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जब कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम् पर लग सकता है प्रतिबंध तो पद्मावती पर क्‍यों नहीं…

मेवाड़ के इतिहासकारों ने कहा कि जब दूसरी विवादितों फिल्मों पर लगा तो पद्मावती पर क्यों नहीं लग सकता

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उदयपुर . कमल हसन की फिल्म विश्वरूपम्, द विन्सी कोड, कास्सा कुर्सी सहित 30 से अधिक फिल्मों को सेंसर बोर्ड प्रतिबंधित कर चुका है। जब संजय लीला भंसाली की पद्मावती फिल्म से करोड़ों लोगों की भावना आहत हो रही है तो इसे भी प्रतिबंधित कर देना चाहिए। जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सलमान रशदी का सेटेनिक वर्सेज भी प्रतिबंधित किया गया था।


मेवाड़ के आमजन और इतिहासकारों की रायशुमारी में कुछ ये विचार सामने आए। इतिहासकार मानते हैं कि 1303 में चित्तौडगढ़़ में हुआ जौहर और साका गौरवशाली इतिहास है। करीब 8 महीने का अलाउद्दीन खिलजी चित्तौडगढ़़ दुर्ग की घेराबंदी कर बैठा रहा है। इस लंबे अंतराल दुर्ग में रसद सामग्री समाप्त हो गई। खिलजी के पास सैनिक भी ज्यादा थे। गंभीर स्थिति को देखते हुए पुरुषों ने साका करने का निर्णय किया। उसी समय रानी पद्मिनी सहित सभी महिलाएं जौहर करने के लिए तैयार हो गईं।


जौहर और साका है सही इतिहास
युद्ध में पराजय जैसी स्थिति पर वीर केसारिया बाना पहन अंतिम सांस तक युद्ध कर शत्रुओं को मारते हुए वीरगति पाते थे। साका का निर्णय होने पर महिलाएं जौहर करती थीं। सुहाग की शृंगार धारण सतीत्व की रक्षा के लिए अग्नि को समर्पित हो जाती थीं। यह इतिहास प्रचलित है चित्तौडगढ़़ का। खिलजी ने दुर्ग को हथियाने के लिए आक्रमण किया था, इसके पीछे स्पष्ट उदेश्य था साम्राज्य का विस्तार।

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रावल रत्नसिंह आत्मा, पद्मिनी परमात्मा
कई विद्वान जायसी के पद्मावत की दार्शनिक व्याख्या भी करते हैं। दार्शनिक व्याख्या के अनुसार रावल रत्नसिंह आत्मा हैं, रानी पद्मिनी परमात्मा। अलाउद्दीन माया यानी भ्रम है। तांत्रिक शैतान है जो आत्मा को परमात्मा से दूर करने का प्रयास करता है। रानी पद्मिनी भारतीय लोक समाज में पूज्य, श्रद्धा एवं सम्मान के रूप में स्थापित हैं। पद्मिनी को भारतीय नारी का आदर्श माना जाता रहा है। इन आदर्शों के प्रति मनोरंजन का भाव समाज को उद्वेलित कर देता है। जायसी का काव्य काल्पनिक है, इसका इतिहास से किसी प्रकार का संबंध नहीं है। जायसी अपने काव्य में कल्पनाओं के रंग भर कर सूफीवाद को पुष्ट किया है।
डॉ. चंद्रशेखर शर्मा, इतिहासकार मेवाड़
जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला साहित्य और फिल्में देश में पूर्व में भी प्रतिबंधित हुई हैं। रानी पद्मिनी जन भावनाओं से जुड़ी हैं इसलिए भंसाली की फिल्म को भी प्रतिबंधित करना चाहिए। जायसी के पद्मावत का इतिहास से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है। फिल्म रिलीज ही करनी है तो ऐतिहासिक पात्रों के नाम हटा लें, बाहुबली जैसे काल्पनिक बताकर लोगों को दिखाएं। इतिहास से खिलवाड़ क्यों कर रहे है ?
प्रो. पीएस. राणावत, समन्वयक भू धरोहर