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सूरत

मजदूरों के पलायन से व्यापार प्रभावित

वलसाड जिले में 55 श्रमिक ट्रेनों एवं अन्य वाहनों से हजारों श्रमिक चले गए
In Valsad district, 55 workers left thousands of workers by trains and other vehicles

सूरतJun 01, 2020 / 12:46 am

Sunil Mishra

मजदूरों के पलायन से व्यापार प्रभावित

lockdown

वापी. लॉकडाउन के कारण परेशान हुए श्रमिकों समेत प्रवासियों के पलायन का असर कंपनियों के साथ साथ दुकानदारों के व्यापार पर भी दिखने लगा है। श्रमिक बहुल इलाकों की दुकानों पर इसका अधिक असर दिख रहा है। प्रशासन की मानें तो वापी समेत जिले से करीब 55 ट्रेनों में हजारों प्रवासी अपने गृहराज्य की ओर पलायन कर चुके हैं। इसके अलावा हजारों लोग निजी वाहनों से भी निकल गए हैं।
शुरूआत में इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के लोग भले ही यह दावा कर रहे थे कि हर साल इस सीजन में मजदूरों का पलायन होता है और इंडस्ट्रीज पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। हकीकत में इसका असर अब दिखने लगा है। मजदूरों की कमी के चलते आठ घंटे की जगह 12 से 16 घंटे तक का काम लिया जा रहा है। लेबर कांट्रेक्टरों पर भी कंपनियों का दबाव दिख रहा है।
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मां गांव कब पहुंचेंगे
पलायन से चाल मालिकों एवं दुकानदारों की हालत पतली
श्रमिकों समेत बड़ी संख्या में प्रवासियों के पलायन का असर चॉल मालिकों एवं इस विस्तार के दुकानदारों पर व्यापक तौर पर हुआ है। चणोद, डुंगरा, डुंगरी फलिया, छीरी, छरवाडा़, बलीठा, मोराइ, सुलपड़ समेत श्रमिक बहुल विस्तारों में सौ से लेकर तीन सौ तक कमरों वाली चालें स्थित हैं। लोगों के पलायन के बाद से ज्यादातर चाल खाली हो गई हैं। इस विस्तार में किराना समेत अन्य दुकानदारों का व्यापार इन श्रमिकों पर ही निर्भर रहता था। अधिकांश व्यापार उधार पर ही चलता था। पहले कंपनियों से वेतन मिलने में देरी या आधी तनख्वाह के कारण दुकानदारों और रूम मालिकों को बकाया पूरा नहीं मिल पाया। अब हजारों लोगों के पलायन कर जाने से कइयों के रुपए भी फंस गए हैं तो ग्राहकों का टोटा भी हो गया है। छीरी पंचायत के रणछोड़ नगर विस्तार के दुकानदार ने बताया कि हालात ऐसे थे कि पुराने बकाए के लिए मजदूरों पर दबाव नहीं डाल सकते थे। ट्रेनों के शुरू होने से बहुत से लोग गांव निकल गए हैं। पूरा व्यापार इन्हीं पर निर्भर था। ऐसे में उनके गांव चले जाने और आने को लेकर अनिश्चितता के कारण कुछ समझ नहीं आ रहा है। बहुत से चाल मालिक तो स्वयं ही दुकान चलाते हैं और उनके यहां रहने वाले श्रमिकों को उनकी दुकान से ही सामान लेना जरूरी रहता है। ऐसे लोगों को दोहरा झटका लगा है, रुम भी खाली हो गए हैं और दुकान भी बंद होने की नौबत आ गई है।
मजदूरों की उपेक्षा जिम्मेदार
डुंगरा में नवदुर्गा सेवा ट्रस्ट के अनुग्रह सिंह के अनुसार मजदूरों को मजबूरी में पलायन करना पड़ा है। प्रशासन से लेकर कंपनियों द्वारा परेशानी की घड़ी में श्रमिकों को जो मदद करनी चाहिए थी वह नहीं की गई और उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि डुंगरा और लवाछा विस्तार के हजारों लोग दानह में काम करते हैं, लेकिन लॉकडाउन में कंपनियों के शुरू होने के बाद भी इस क्षेत्र के लोगों को काम पर जाने को नहीं मिला। कितने दिन मजदूर बिना रुपए और भोजन के यहां रहते। अब जब किसी तरह वे अपने गांव निकल गए हैं तो उनकी अहमियत धीरे धीरे सभी को समझ आने लगी है।

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