—- ओपीडी का गणित: पहुंचे मरीजों के लिहाज से 50 से कम – 2 बार 50 से 100 के बीच- 8 बार 100 से 150 के बीच- 7 बार 150 से 200 के बीच- 2 बार 200 से 300 के बीच- 3 बार 300 से ऊपर – 3 बार
—– ये जानना इसलिए जरूरी हर किसी के लिए ये जानना जरूरी है कि जैसे-जैसे ये वैश्विक समस्या भारत में तेजी पकड़ती गई वैसे-वैसे मरीज खुद की चिंता में ओपीडी में अधिक संख्या में पहुंचते रहे।
———— ओपीडी में इस तरह के मरीज पहुंचे – अधिकांश मरीज बेहद डरे हुए पहुंचते रहे, हालंाकि जो विदेशी मरीज थे, वे भारतीयों से कम भयभीत नजर आए। – सामान्य सर्दी, जुकाम के मरीज भी खुद को बेहद बीमार या कोरोना संक्रमित ही मानकर जांच के लिए पहुंचते रहे।
– वार्ड में पहुंचने के दौरान काफी डरे हुए थे, लेकिन सामान्य काउंसंलिग के बाद उनमें अन्तर दिखा। – थर्मल थर्मामीटर से जांच के बाद अधिकांश ये पूछते रहे कि उन्हें क्या कोरोना संक्रमण है।
– ओपीडी से यदि किसी को स्वाब टेस्ट के लिए कहने पर मरीज ज्यादा नर्वस नजर आते। ——- पहले ओपीडी कोरोना वार्ड में ही चलती थी, लेकिन जैसे ही इसके लिए विशेष व्यवस्थाओं की शुरुआत हुई तो उसे सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक में शुरु किया गया, यहां नियमित चिकित्सकों की संख्या बढ़ाई गई।
– मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सोशियल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने के लिए ओपीडी में फर्श पर गोले लगाए गए हैं, ताकि मरीज उन गोलों में दूर-दूर खड़े होकर अपनी जानकारी दें, बाद में जरूरत पर उन्हें आगे की जांच के लिए भेजा जाता है।
– ओपीडी में सामान्य मरीजों के पहुंचने पर उनकी काउंसंलिंग की भी व्यवस्था रखी गई है। – ओपीडी में जो भी चिकित्सक, जांच कर्मी या अन्य कार्मिक, सभी पूरे पीपीई किट में रहते हैं, ताकि किसी भी प्रकार का संक्रमण का उन्हें असर उन्हें ना हो।