एक ही मरीज को दे दिए १२.५ लाख के इंजेक्शन
उज्जैन•Apr 14, 2018 / 12:43 am•
Lalit Saxena
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आशीष प्रताप सिंह भदौरिया
उज्जैन. सिंहस्थ के दौरान जिला अस्पताल के दवाई स्टोर का एक और घोटाला सामने आया है। मरीज को भर्ती किए बगैर ही अस्पताल प्रबंधन ने उसके नाम से पिता को करीब १२.५ लाख रुपए के इंजेक्शन दे डाले। अस्पताल प्रबंधन ने हाल ही में इस चोरी को पकड़ा है। जिसके बाद आरोपी पिता और सहयोगियों पर प्रकरण दर्ज करवाने की तैयारी की जा रही है।
दौलतगंज निवासी मिलिंद्र जैन को जिला अस्पताल के दवाई वितरण केंद्र और दवाई स्टोर से फरवरी २०१६ से २०१७ के दौरान करीब १२.५ लाख कीमत के एंटी हिमोफिलिया इंजेक्शन दिए गए। मिलिंद्र जैन इन इंजेक्शनों को पुत्र ऋषभ जैन के नाम पर लेकर गया। फेक्टर एट २५० आइयू और फेक्टर ५०० आइयू इंजेक्शन जिला अस्पताल के दवाई स्टोर से दिए गए, जबकि ये इंजेक्शन केवल जिला अस्पताल में भर्ती मरीजों को दिए जाने का नियम है। इसके अलावा इंजेक्शन के उपयोग के बाद खाली शीशी दवा स्टोर में जमा कराई जाती है। ताकि इस बात की पुष्टि हो सके कि वाकई इंजेक्शन मरीज को लगाया गया है। सिविल सर्जन की अनुमति के बगैर ये इंजेक्शन मरीज को नहीं दिए जाते हैं, लेकिन सिंहस्थ की आड़ में इस प्रकार के किसी नियम का पालन नहीं किया गया और ये ढर्रा २०१७ तक जारी रहा।
एक दिन में आठ इंजेक्शन ले गए
इस दौरान मिलिंद्र जैन जिला अस्पताल के दवाई वितरण केंद्र से एक ही दिन में आठ-आठ फेक्टर एट इंजेक्शन लेकर गया। जबकि किसी भी ६० प्रतिशत हिमोफिलिक मरीज को एक दिन में इतने इंजेक्शन नहीं लगाए जा सकते हैं।
स्टोर प्रभारी निलंबित, पूर्व सिविल सर्जन पर जांच
सुरेश परमार सिंहस्थ के दौरान दवा खरीदी घोटाले में निलंबित चल रहे हैं, जबकि पूर्व सिविल सर्जन डॉ.गहरवार पर इसी घोटाले की जांच ईओडब्लू द्वारा की जा रही है। दवा घोटाले के चलते ही डॉ.एमएल मालवीय को सिविल सर्जन पद से हटाया गया था।
जिनके नाम चढ़े, उन्होंने किया इनकार
सिविल सर्जन डॉ. राजू निदारिया ने बताया कि जिस दौरान ये इंजेक्शन लिए गए और इंजेक्शन को देते समय जिन चिकित्सकों के नाम लिखे हुए हैं। उनसे पूछताछ करने पर उन्होंने साफ तौर पर इनकार कर दिया। इससे साबित हो रहा है कि इंजेक्शन फर्जी तरीके से निकाले गए। मामले की पूरी जांच की जा रही है। इसके बाद आरोपियों पर प्रकरण दर्ज करवाया जाएगा।
ऐसे किया खेल
यह इंजेक्शन आमतौर पर दवा स्टोर में ही रखा जाता है। भर्ती मरीज को जांच रिपोर्ट के आधार पर संबंधित डॉक्टर उसे इंजेक्शन के लिए लिखता है। इसके बाद सिविल सर्जन की स्वीकृति के बाद दवा स्टोर से इंजेक्शन लाकर मरीज को लगाया जाता है, लेकिन सिंहस्थ के दौरान और इसके बाद तक इतने मंहगे इंजेक्शन को दवाई वितरण केंद्र में रखा गया है। मिलिंद्र ओपीडी डॉक्टर को ऋषभ के पर्चे दिखाकर दवाई वितरण केंद्र से इंजेक्शन ले जाता रहा। तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. डीपीएस गहरवार और डॉ. एमएल मालवीय के कार्यकाल के दौरान ये खेल खेला गया। इस समय दवा स्टोर प्रभारी सुरेश परमार थे। दवा स्टोर से इंजेक्शन निकालने के लिए सिविल सर्जन की स्वीकृति पत्र लगता, जिसके चलते इन इंजेक्शन को दवा स्टोर में रखवाया गया।
रक्त का थक्का जमना हो जाता है बंद
हिमोफिलिया के मरीज को रक्त का थक्का जमना बंद हो जाता है। इसे ब्लडिंग डिस्आर्डर कहा जाता है। यानी यदि इसके मरीज को कहीं चोट आ जाए तो रक्त स्त्राव होता रहेगा। कुछ परिस्थितियों में शरीर के अंदरूनी हिस्सों में ब्लिडिंग होने लगती है। इसके लिए मरीज की फेक्टर एट और फेक्टर नाइन की जांच की जाती है। जिसके आधार पर इंजेक्शन का डोज तय किया जाता है। डॉक्टर की उपस्थिति में ही इसे लगाया जाता है। इमरजेंसी में ही इसका उपयोग होने के कारण इस इंजेक्शन में ओपीडी मरीजों के लिए दवा वितरण केंद्र पर नहीं रखा जाता है। एक इंजेक्शन की कीमत की साढ़े ग्यारह हजार रुपए तक है।