संभवत: प्रदेश में बडऩगर एकमात्र ऐसी विधानसभा
प्रदेश में संभवत: बडऩगर विधानसभा एकमात्र ऐसी है जहां अभिभाषक (वकिल) राजनीति के मैदान ‘केस’ लड़ते है। यहां अब तक 14 विधानसभा चुनावों में 12 ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिए गए जो अभिभाषके पेशे से जुड़े हुए थे। वहीं 1952 से अब तक के विधानसभा चुनाव में 7 विधायक अभिभाषक वर्ग से बने है। खास बात यह कि इस बार के चुनाव में भी आठ से ज्यादा अभिभाषक टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं।
बडऩगर विधानसभा और अभिभाषकों का गहरा नाता रहा है। तहसील की जनता इस विधानसभा से पढ़े-लिखे उम्मीदवार को चुनकर भोपाल भेजने में अपना विश्वास रखती है। यही वजह है कि यहां दोनों दल अभिभाषक वर्ग से प्रत्याशी खड़े करते आई है। वर्ष 1952 से 2013 तक के हुए 14 विधानसभा चुनावों में अभिभाषक वर्ग से 9 उम्मीदवार अलग-अलग पार्टियों से विधायक चुन कर आए। बडऩगर विधानसभा से 1952 में पहली बार विधायक बने सवाईसिंह सिसौदिया भी अभिभाषक थे और वर्तमान विधायक मुकेश पंड्या भी अभिभाषक है। अब तक हुए 14 चुनावों मेंं उदयसिंह पण्डया और अभयसिंह झाला ऐसे विधायक रहें जो अभिभाषक वर्ग से शामिल नहीं थे। बता दें कि उदयसिंह पण्डया तीन बार विधायक रहे। बडऩगर विधानसभा चुनाव में दो बार ऐसी स्थिति रही कि यहां से अभिभाषक वर्ग से कोई प्रत्याशी मैदान में खड़ा नहीं हुआ। 1972 में अभयसिंह झाला विरुद्ध सावनसिंह एवं 1985 एवं अभयसिंह विरुद्ध उदयसिंह पंड्या के बीच चुनाव हुए। यह दोनों ही प्रत्याशी अभिभाषक नहीं रहे।
ये बने विधायक
सन 1952 कांग्रेस के सवाईसिंह सिसौदिया, सन 1957 कांग्रेस के कन्हैयालाल मेहता, सन 1962 एसओसी के रामप्रकाश मल्होत्रा, सन 1993 कांग्रेस के सुरेंद्रसिंह सिसौदिया, सन 1998 कांग्रेस के वीरेंद्रसिंह सिसौदिया, सन 2003 भाजपा के शांतिलाल धबाई , सन 2013 भाजपा के मुकेश पंड्या।