महिला भी हर वो काम कर सकती है, जो एक पुरुष कर सकता हैं। मुझे भी एक महिला के रूप में जन्म से तो एक पहचान मिली ही हैं लेकिन मैं कर्म से अपनी पहचान बनाना चाहती हूं। जानती हूं मेरी राह इतनी आसान नहीं लेकिन असंभव भी नहीं हैं। यह कहना सूरत की 25 वर्षीय बेटी निधि गांधी का। राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर पावरलिफ्टिंग व वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण समेत एक दर्जन से अधिक पदक जीतने वाली निधि बताती है कि जब मैं 12वीं में थी तब आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कसरत करनी शुरू की थी।
मुझे शारीरिक रूप से फिट होने में मेरे भाई ने बहुत मदद की। फिर मैंने जिम जाना शुरू किया। वहां पावरलिफ्टिंग और वेटलिफ्टिंग में मेरी रुचि जगी। मैंने इसी फील्ड में आगे बढ़ने का निश्चय कर लिया। जब घर परिवार व अन्य लोगों को पता चला तो किसी ने मेरा उत्साह नहीं बढ़ाया। मुझे हतोत्साहित करने का प्रयास किया गया।
मुझे कहा जाता था कि यह सब महिलाओं का काम नहीं हैं। तुम्हें यह नहीं करना चाहिए, इससे तुम्हारा शरीर पुरुषों जैसा हो जाएगा। पर मैंने तय कर लिया था कि इसी क्षेत्र में अपनी पहचान बनाऊंगी। मैं अपने निश्चय दृढ़ रही। रोक-टोक के बावजूद मैं नियमित अभ्यास व प्रतियोगिताओं की तैयारी करती रही। साथ-साथ मेरी पढ़ाई में चलती रही, मैनें ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में मास्टर्स की डिग्री भी हासिल की लेकिन मेरा फोकस खेल पर ही रहा। विश्वविद्यालय व एसोसिएशन्स की पावर लिफ्टिंग व वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना जारी रखा।
जब मैनें पहली बार सफलता हासिल करते हुए पदक जीता तो मेरे परिवार की सोच बदली। मेरे पिता सभी प्रतियोगिताओं में मेरे साथ आने लगे और मेरा उत्साह बढ़ाने लगे। इससे मुझे दो गुनी ताकत मिली, मैंने राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर 16 पदक जीते। इनमें 6 स्वर्ण पदक भी शामिल हैं। अब मेरा लक्ष्य इस खेल में अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करना है। भारत को दुनिया में शीर्ष तक पहुंचना हैं। अपने लक्क्ष्य को हासिल करने के लिए प्रतिदिन पांच घंटे अभ्यास कर रही हूं।
प्रबंधक की नौकरी छोड़ी खेल के साथ साथ मैनें अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। मैंने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। जिसके चलते मुझे प्रबंधक की जॉब भी मिली। इससे मेरी आर्थिक मुश्किलें तो हल हो जाती लेकिन अपने खेल को मैं पूरा समय नहीं दे पा रही थी। इसलिए मैनें नौकरी छोड़ दी और कोचिंग को आय का जरिया बनाया।
अपना खर्च खुद वहन किया निधि ने बताया कि मेरे पिता टेम्पो चलाते है, वे चाह कर भी मेरा खर्च नहीं उठा सकते है। जिम के खर्च के साथ डाइट के लिए महंगे प्रोटीन सप्लीमेंट लेने पड़ते हैं। इसलिए मैनें अपना खर्च खुद उठाने का निर्णय किया। इसलिए मैनें खेल के साथ कोचिंग भी शुरू की। नेशनल स्र्पोट्स इंस्टीट्यूट पटियाला से वेटलिफ्टिंग कोचिंग, स्पोर्ट्स न्यूट्रीशन, स्पोर्ट्स इंजरी के कोर्स किए। खेल के साथ-साथ कोचिंग भी शुरू की।
कोरोना में हुई मुश्किल कोरोना काल सभी लोगों के लिए मुश्किलों से भरा था। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। जिम मैं मेरा नियमित अभ्यास छूट गया। घर पर कसरत के उपकरण नहीं थे, डाइट भी प्रभावित हुई। फिर भी खुद को फिट रखने के लिए मैं जो कर सकती थी मैंने किया। कोरोना के बाद फिर से लय हासिल कर मैं वेटलिफ्टिंग में नेशनल तक पहुंची अब मेरा लक्क्ष्य इंटरनेशनल तक पहुंचने का हैं।