संकट में कपड़ा कारोबार : अमरीका और यूरोप के देशों से संधि का इंतजार
प्रदीप मिश्रा सूरत. जीएसटी के बाद से मंदी की मार झेल रहा कपड़ा उद्योग विदेश के बाजारों में भी दूसरे देशों के मुकाबले टिक नहीं पा रहा है। एशिया के जिन देशों से हमारी मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) है, वहां से कम कीमत पर कपड़े आ रहे हैं, लेकिन यहां से उन देशों में हम कपड़े नहीं भेज पा रहे। इससे चलते कपड़ा उद्योग संकट में आ गया है। अमरीका और यूरोप के देशों से व्यापार संधि नहीं होने से देश के उद्यमी वहां से भी मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं। सूरत समेत पूरे देश का कपड़ा उद्योग संघर्ष के दौर से गुजर रहा है। सरकार कुछ नीतियां बदले तो कपड़ा उद्योग के अच्छे दिन आ सकते हैं। भारत की वियतनाम, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश सहित कुछ देशों से कई वस्तुओं के व्यापार को लेकर संधि है। लेकिन कपड़ा उद्यमियों को इन देशों से कोई लाभ नहीं मिल पाया है। भारत और बांग्लादेश के बीच संधि होने से कपड़ा उद्योग बर्बादी की ओर आ गया है। क्योंकि कई उद्यमी चीन से सीधे देश में आयात करने की जगह बांग्लादेश आयात करते हैं और वहां से भारत में बिना आयात शुल्क चुकाए यहां मंगवा लेते हैं। इससे सरकार को सीधे राजस्व हानि हो रही है तो चीन का कपड़ा सस्ता होने से यहां का कपड़ा बिकना बंद हो गया है। कपड़ा उद्यमी कई बार इसकी शिकायत कर चुके, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। हर तरह से चुनौतियां झेल रहा कारोबार
भारत के उद्यमी यदि अमरीका और यूरोप के देशों में माल भेजना चाहते हैं तो सामने चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, पाकिस्तान जैसे देशों की चुनौती है। इन देशों में प्रतिव्यक्ति आय विकासशील देशों से कम होने के कारण जीएसटी प्लस देशों का दर्जा मिला है। इसके चलते ये देश यूरोपीय संघ और अमरीका के देशों में बिना ड्यूटी के कपड़े निर्यात कर सकते हैं, लेकिन भारत के कपड़ों पर 12 प्रतिशत ड्यूटी लगती है। इससे हमारे कपड़े महंगे हो जाते हैं और खमियाजा देश के उद्योग को उठाना पड़ता है। देश की तरक्की भी कपड़ा उद्योग पर भारी
वल्र्ड ट्रेड ओर्गेनाइजेशन एग्रीमेन्ट की शर्तों के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी होने के कारण यहां के निर्यातकों को मिलने वाली सब्सिडी सरकार को खत्म करनी पड़ेगी। ऐसे में यहां के कपड़े और महंगे हो जाएंगे, तब मुसीबत और बढ़ जाएगी। कपड़ा उद्यमी इसके विकल्प के तौर पर यूरोपीय संघ और अमरीका के देशों से भारत को फ्री ट्रेड एग्रीमेन्ट को मानते हैं। यदि भारत और इन देशों के बीच एग्रीमेन्ट हुआ तो भारत के कपड़ों पर टैक्स नहीं लगेगा और बड़े पैमाने पर इन देशों में कपड़ा बेच सकेंगे। हाल में ही सरकार ने निर्यातकों को सब्सिडी देने के स्थान पर अन्य तरीके से छूट दिए जाने का फैसला किया है। इसके अलावा बिजली बिल में भी राहत देने की बात चल रही है। फ्री ट्रेड एग्रीमेन्ट ही विकल्प भारत के कपड़ा निर्यातक अमरीका और यूरोप के देशों के साथ एफटीए नहीं होने के कारण मार खा रहे हैं। अन्य देशों के कपड़े वहां सस्ते मिल रहे हैं। जिन देशों से हमारा एफटीए है, वहां से कोई लाभ नहीं मिला, बल्कि नुकसान हो रहा है। गिरधर गोपाल मूंदड़ा, निर्यातक
कपड़ा उद्यमियों को राहत की जरूरत सूरत समेत देशभर का कपड़ा उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहा है। विदेश में निर्यात बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन विदेशों में एफटीए के अभाव में हम लाभ नहीं ले पा रहे। दिनेश जवेरी, निर्यातक
सरकार से की है मांग कई बार सरकार से यूरोपीय संघ और अमरीका से फ्री ट्रेड एग्रीमेन्ट करने और अंतरराष्ट्रीय दर पर निर्यातकों को बैंक लोन उपलब्ध कराने की मांग की है। कपड़े पर लगने वाले टैक्स को वापस करने की भी बात की है। सरकार इस दिशा में सोच रही है। नारायण अग्रवाल, प्रमुख, सिन्थेटिक रेयोन टैक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल
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