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चित्रकूट

बहुत दूर तलक है सफर: घूंघट की आड़ से योजनाओं की जानकारी, जागरूकता पर लज्जा भारी

कब मिलेगा ग्रामीण महिलाओं को अपना स्वराज ?

चित्रकूटApr 25, 2018 / 07:24 am

नितिन श्रीवास्तव

Gram Swaraj Abhiyan Chaupal in Chitrakoot UP news

बहुत दूर तलक है सफर: घूंघट की आड़ से योजनाओं की जानकारी, जागरूकता पर लज्जा भारी

चित्रकूट. मौका है ग्राम स्वराज अभियान के तहत गांवों में सत्ता के नुमाइंदों और हुक्मरानों द्वारा चौपाल रात्रि चौपाल और सरकारी योजनाओं की जानकारी और उनके लाभ देने का। सामने बैठे सियासत के लम्बरदार और नौकरशाही के खेवनहार बड़ी बड़ी बातें और योजनाओं का पुलिंदा प्रस्तुत करते हुए, खासतौर पर महिलाओं की जागरूकता नारी सशक्तिकरण को लेकर किए जा रहे लम्बे चौड़े बखान, दूसरी ओर घूंघट की आड़ से लज्जा के झरोखों से निहारती आधी आबादी, सवालात कर रही हैं नीति नियंताओं से कि आखिर में महिला जागरूकता है क्या और क्या मायने हैं नारी सशक्तिकरण के और कब मिलेगा ग्रामीण महिलाओं को अपना स्वराज ? इन सबके बीच कहीं न कहीं नुमाइंदों को भी उनके घूंघट की आड़ में अपना सम्मान नजर आता है और वे भी आशा किट गैस चूल्हा थमाकर योजनाओं की इतिश्री कर लेते हैं। तस्वीरें सिर्फ यही सन्देश दे जाती हैं कि बहुत दूर तलक का है सफर अभी।
गांव में बसती है आत्मा

कहा जाता है कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है और जब तक गांवों का विकास नहीं होगा तब तक देश और समाज का पूर्ण विकास सम्भव नहीं। तो क्या विकास का मतलब गांवों में सिर्फ सड़क नाली खडंजा बिजली पानी ही है, क्या पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण दे देना ही उनके लिए जागरूकता का मापदंड है? ऐसे कई अनुत्तरित सवालात हो रहे हैं ग्रामीण स्वराज अभियान के तहत उन तस्वीरों के माध्यम से जिनमें वही ग्रामीण महिलाएं खुद को रूढ़िवादी बन्दिशों में समेटे नजर आ रही हैं जिसे घूंघट प्रथा कहा जाता है।
सकुचाते हिचकते योजनाओं की जानकारी

ग्राम स्वराज अभियान के तहत प्रदेश और केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की फेहरिस्त गिनाने और उनका लाभ प्रदान करने के लिए इस समय अति पिछड़े इलाकों में साहबों का आना जाना है साथ ही नारी सशक्तिकरण के नाम पर बड़ी बड़ी बातें करने वाले जनप्रतिनिधियों की चहलकदमी भी बनी हुई है। इन सबके बीच सामने बैठीं महिलाएं लज्जा की घुट्टी पीकर नेता जी और साहब की बातों को ध्यान से सुन रही हैं। मन तो बहुत कुछ है कहने को लेकिन बगल में पति परमेश्वर और गांव के जेठ लगने वाले लम्बरदार खड़े हैं। प्रधान तो महिला ही है कई गांवो में लेकिन कार्यभार पतिदेव ने संभाल रखा है, तभी तो भारत में प्रधान पति का पद बड़े सम्मान से दिया जाता है।
कौन समझाएगा उन्हें नारी सशक्तिकरण का मतलब

आधुनिकता की परिभाषा पर अक्सर नारी को चूल्हा चौका से बाहर निकल अपनी मंजिल तय करने की नसीहत तो हमेशा दी जाती है लेकिन उसी गैस चूल्हे को पकड़ाने की होड़ के बीच घूंघट की आड़ से झांकती महिलाओं को नारी सशक्तिकरण के मायने बताने वाला कोई नहीं। इनकी जागरूकता की एक माध्यम हैं आशा बहुएं जो अपने गांव में आकर वाकई में बहु का किरदार निभाने लगती हैं और वे भी लम्बे घूंघट की ओट में परम्परा को निभाते नजर आती हैं। बहरहाल ये वो तस्वीरें हैं जो अभी भी यह दर्शाती हैं कि आधुनिकता के नाम पर सिर्फ महानगरों और बड़े शहरों की ओर देखने से काम नहीं चलेगा बल्कि ग्रामीण महिलाओं को असल में उस स्तर तक जागरूक बनाना होगा जब तक वे कई मामलों में कठपुतली की तरह इस्तेमाल होने से खुद को रोक न सकें।
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