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उदयपुर

जनजाति माटी से उपजे ये धनुर्धर

विश्व आदिवासी दिवस..कई अर्जुन किए हैं पैदा

उदयपुरAug 09, 2022 / 09:31 am

bhuvanesh pandya

जनजाति माटी से उपजे ये धनुर्धर

जनजाति माटी से उपजे ये धनुर्धर

उदयपुर. प्रदेश के इस दक्षिणांचल ने अपनी कोख से कई अर्जुन उपजे हैं। राजस्थान के इस ग्रामीण क्षेत्र से निकले इन धर्नुधरों ने ना केवल अपने संभाग का बल्कि अपने देश का नाम विदेश तक रोशन किया है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर तिरंगा फहराने से लेकर ओलम्पिक में झंडे गाड़ने वाले इन खिलाडि़यों ने हर किसी को अपने हुनर से ये बता दिया कि हम किसी से कम नहीं। हमें इन पर नाज है। ये हमारे आदिवासी हीरे हैं। खेल की राह पर चल इन चंद चेहरों ने आने वाली पीढ़ी को नया सबक दिया है।

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1-लिम्बाराम- 24 सितम्बर, 1971, को उदयपुर जिले में सरादित में जन्मे लिम्बाराम ने विश्व स्तर पर तीरंदाज़ी के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए। 1992 के एशियाई चैंपियनशिप मुक़ाबले में विश्व रिकार्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक जीतने की बात हो या 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में लिम्बा राम मात्र एक अंक से पदक पाने से चूकने की। जब भी तीरंदाजी का नाम आता है तो हर कोई लिम्बाराम को याद करता ही है। 1991 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित लिम्बाराम ने सीनियर राष्ट्रीय तीरंदाज़ी चैंपियनशिप में 50 मीटर तथा 30 मीटर वर्ग में राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाकर विजय हासिल की थी। 1992 के बीजिंग एशियाई खेलों में 30 मीटर वर्ग में विश्व रिकॉर्ड बना डाला और स्वर्ण पदक जीत लिया।1990 में महाराणा प्रताप अवार्ड दिया गया।
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2- धूलचंद डामोर- बांसवाड़ा जिले के देवदा गांव के तीरंदाज हैं। उन्होंने 1992 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में पुरुषों की व्यक्तिगत और टीम स्पर्धाओं में भाग लिया। बार्सिलोना में 1992 में आयोजित ओलंपिक में भारत की तीरंदाजी टीम में लिंबा राम व श्यामलाल के साथ ही धूल चंद डामोर भी शामिल थे। तीरंदाजी में उनका हाथ पकड़ना आसान नहीं था।
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3 – श्यामलाल मीणा- बांसवाड़ा जिले के केवडिय़ा के निवासी हैं। जन्म 4 मार्च 1965 में हुआ। उन्होंने 1988 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तीरंदाजी में उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। देश काे तिरंदाजी में पहली बार अंतरराष्ट्रीय गोल्ड 1988 में श्यामलाल मीणा ने दिलाया था। उन्होंने बांस से बने देसी धनुष से अभ्यास शुरू किया। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हाेने से उनकी पढ़ाई भी छूट गई। 1988 में पहली बार देश की तीरंदाजी टीम ने ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया, जिसमें श्यामलाल मीणा पहले तीरंदाजी दल के हिस्सा रहे।
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4 – नरेश डामोर- डूंगरपुर के आडिवाट के निवासी है। जन्म 2 जुलाई, 1981 में हुआ। डामोर ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप स्पेन के मेड्रिट में हिस्सा लिया था, जबकि एशियन चैम्पियनशिप नई दिल्ली में स्वर्ण पदक प्राप्त किया है। एशियन ग्रान्पिक खेलों में जकार्ता, इंडोनेशिया में एक स्वर्ण व रजत पदक प्राप्त किया था। डामोर को महाराणा प्रताप पुरसकार से नवाजा गया है।
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5 जयन्तीलाल ननोमा- डूंगरपुर जिले के बिलड़ी गांव के निवासी थे, ये वर्ल्ड चैम्पियनशिप क्रोएशिया में हिस्सा ले चुके हैं। इन्हें भी महाराणा प्रताप पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। कुछ वर्ष पूर्व सड़क दुर्घटना में ननोमा का निधन हो गया था।
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