इस विधेयक से न केवल लोकतंत्र कमजोर होगा वरन राजस्थान में भ्रष्ट्राचार को बढावा मिलेगा तथा किसी भी दागी लोक सेवक को यह एक प्रकार से बचाने के लिए सुरक्षा कवच का काम करेगा। यह विधेयक भारतीय संविधान की भावना के अनुकूल न होने के कारण अनैतिक व असंवैधानिक है। राजस्थान सरकार की ओर से जिस प्रकार इस विधेयक को पेश करने में जल्दबाजी दिखायी गयी है उससे सरकार की मंशा पर ही सवालिया निशान लग गये है तथा प्रदेश में सरकार के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश प्रदेश भर में समाचार पत्रों में ही दिख रहा है।
READ MORE: नए बिल को लेकर चौतरफा घिरी वसुंधरा सरकार, तो इसलिए विपक्ष के साथ पक्ष ने भी चलाए शब्दों के बाण सरकार अपने आप को लोककल्याणकारी व संवेदनशील होने का दावा करती है तो इस प्रकार के विधेयक का कोई औचित्य नहीं है। हां यह सही है कि विधानसभा में राज्य सरकार के पास बहुमत है पर इसका मतलब यह तो नहीं कि प्रदेश की जनता की भावना के प्रतिकूल कोई विधेयक वहां पर आनन फानन में पास कर कानून बना दिया जाये। अगर ऐसा होता है तो यह आपातकाल के समय की याद दिलायेगा। राजस्थान में पत्रकारों का सबसे बडा प्रतिनिधि संगठन होने के नाते राजस्थान पत्रकार परिषद , जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) और लेकसिटी प्रेस क्लब ने प्रदेश के सभी पत्रकारों के संगठनों से रायशुमारी करके इस विधेयक का हर स्तर पर विरोध करने का निर्णय लिया है।
ज्ञापन देने वालों में जार अध्यक्ष डॉ. तुक्तक भानावत, लेकसिटी प्रेस क्लब अध्यक्ष रफीक खान पठान, पूर्व अध्यक्ष संजय खाब्या, प्रतापसिंह राठौड़़, मनु राव व पत्रकार जयकुमार आचार्य, भूपेन्द्रकुमार चौबीसा, कपिल श्रीमाली, अल्पेश लोढा, डॉ. रवि शर्मा, राजेन्द्रकुमार पालीवाल, अब्दुल अजीज सिंधी, भूपेश दाधीच, कैलाश टांक, रामसिंह चदाणा, प्रमोद श्रीवास्तव, शैलेष नागदा, देवीलाल मीणा आदि उपस्थित थे।