी। इससे मकान की किस्त और बच्चों की पढ़ाई करवा सकता था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। कुछ दिन तक रिक्शा चलाकर देख लिया। लेकिन कई दिन तो ईंधन का खर्च ही माथे पड़ गया। इसे देखते हुए एक ठेकेदार की मदद से रात के लिए कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी पकड़ ली है। यह बहुत अच्छा तो नहीं लेकिन परिवार का खर्च तो निकल ही सकता है। रिक्शा चालक त्रिवेणीराम की हालत भी कुछ ऐसी ही है। रिक्शा से परिवार चलाने लायक आय न होने पर एक छोटी कंपनी में नौकरी पकड़ ली। उन्होंने कहा कि जब तक हालात पहले जैसे नहीं हो जाते परिवार चलाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही होगा। उन्होंने बताया कि उनके कई रिक्शा चालक तो रिक्शा चलाना बंद कर सब्जी बेचने लगे हैं। पवन राय नामक रिक्शा चालक ने बताया कि लॉकडॉउन के कुछ दिन पहले ही वह गांव से आया था। लॉकडाउन से अब तक हालात सुधरे नहीं है। लेकिन इसी उम्मीद पर रोजाना स्टैन्ड पर आते हैं कि आज दिन अच्छा बीतेगा।

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