क्षेत्रवासियों ने बताया कि 2007 में थियेटर-पार्क बनाया गया था जिसके लिए करीब एक करोड़ रुपए का टेंडर हुआ था। दस साल बाद भी वहां न कोई थियेटर शो हुआ और न ही पार्क बन पाया। यूआईटी ने जब इसे बनाया, तब लोगों को उम्मीद थी कि पार्क और थियेटर बनने से क्षेत्रवासियों को इसका फायदा होगा। पत्रिका ने जब इस स्थान की पड़ताल की तो वहां शराबी दिखे और खाली बोतलें भी बिखरी पड़ी थी।
पार्क में बनाई थी छोटी सी झील
लोगों ने बताया कि पार्क में फतहसागर झील जैसा दिखता एक सरोवर बनाया गया था। परकोटे को भी हेरिटेज लूक दिया गया था। बताते हैं कि गत वर्ष झील को मिट्टी से भरवा दिया गया था। उस दौरान पार्क की सफाई करवाई गई थी, लेकिन इसके बाद पार्क पर ध्यान नहीं दिया गया। पार्क को गोद देने पर भी विचार किया गया था, लेकिन यह काम पूरा नहीं हो सका। लोगों का कहना है कि अगर पार्क को सुव्यवस्थित किया जाए तो आसपास के लोग इसका उपयोग कर सके।
प्रोजेक्ट हस्तांतरित कर दिया निगम को
यूआईटी ने इस प्रोजेक्ट की एनओसी नगर निगम को दे दी। नगर निगम इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत इसकी तस्वीर बदलने की योजना बनाई जा रही है।
ओपन थियेटर के एक ओर जिस हिस्से को पार्क के रूप में विकसित करना था, देखरेख के अभाव में बबूल उग गए, जिससे इसका उपयोग खुले में शौच के लिए हो रहा है। लोगों ने बताया कि पार्क की हालत बद से बदतर होती गई।
दूसरा सुखाडिय़ा सर्कल बना रहे
इस जगह का प्रोजेक्ट निगम ने हाथ में लिया है। गृहमंत्री, सांसद, ग्रामीण विधायक, महापौर, यूआईटी चेयरमैन आदि ने इसका मौका देखा है। निगम की निर्माण समिति प्रोजेक्ट पर अभी तकनीकी काम कर रही है और प्रयास है कि इसका दूसरा मिनी सुखाडिय़ा सर्कल जैसा बनाया जाए।
जगदीश मेनारिया, क्षेत्रीय पार्षद