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मवाद के 30 प्रतिशत मामलों में कीटाणु किसी दवा से नहीं मर रहे, लंबा उपचार करना पड़ता है

एंटीबायोटीक के मनमाने उपयोग के खतरनाक असर सामने आने लगे… चिकित्सा क्षेत्र के लिए बढ़ता एंटीबायोटीक प्रतिरोध भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती, दवा का असर खत्म होने से हर साल सात लाख मौते

उज्जैनNov 25, 2023 / 06:54 pm

aashish saxena

Public awareness regarding antibiotics has been started

मवाद के 30 प्रतिशत मामलों में कीटाणु किसी दवा से नहीं मर रहे, लंबा उपचार करना पड़ता है

कान से मवाद निकलने की समस्या लेकर जिला अस्पताल आने वाले मरीजों की जांच में चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इन मरीजों के मवाद का जब कल्चर करवाकर गया तो २० से ३० प्रतिशत मामलों में ऐसे कीटाणू मिले हैं जो किसी भी दवाई से नहीं मरे। मसलन संबंधित मरीजों के शरीर में एंटीबायोटीक प्रतिरोध इतना बढ़ चुका है कि अब उनके अंदर के किटाणुओं पर दवा का असर होना लगभग खत्म हो गया है।

दवा का असर नहीं या कम होने की यह स्थिति सिर्फ मवाद संबंधित मामलों की ही नहीं है, ऐसे सभी मरीज के साथ हो सकती है जिनके शरीर में एंटीबॉयोटीक प्रतिरोध बढ़ रहा है। लोगों के शरीर में एंटीबायोटीक प्रतिरोध बढ़ना, भविष्य में चिकित्सा क्षेत्र सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इसलिए दो वर्ष से सरकार ने एंटीबायोटीक को लेकर जनजागरण शुरू किया है। इसके अंतर्गत शुक्रवार को सिविल सर्जन डॉ. पीएन वर्मा ने चिकित्सीय विशेषज्ञों के साथ कार्यशाल कर एंटीबायोटीक दवाओं के मनमाने उपयोग के घातक परिणामों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एंटीबायोटीक दवाओं का उपयोग बेक्टेरिया को मारने में होता है। चिकित्सक अनिवार्य स्थिति में मरीज की समस्या, उम्र, आदि के आधार पर आवश्यकतानुसार एंटीबायोटीक दवा प्रिस्क्राइप करते हैं। इसके विपरित कई मरीज अपनी मर्जी से या अनाधिक्रत व्यक्ति की बताई दवाई ले लेते हैं जिनमें एंटीबायोटीक भी शामिल होती है। दवाइयों को इस प्रकार मनमाना उपयोग भविश्य में मरीज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। डॉ. वर्मा ने एंटीबायोटीक प्रतिरोध के खतरे को कान के मवाद से पीड़ित मरीजों का हवाला देकर बताया। उन्होंने बताया, ऐसी स्थिति में डॉक्टर को मिडिएशन बदलना पड़ता है और उपचार में लंबा समय लगता है। कार्यक्रम में आरएमओ डॉ. निधि जैन, डॉ. नीतराज गौड़, डॉ. संगीता पलसानिया मौजूद थे।

समझे किस तरह शरीर को नुकसान पहुंचा रहे एंटीबायोटीक

एंटीबायोटीक दवा का उपयोग बेक्टेरिया के लिए होता है लेकिन ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं में भी इनका उपयोग हो रहा है जिसमें इनके बिना उपचार किया जा सकता है। दरअसल एंटीबायोटीक दवाओं के मनमाने उपयोग के कारण लोगों के शरीर में एंटीबायोटीक प्रतिरोध बढ़ने लगा है। शरीर में आवश्यकता से कम या ज्यादा एंटीबायोटीक दवाएं जाने से शरीर में मौजूद बेक्टेरिया आदि इनके साथ जीने की क्षमता बढ़ा लेते हैं। इससे यह इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि जब किसी बीमारी में मरीज को दवाई दी जाती हैं तो किटाणुओं पर इनका असर ही नहीं होता। चिकित्सा क्षेत्र में इसे भविश्य की सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इसलिए एंटीबायोटिक के उपयोग की गाइड लाइन तैयार की गई है जिसके आधार पर चिकित्सकों के साथ ही मरीज, मेडिकल संचालक, युवा व आम लोगों को जागरुक किया जा रहा है। साथ ही बिना प्रिस्क्रेप्शन के दवाई देने पर कार्रवाई की निर्देश भी दिए हैं।

