मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, गोरखपुर के संस्थापक कुलपति प्रो. ओंकार सिंह ने पत्रिका से अपनी राय की साझा।
प्रो. ओंकार सिंह भारत देश में आजादी के बाद से लगातार बदल रही सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व औद्योगिक आवश्यकताओं के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा के माध्यम से समाज को विकसित कराने के लिए शिक्षा प्रणाली का वृहद प्रसार हुआ है। आज की सभ्यता के विभिन्न घटकों के संधारण के लिए उपलब्ध समस्त आयामो में शिक्षा के समुचित अवसर उपलब्ध होने एवं इनका लाभ नागरिकों द्वारा लिए जाने के कारण ही भारत विश्व के विकसित देशों को आज भी अपना लोहा मनवा रहा है। एतिहासिक रूप से विश्व
गुरु माने जाने वाले इस देश के सामने आज जनसंख्या वृद्धि तथा वैश्वीकरण के कारण अपनी पूरी आबादी को समस्त विधाओं में गुणवत्ता परक शिक्षा उपलब्ध कराने की गंभीर चुनौती सामने खड़ी हो गई है। यदि हम अपनी विकास यात्रा को गंभीरता से देखें तो यह निश्चित रूप से स्थापित होता है कि एक विकासशील समाज अपने नागरिकों को काल व परिस्थितिों के अनुरूप ही वांछित विधानओं में समग्र शिक्षा देकर विकसित होने का सपना देख सकता है। देश का सफलतम मंगल मिशन, अभूतपूर्व अंतरिक्ष कार्यक्रम, आधारभूत सुविधाओं में विकास, रक्षा के क्षेत्र में स्वदेशी लाइट कमैबट विमान का निर्माण, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मोबाइल तथा इंटरनेट का बड़ी आबादी द्वारा उपयोग किया जाना आदि यह सिद्ध करता है कि हमारे पास बौद्धिक संपदा विश्व के अन्य देशों से कम नहीं है परंतु कुछ कारण जरूर हैं जिनको जड़ से चिह्नित करते हुए खुले हुए मन से उन कारणों का निवारण किया जाना अनिवार्य है।