ये हैं मुहूर्त देवउठनी ग्यारस के अलावा 23, 28 और 29 नवम्बर, 03, 04, 10 और 11 दिसम्बर, सात फरवरी, तीन, छह और आठ मार्च को भी शादियां होंगी। इन दिनों में कई शादियों के कार्ड घर पर आएंगे।
पूजा विधि को बनाएं रखें पारंपरिक
देव उठनी एकादशी के दिन सायंकाल शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल को स्वच्छता के साथ साफ कर लें तथा आटा एवं गेरू (लाल रंग) से भगवान के जागरण व स्वागत के लिए रंगोली बनाएं, प्रतीक स्वरूप भगवान के पैर मांडें। ग्यारह घी के दीपक देवताओं के निमित्त जलाएं। हल्दी एवं गुड़ से पूजा करें।
भगवान के भोग में ऋतु फल, लड्डू, बतासे, गुड़, मूली, गन्ना, ग्वारफली, बेर, नवीन धान्य इत्यादि समस्त पूजा सामग्री तथा प्रसाद रखें। शुद्ध जल, सफेद वस्त्र, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, पुष्पमाला, अक्षत, रोली, मोली, लौंग, पान, सुपारी, हल्दी, नारियल, कर्पूर, पंचामृत, इत्यादि पूजा सामग्री से देवताओं का पूजन कर उन्हें रिझाने का प्रयास करें।
इस दिन देवी-देवताओं से वर्ष पर्यन्त सुख समृद्धि की कामना करें। विवाह योग्य संतानों का शीघ्र विवाह हो तथा विवाहितों के उत्तम संतान हों, ऐसी कामना के साथ देवताओं की स्तुति तथा गुण-गान करें।
तुलसी विवाह का है विशेष महत्त्व
पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष में देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी शालिग्राम के विवाह का महत्त्व है। यह महत्त्व प्रकृति और परमात्मा में सामंजस्य का दिन है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह के संकल्प और उसे पूरा करने सेे व्यक्ति सुखी तथा समृद्ध होता है। संकल्प पूर्ण करने में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
विवाह योग्य जिन बच्चों की जन्म कुंडली में मांगलिक दोष के कारण विघ्न आ रहा हो उनके द्वारा तुलसी शालिग्राम विवाह करने से मांगलिक दोष का परिहार होता है। इसी प्रकार जिन दम्पत्तियों को कन्या सुख प्राप्त नहीं है, उन्हें तुलसी विवाह करने से कन्या दान का फल मिलता है। तुलसी विवाह के दिन वस्त्र आदि से तुलसी शालिग्राम का श्रृंगार करें। सायंकाल तोरण तथा ईख (गन्ने) का मंडप बनवाकर गणपति मातृकाओं आदि का पूजन के बाद विधिवत तुलसी विवाह करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और इस दिन का विशेष लाभ उठाएं।