श्रमिकों समेत बड़ी संख्या में प्रवासियों के पलायन का असर चॉल मालिकों एवं इस विस्तार के दुकानदारों पर व्यापक तौर पर हुआ है। चणोद, डुंगरा, डुंगरी फलिया, छीरी, छरवाडा़, बलीठा, मोराइ, सुलपड़ समेत श्रमिक बहुल विस्तारों में सौ से लेकर तीन सौ तक कमरों वाली चालें स्थित हैं। लोगों के पलायन के बाद से ज्यादातर चाल खाली हो गई हैं। इस विस्तार में किराना समेत अन्य दुकानदारों का व्यापार इन श्रमिकों पर ही निर्भर रहता था। अधिकांश व्यापार उधार पर ही चलता था। पहले कंपनियों से वेतन मिलने में देरी या आधी तनख्वाह के कारण दुकानदारों और रूम मालिकों को बकाया पूरा नहीं मिल पाया। अब हजारों लोगों के पलायन कर जाने से कइयों के रुपए भी फंस गए हैं तो ग्राहकों का टोटा भी हो गया है। छीरी पंचायत के रणछोड़ नगर विस्तार के दुकानदार ने बताया कि हालात ऐसे थे कि पुराने बकाए के लिए मजदूरों पर दबाव नहीं डाल सकते थे। ट्रेनों के शुरू होने से बहुत से लोग गांव निकल गए हैं। पूरा व्यापार इन्हीं पर निर्भर था। ऐसे में उनके गांव चले जाने और आने को लेकर अनिश्चितता के कारण कुछ समझ नहीं आ रहा है। बहुत से चाल मालिक तो स्वयं ही दुकान चलाते हैं और उनके यहां रहने वाले श्रमिकों को उनकी दुकान से ही सामान लेना जरूरी रहता है। ऐसे लोगों को दोहरा झटका लगा है, रुम भी खाली हो गए हैं और दुकान भी बंद होने की नौबत आ गई है।
डुंगरा में नवदुर्गा सेवा ट्रस्ट के अनुग्रह सिंह के अनुसार मजदूरों को मजबूरी में पलायन करना पड़ा है। प्रशासन से लेकर कंपनियों द्वारा परेशानी की घड़ी में श्रमिकों को जो मदद करनी चाहिए थी वह नहीं की गई और उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि डुंगरा और लवाछा विस्तार के हजारों लोग दानह में काम करते हैं, लेकिन लॉकडाउन में कंपनियों के शुरू होने के बाद भी इस क्षेत्र के लोगों को काम पर जाने को नहीं मिला। कितने दिन मजदूर बिना रुपए और भोजन के यहां रहते। अब जब किसी तरह वे अपने गांव निकल गए हैं तो उनकी अहमियत धीरे धीरे सभी को समझ आने लगी है।