वापी शहर में 30 हजार से ज्यादा रिक्शा
वापी में करीब 30 हजार से ज्यादा रिक्शा हैं। इनमें से करीब दो हजार से ज्यादा रिक्शा वाले विभिन्न स्कूलों में विद्यार्थियों को पहुंचाने और लाने का काम करते थे। इसके अलावा पूरे दिन सवारी भी भरपूर मिलती थी। इसके अलावा भी बड़ी संख्या में नौकरी पर जाने वाले और ट्रेन के यात्रियों से रिक्शा भरी रहती थी। अन्य कामों से भी लोग बड़ी संख्या में निकलते थे। लेकिन अभी इनमें से ज्यादातर प्रवृत्तियां बंद हैं या सीमित तौर पर चल रही हैं। जिसका सीधा असर रिक्शा चालकों की आय पर पड़ा है। कई साल से रिक्शा चालक परिवार चलाने वाले विनोद जैसवाल ने बताया कि घर से इसी उम्मीद में निकलते हैं कि शायद आज अच्छी कमाई हो लेकिन शाम को घर जाने के समय तक उत्साह जनक कमाई नहीं होती है। कई बार तो पूरे दिन में एक या दो सवारी ही मिलती है। विनोद जैसवाल के अनुसार पहले नजदीकी बाजार में जहां लोग रिक्शा में जाते थे अब वहां तक पैदल जाना पसंद करते हैं। जैसे हालात हैं, उससे मन में निराशा घर कर रही है।
खर्चे बढऩे और रिक्शा की आय कम होने का ही असर है कि कई रिक्शा चालक रात में सिक्योरिटी गार्ड या कंपनियों में नौकरी करने लगे हैं। छीरी निवासी रामजन्म दिवाकर ने बताया कि पहले दो स्कूलों के छात्रों को छोडऩे तथा दिन में सवारियां ढोने से अच्छी खासी आय हो जाती थी। इससे मकान की किस्त और बच्चों की पढ़ाई करवा सकता था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। कुछ दिन तक रिक्शा चलाकर देख लिया। लेकिन कई दिन तो ईंधन का खर्च ही माथे पड़ गया। इसे देखते हुए एक ठेकेदार की मदद से रात के लिए कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी पकड़ ली है। यह बहुत अच्छा तो नहीं लेकिन परिवार का खर्च तो निकल ही सकता है। रिक्शा चालक त्रिवेणीराम की हालत भी कुछ ऐसी ही है। रिक्शा से परिवार चलाने लायक आय न होने पर एक छोटी कंपनी में नौकरी पकड़ ली। उन्होंने कहा कि जब तक हालात पहले जैसे नहीं हो जाते परिवार चलाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही होगा। उन्होंने बताया कि उनके कई रिक्शा चालक तो रिक्शा चलाना बंद कर सब्जी बेचने लगे हैं। पवन राय नामक रिक्शा चालक ने बताया कि लॉकडॉउन के कुछ दिन पहले ही वह गांव से आया था। लॉकडाउन से अब तक हालात सुधरे नहीं है। लेकिन इसी उम्मीद पर रोजाना स्टैन्ड पर आते हैं कि आज दिन अच्छा बीतेगा।