scriptvideo: अकाल न सुकाल , मध्यम रहेगा साल, सीमा लांघ पाया और न ही दूनी दरवाजे को भेद पाया दड़ा | Famine will not be dry medium will remain | Patrika News
टोंक

video: अकाल न सुकाल , मध्यम रहेगा साल, सीमा लांघ पाया और न ही दूनी दरवाजे को भेद पाया दड़ा

लगभग तीन घण्टे चले खेल में कभी दड़ा इधर लुढक़ा तो कभी उधर। खेल ने एक बार फिर आने वाले साल के मध्यम रहने के संकेत दिए हैं।
 

टोंकJan 15, 2018 / 07:29 am

pawan sharma

 दड़े पर जोर आजमाइश करते ग्रामीण

आवां में दड़े पर जोर आजमाइश करते ग्रामीण।

आवां. मकर सक्रान्ति पर दड़े के खेल ने एक बार फिर आने वाले साल के मध्यम रहने के संकेत दिए हैं। दड़ा न अखनियां दरवाजे की सीमा लांघ पाया और न ही दूनी दरवाजे को भेद पाया। कस्बे सहित बारहपुरों के हजारों युवाओं की तीन घण्टे जोर-आजमाइश चलती रही। दोनों खेमों में बराबर की टक्कर के कारण लगभग 80 किलो वजनी दड़ा बिना परिणाम दिए गोपाल चौक के इर्द-गिर्द ही रहा।
मकर सक्रान्ति पर्व पर कस्बे में दड़ा महोत्सव पर ग्रामीण सभ्यता व संस्कृति की महक उड़ती रही। मकर सक्रांति को सुबह से ही बारहपुरों के ग्रामीणों का आवां में सैलाब उमडऩा शुरू हो गया। गोपाल चौक तक पंहुचने वाले सभी रास्ते भीड़ से ठसाठस थे। खेेल को लेकर पुरुषों का जोश व ग्रामीण अंचल की महिलाओं की उमंग परवान पर थी।
ऐसे की शुरुआत
सरपंच राधेश्याम चंदेल ने बताया कि गढ़ पैलेस में दिनभर पानी में भीगो कर और वजनी बनाए गए दड़े को दोपहर साढे बारह बजे गोपाल चौक में रखा गया। दड़े पर जोर-आजमाइश करने से पहले विधि-विधान से पूजा की गई। इसके पश्चात आवां की पूर्व रियासत के जयेन्द्र सिंह ने पैर लगा कर दड़ा महोत्सव की
शुरुआत की।
इसके बाद आवां सहित बारहपुरों के नौजवान ऐसे पिल पड़े कि उनको अपने शरीर की भी सु़ध नहीं रही। इसके बाद युवाओं का दड़े पर जोर-आजमाइश का दौर शुरू हुआ। लगभग तीन घण्टे चले खेल में कभी दड़ा इधर लुढक़ा तो कभी उधर। खिलाडिय़ों में जोश में नजर आ रहा था, मन्दिर, स्कूल और मकानों की छतों से खेल देख रही युवतियों के इशारे और ताने भी उनका हौसला अफजाई कर रहे थे।
गोपाल चौक हुआ रंगीन

दोपहर होते-होते दड़े का मैदान बने गोपाल चौक की रंगत कुछ अलग ही नजर आ रही थी। खेल शुरू होते ही लोग दो खेमों में बट गए। दूनी दरवाजे और अखनियां दरवाजे की ओर से आने वाले खिलाड़ी विपरीत दिशा में गोल दागने को पूरी ताकत से दड़े पर टूट पड़े। हर कोई हाथों की कैचियां बना कर दड़े को लुढक़ाने में मशगूल था।
ये युवा बारी-बारी से दड़े पर पैर रख ऊपर चढ़ किलकारी मार कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। धक्का-मुक्की में तन के कपड़े तार-तार हो रहे थे तो उनकी जूतियां हवाई यात्रा कर रही थी। दर्शक दीर्घा में विभिन्न ग्रामीण पोशाकों में सजी-धजी युवतियां आंखों और हाथों के इशारों से युवाओं का हौसला बढ़ा रही थी।
समान में उड़ती रंग-बिरंगें पतंगों ने गोपाल-चौक को ओर रंगीन बना दिया। दड़े के परिणाम से अकाल-सुकाल का संकेत मिलता है। ऐसी मान्यता रही है कि दड़ा दूनी दरवाजे को पार कर जाए तो आने वाला वर्ष खुशहाली और समृद्धि लाने वाला होगा। वहीं अगर यह अखनियां दरवाजा भेद जाए तो अकाल पडऩे के कयास लगाए जाते है।इस बार दड़ा किसी भी दरवाजे को नहीं भेद सकने के कारण लोगों से येे कहते सुना गया अकाल न सुकाल अब रहेगा मध्यम साल।
इन्होंने भी अजमाया दमखम

इस दौरान मण्डी अध्यक्ष बाबू लाल जांगिड़, उपाध्यक्ष खेमराज गुर्जर, सरपंच राधेश्याम चन्देल, शिक्षक संघ अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह नरूका, सृजन संस्थान के अध्यक्ष किशन पारीक, भंवर लाल, शिवराज साहू आदि ने आमजन के साथ दड़ा खेलने का लुत्फ उठाया।
खोई चीज लौटाने की परम्परा
खेल में किसी की कोई वस्तु गिरने लौटाने की परम्परा रही है। आवां निवासी घासी लाल बलाई को चांदी का कड़ा मिलने पर उसने मालिक को ढूंढ कर उसका कड़ा लौटा दिया।
सांस्कृतिक धूम
दड़ा महोत्सव में तीन दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम की परम्परा चली आ रही है। इस बार भी श्रीसरदार सिंह माध्यमिक विद्यालय में 15 जनवरी को रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन रखा गया है। 25 वें स्थापना दिवस पर विद्यालय के विद्यार्थी मनमोहक प्रस्तुतियां देंगे

पुलिस रही चौकस
दड़े के दौरान वैसे कभी कोई अप्रिय वारदात नहीं हुई पर चौकसी के तौर पर पुलिस पूरी तरह मुस्तैद रही। पुलिस के जाप्ते ने गांव का दौरा कर समाजकंटकों पर पैनी नजर रखी। गोपाल चौक के साथ दूनी दरवाजा भी शान्ति व सुरक्षा के केन्द्र बिन्दू रहे।

Home / Tonk / video: अकाल न सुकाल , मध्यम रहेगा साल, सीमा लांघ पाया और न ही दूनी दरवाजे को भेद पाया दड़ा

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो