तब से माता की पूजा-अर्चना नाथ संप्रदाय परिवार के लोगों को सौंपी गई। नवरात्र के दौरान यहां दर्जनों लोग पूजा अर्चना करने आते है, वहीं मंदिर के परिक्रमा लगाकर मन्नत मांगते है। यहां पर नवरात्र की पंचमी पर मेला लगता है, लेकिन इस बार कोरोना को लेकर मेले का आयोजन निरस्त कर रखा है।
वहीं सोशल डिस्टेंस के साथ श्रद्धालु दर्शन लाभ ले रहे है। यहां मंदिर विकास समिति की ओर से लोगों की सुविधाओं के लिए आधा दर्जन धर्मशाओं व बरामदों का निर्माण करवा गया है। वहीं पेयजल के लिए पानी की टंकियों व शौचालय आदि बना रखे है।
वर्षों पूर्व पहाड़ी पर स्थित मंदिर काफी ऊंचाई पर होने व वहां पर चढऩे के लिए पुजारी के साथ ही श्रद्धाओं को काफी परेशानी उठानी पड़ती थी। वहां पहाड़ पर चढऩे के लिए कोई भी सुविधा भी नहीं थी।
800 वर्ष प्रकट पूर्व हुई थी कंकाली माता,लोगों की है अटूट आस्था
निवाई. ऋ षि मुनियों की तपोभूमि निवाई के गणगौरी बाजार में करीब 800 वर्ष पूर्व धरती की कोख से प्रकट हुई कंकाली माता का मंदिर स्थापित है। बुजुर्ग बताते है कि जयपुर दरबार ने झिलाय नरेश को संदेश भेजकर मां कंकाली का मंदिर निर्माण व प्राण प्रतिष्ठा करवाने का आदेश दिया था, जिस पर ने छतरीनूमा चबूतरा बनवाकर कंकाली माता की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई थी।
निवाई. ऋ षि मुनियों की तपोभूमि निवाई के गणगौरी बाजार में करीब 800 वर्ष पूर्व धरती की कोख से प्रकट हुई कंकाली माता का मंदिर स्थापित है। बुजुर्ग बताते है कि जयपुर दरबार ने झिलाय नरेश को संदेश भेजकर मां कंकाली का मंदिर निर्माण व प्राण प्रतिष्ठा करवाने का आदेश दिया था, जिस पर ने छतरीनूमा चबूतरा बनवाकर कंकाली माता की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई थी।
किदवन्तियों व श्रीशक्ति पीठ सेवा संस्थान के शंकरलाल सोनी के अनुसार जयपुर एवं झिलाय दरबार स्वयं या उनका कोई भी प्रतिनिधि प्रत्येक नवरात्रा में माता के दरबार में पूजा अर्चना करने और प्रत्येक नवरात्र की अष्ठमी को जयपुर दरबार अपने पूरे परिवार के साथ राजशाही अन्दाज में माता के दरबार में मत्था टेकने के लिए आते थे।वहीं माता की ख्याति देख मुगल शासक औरंगजेब ने कंकाली माता व भगवान राधादामोदर तथा जलंधरनाथ महलों पर आक्रमण कर दिया।
मुगल शासक की सेना कुछ कर पाती इससे पूर्व ही माता के मंदिर की छतों पर लगी लाखों मधुमुख्खियों ने सैनिकों को निवाई से 5 किलोमीटर दूर भागकर दिया। इस पर मुगल शासक सेना सहित पुन: कंकाली माता, राधा दामोदर मंदिर व जलन्धर नाथ के महलों में पहुंचा और पूजा अर्चना करने के बाद सोने का छत्र चढ़ाया। इसका उल्लेख फ ारसी भाषा में द्वारों पर लगे शिला लेख में भी है।