हम शरीर में कैसे बढ़ा रहे एंटीबायोटीक प्रतिरोध

1. स्वयं- सर्दी जुखाम या अन्य सामान्य स्वास्थ्य समस्या होने पर मरीज पुराने अनुभव के आधार पर अपनी मर्जी से दवा ले लेते हैं। उन्हें यह नहीं पता होता कि कितना डोज लेना चाहिए था।
2. झोलाछाप डॉक्टर: झोलाछाप डॉक्टर या अनाधिक्रत व्यक्ति किसी माध्यम से थोड़ाकुछ सीख लोगों का उपचार शुरू कर देते हैं। मनमाने तरीके से मरीजों को एंटीबायोटीक व अन्य दवाई देते हैं। संभव है ऐसे आधे-अधुरे उपचार से मरीज को तत्कालीन राहत मिले लेकिन अनावश्यक दवाईयों का उपयोग शरीर में एंटीबायोटीक प्रतिरोध बढ़ा देता है। ग्रामिण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक है।
3. मेडिकल संचालक से दवा- सर्दी-जुखाम या मौसमी बीमारी में कई लोग चिकित्सक से सलाह लिए बिना मेडिकल संचालक को स्वास्थ्य समस्या बताकर उसके बताई दवाई लेना शुरू कर देते हैं। अधिकांश मामलों में संचालक दो दवाओ के काम्बीनेशन के साथ एक एंटीबायोटीक दवा मरीज को दे देता है।
4. चिकित्सक- मरीजों के शरीर में एंटीबायोटीक प्रतिरोध बढ़ाने में ऐसे कई चिकित्सक भी जिम्मेदार हैं जो एंटीबायोटिक प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते हैं। वे दवा कंपनी को लाभ पहुंचाने या जल्द स्वास्थ्य सुधार के लिए मरीज को एंटीबायोटीक का आवश्यकता से अधिक डोज दे देते हैं।

इन कारणों से बढ़ता है प्रतिरोध

1. कम डोज- स्वास्थ्य समस्या अनुसार मरीज को दवा के जितने डोज की जरूरत है, उससे कम डोज मिलने पर बेक्टेरिया मरते नहीं और दवा के साथ जीने की क्षमता पैदा कर लेते हैं।
2. अधिक डोज- आवश्यकता से अधिक दवा का डोज देने से स्वास्थ्य तो सुधर जाता है लेकिन शरीर के बेक्टेरिया को इतने हेवी डोज की आदत हो जाती है। कम डोज में वे नहीं मरते और बाद में हेवी डोज में ही सरवाई करने लगते हैं।
3. अनियमित डोज- अक्सर देखने में आता है कि डॉक्टर जितनी बार और जितने दिन की दवाई देते हैं, मरीज उसका शतप्रतिशत पालन नहीं करते।
थोड़ा सुधार महसूस होने पर मरीज बीच में ही दवा लेना बंद कर देता है या डोज कम कर लेता है। इससे कुछ दिन बाद फिर बीमारी के लक्षण आते हैं और दोबारा वही दवाई शुरू करने पर बेक्टेरिया पर उनका असर पहले की तुलना में कम हो जाता है।
(नोट- इसलिए अधिक्रत चिकित्सक की सलाह का पूरा पालन करना चाहिए। समस्या होने पर पुन: परामर्श या सैकंड ओपिनियन लें।)

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