शहर में आज भी सबसे बड़े मुद्दे की समस्या जस की तस
नेताओं की नैया पार लगाई, शिप्रा का कोई नहीं बना खेवैया
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उज्जैन. शहरी विधानसभा चुनावों में वर्षों पहले भी शिप्रा शुद्धिकरण एक बड़ा मुद्दा था और आज भी यह समस्या जस की तस है। हर बार चुनाव में प्रत्याशी शिप्रा को शुद्ध व अविरल बनाने का वादा करते हैं, शिप्रा शुद्धिकरण के वादे की नांव के बुते चुनाव की मझधार में से पार भी पाते हैं लेकिन बाद में कोई नदी विकास की जरूरत का खेवैया नहीं बनता। एक बार फिर चुनावी रण सजा है और शिप्रा को लेकर वही पुराने दावे-वादे दोहराए जा रहे हैं।
विश्व में चुनिंदा शहर ही ऐसे हैं जहां प्राकृतिक संपदा के रूप में नदियां हैं। उज्जैन भी ऐसे ही भाग्यशाली शहरों में से एक हैं लेकिन इस प्राकृतिक उपहार को अब तक सिर्फ वाहवाही लुटने और चुनावी एजेंडे तक ही समिति कर रखा हुआ है। करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद आए दिन शिप्रा में गंदा पानी मिलने की समस्या बनी हुई है। इसे प्रवाहमान बनाने के लिए भी राशि तो खर्च की लेकिर बारिशी नदी के दाग को नहीं मिटा पाए। शिप्रा की यह स्थिति तब है जब इसके कारण ही होने वाले सिंहस्थ से शहर को विश्व में पहचान मिली है।
पानी गंदा, घाटों की हालत खराब
सिंहस्थ 2016 में के लिए शिप्रा पर नए घाटों के निर्माण के साथ ही पुराने घाटों का जिर्णोद्धार किया गया था। कुछ महीनों बाद ही अधिकांश घाटों की स्थिति खराब होने लगी। लगाए गए कमजोर लाल पत्थर जगह-जगह से टूट रहे हैं। नजरअंदाजी इस कदर है कि घाटों का संधारण तक नहीं किया जा रहा है। घाटों के साथ ही नदी की स्थिति भी दयनीय है। आए दिन इसमें खान का गंदा पानी मिल रहा है। शुक्रवार को भी नदी में काला पानी जमा हुआ था और आसपास गंदगी पसरी थी।
पर्यटकों को सुविधाएं तक नहीं
संरक्षक व संवर्धन के लिए असरकारी कार्रवाई नहीं हो रही है। नदी की उपेक्षा के साथ ही यहां आने वाले पर्यटक व श्रद्धालुओं की भावना और सुविधाओं को भी नजर अंदाज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। अधिकांश घाटों पर सुविधाघर, पेयजल, सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है।
योजनाओं के बाद भी वही हाल
शिप्रा को प्रवाहमान बनाने और 12 महीने पानी की पर्याप्त उपलब्धता के लिए 400 करोड़ रुपए से अधिक की नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना लागू की गई। इसमें नर्मदा का पानी शिप्रा में लाया तो गया लेकिन नदी प्रवाहमान नहीं हुई।
100 करोड़ से खान डायर्वशन योजना में दावा था कि इसके बाद (बारिश का सीजन छोड़ कर) शिप्रा में खान का पानी नहीं मिलेगा। खान का गंदा पानी केडी पैलेस के आगे छोड़ा जाएगा। बारिश के मौसम में तो आव्हरफ्लो की समस्या रहती ही है आम दिनों में भी शिप्रा में गंदा पानी मिल रहा है।
शिप्रा में नालों को मिलने से रोकने के लिए हर वर्ष दो करोड़ रुपए से अधिक राशि शिप्रा में खर्च हो रही है। इसके बावजूद नाले मिल रहे हैं।
शिप्रा शुद्धिकरण का मुद्दा वर्षां पुराना है। शहर का हर व्यक्ति चाहता है कि शिप्रा शुद्ध व कल-कल बहती नजर आए। समय-समय पर कई योजनाएं भी लाई गईं लेकिन अपेक्षित परिणाम अभी भी नहीं मिले हैं। शिप्रा के लिए सिर्फ राशि खर्च करना ही मुख्य उद्देश्य नहीं होना चाहिए, इस बार कार्य ऐसा हो कि मोक्ष दायिनी को गंदगी से स्थायी मोक्ष मिले।
– मनीष डब्बावाला, घाट पंडा
शिप्रा नदी में आए दिन गंदा पानी जमा होने की समस्या रहती है। इससे नदी तो दूषिह होती ही है, हमारी धार्मिक नगरी में आने वाले पर्यटक व श्रद्धालुओं की भावनाएं भी आहात होती हैं। शिप्रा शुद्धिकरण सिर्फ चुनावी मुद्दा बनकर न रहे, इस ओर गंभीरता से प्रभावी कार्य भी किया जाए। ऐसा होता है तो शहर के लिए यह सबसे बड़ी उपलब्धी होगी।
– मुकेश पंड्या, पुजारी
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