राजस्थान के रण की यात्रा में तीसरे दिन सुबह की 9:30 बजे मैं उदयपुर की होटल से 35 किलोमीटर दूर गोगुंदा के लिए रवाना हुआ। गोगुंदा में महाराणा के हुए राजतिलक की धरा को करीब से देखने की उत्सुकता थी। गोगुंदा पहुंचा तो पाया कि महाराणा ने मेवाड़ राज्य की जिन वनवासी जातियों को संगठित किया और अपने हक के लिए संघर्ष करना सिखाया। उनमें से अधिकतर की पीढिय़ां गुजर गई, लेकिन संघर्ष की कहानी खत्म नहीं हुई। आजादी के 75 साल में मेवाड़ की भूमि पर बहुत कुछ बदला। आदिवासियों के पुनर्वास व कल्याण के लिए सरकारी प्रयास हो रहे हैं, लेकिन ये नाकाफी हैं। गोगुंदा, झाड़ोल एवं आदिवासी बहुल कोटड़ा क्षेत्र में पहाड़ी क्षेत्र होने व कृषि जोत कम होने के कारण आय के अन्य स्रोत नहीं है। ऐसे में लोगों को गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों में जाकर रोजगार तलाशना पड़ता है। पिछले कई साल से बड़ी संख्या में पलायन के कारण कई गांव खाली हो गए हैं। लोगों का कहना है कि जिला कलक्टर की ओर से मिशन कोटड़ा चलाया जा रहा है। ऐसे सार्थक प्रयास आगे बढऩे चाहिए। शिक्षा के साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे।
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गोगुंदा बाइपास चौराहे मिले पुष्करलाल सेन, उदयलाल गमेती, फतेहसिंह झाला व केसुलाल ने कहा कि गोगूंदा ग्राम पंचायत को मोटा गांव भी बोलते हैं, लेकिन यहां मोटा जैसा कुछ नहीं। आजादी के 75 साल में भी पंचायत के दर्जे से ऊपर कुछ नहीं बढ़ा। गांव में रोडवेज बसें पर्याप्त नहीं हैं। लोगों को जान जोखिम डालकर निजी बसों में यात्रा करनी पड़ रही है। गांवों में स्वास्थ्य सेवा माकूल नहीं। पेयजल के लिए तरसना पड़ रहा है। राजतिलक स्थल पर यशोदा मेघवाल बोलीं, मनरेगा में रोजगार मिल रहा है। चिकित्सा-बीमा एवं बिजली बिलों महंगाई से राहत देकर सरकार ने अच्छा कार्य किया है। सरकार की ओर से यहां फैक्ट्री लगानी चाहिए, ताकि गांव में ही रोजगार मिले और दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़े। महाराणा राज्याभिषेक स्थल की धरोहर को पर्यटन विभाग ने संरक्षित कर रखा है और मेवाड़ कॉम्प्लेक्स योजना के तहत संरक्षण कार्य भी करवाए हैं। यहां मिले कमल ने कहा कि संरक्षित स्थल का विकास ऐसा होना चाहिए, जिससे पर्यटन गतिविधियों बढ़ें और लोगों को अपने क्षेत्र में ही रोजगार मिल सके।
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गोगुंदा के बाद हम अरावली पहाडिय़ों के बीच घुमावदार व उतार-चढ़ाव के रोमांचकारी रास्ते से ओगणा होते हुए 56 किलोमीटर की दूरी तय कर झाड़ोल पहुंचे। उदयपुर-अहमदाबाद पर बसे झाड़ोल कस्बे की समस्याएं भी गोगुंदा से जुदा नहीं हैं। गांवों में पेयजल किल्लत और रोजगार के अभाव में युवाओं का पलायन ही बड़ा मुद्दा सामने आया। बस स्टैण्ड पर मुद्दों की तान छेड़ी तो लोकेश सिंधी, सुंदरलाल मेघवाल, मुकेश, उमेश पूर्विया, राजेंद्रसिंह व लोकेश सोनी ने खुलकर बात रखी। बोले, नया हाईवे बनने से झाड़ोल को काफी राहत मिली है। अब जिला मुख्यालय के बीच रोडवेज की सेवा बढ़ानी चाहिए। मानसी वाकल बांध परियोजना के पानी से उपखंड के 52 गांवों को समुचित पेयजल व्यवस्था करनी चाहिए। अहमदाबाद हाईवे के जरिए गुजरात के लिए शराब तस्करी हो रही है। इसे रोका जाना चाहिए।