अमरकुण्ड के घाटों पर बनी पुरानी कलात्मक ताकों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। इसके लिए विरासत संरक्षण से जुड़ी एजेंसी को ठेका दिया हुआ है लेकिन इस काम के दौरान लगाया जा रहा विशेष प्रकार का मिश्रण हाथ लगाने से खिर रहा है। झील के भरते ही यह निर्माण व्यर्थ हो जाएंगे और इन स्थानों से झील के पानी का लीकेज होगा।
अमरकुंड पर कार्य कर रही एजेंसी के कार्मिको को हवेलियों व अन्य विरासत कालीन इमारतों में कार्य करने का तो अनुभव है, लेकिन पानी में डूब जाने वाली संरचनाओं पर कार्य का अनुभव नहीं है। एेसे में झीलों में पानी भरने के साथ ही इन ताकों के पुन: क्षतिग्रस्त होने तथा खोखले स्थान से स्वच्छ पानी के रिसाव की संभावना है।
इन कार्यों के लिए किसी पुरानी इमारत के निकले हुए पत्थरों पर गढ़ाई की जा रही है। ये पत्थर कमजोर हैं। काम करते वक्त भी ये पत्थर टूट रहे हैं। इनको बाजार में आसानी से मिलने वाले केमिकल से चिपकाया जा रहा है। झीलों में पानी भरने और कुछ समय पानी में रहने के साथ ही पत्थर गलना शुरू हो जाएंगे।
झील संरक्षण समिति के संयुक्त सचिव डॉ. अनिल मेहता ने बताया कि यह मुद्दा गत सप्ताह कलक्टर और नगर निगम के अधिकारियों के ध्यान में लाया गया है। इस पर इंजीनियर को मौके भेजा गया। इंजीनियर के सामने कार्य के कंसलटेंट ने कहा कि ठेकेदार को पानी में डूबने वाली विरासत संरक्षण कार्य का अनुभव नहीं है। तब यह तय हुआ कि समस्या को लेकर देशभर में और स्थानीय विशेषज्ञों को मैसेज भेजा जाएगा और सलाह मांगी जाएगी। मैसेज भेजने का काम अभी किया जा रहा है।