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इंजीनियरिंग छोड़ बन गया संन्यासी, 45 हजार थी सेलरी

मुंबई की टॉप कंपनी में इंजीनियर की नौकरी छोड़ निर्मल बाबा ने अंजनेरी आश्रम में की तप साधना की।

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simhastha simhastha

Mar 01, 2016

उज्जैन. शहर में साधु-संत के पंडाल लगना शुरू हो गए हैं। इनमें कई संत उच्च शिक्षित हैं। ऐसे ही एक संत हैं पंचदशनाम आवाहन अखाड़े में गुरु और संतों की सेवा कर रहे निर्मल बाबा। उन्होंने मुंबई में 45 हजार रुपए महीने की नौकरी छोड़कर वैराग्य अपनाया है। पत्रिका से चर्चा में उन्होंने बताया कि जीवन में एक समय ऐसा भी आता है, जब मनुष्य मोहमाया छोड़ वैराग्य की ओर अपने कदम बढ़ा देता है।

बाबा ने कहा कि जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं। पैसा, शोहरत, मान-सम्मान कम ज्यादा हो सकता है, लेकिन संन्यासी जीवन की सीढ़ी जिस तरफ बढ़ती है, उसमें कई चमत्कार देखने को मिलते हैं। इस जीवन में वो शोहरत मिलती है, जो आधुनिक जीवन में नहीं मिल सकती है। मनुष्य अगर भगवान से साक्षात्कार होना चाहता है तो उसे आधुनिक दुनिया को छोड़ संन्यासी जीवन अपनाकर गुरु की भक्ति और देव की तपस्या करना पड़ती है। वर्षों की तपस्या साधना के बाद एक दिन ऐसा आता है जब भगवान का मनुष्य से साक्षात्कार हो जाता है।

नेवी की परीक्षा में किया था टॉप
महाराष्ट्र के अमरावती शहर के रहने वाले निर्मल बाबा ने 10वीं के बाद महाराष्ट्र में नेवी की परीक्षा में टॉप किया, लेकिन फिटनेस टेस्ट में सफल नहीं हो सके। इसके बाद 1999 में महाराष्ट्र विश्वविद्यालय से मैकेनिकल ब्रांच से इंजीनियरिंग की। वहां से उनका प्लेसमेंट मध्यप्रदेश के पीथमपुर में बजाज टेम्पो में हो गया। कुछ समय बाद यहां से बाबा बतौर विशेष इंजीनियर के पद पर ब्रिजस्टोन कंपनी में पहुंचे। दो साल जॉब करने के साथ बाबा ने मोटर मैकेनिकल में आइटीआई की।

यहां से 45 हजार रुपए प्रति महीने की पगार पर मुंबई की कंपनी में विशेष इंजीनियर रहे। 2010 में इस आधुनिक जीवन और मोटी पगार को छोड़ त्र्यंबकेश्वर स्थित पहाड़ी पर जंगलों के बीच अंजनेरी मंदिर पहुंचे। कुछ समय यहां बिताने के बाद बाबा की मुलाकात श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़े के मुख्यालय स्थल अंजनि आश्रम में महंत भारद्वाजगिरि बापू से हुई। बापू ने उन्हें संन्यासी जीवन की सीढ़ी पर चढऩे को अग्रसर किया। तब से लेकर आज तक निर्मल बाबा अपने गुरु और अखाड़े के सिद्ध संत महात्माओं की सेवा कर रहे हैं।

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