आज की कहानी है उसी हमले में शहीद हुए वाराणसी के तोफापुर गांव के रहने वाले रमेश यादव की। हमने रमेश के पिता श्याम नारायण यादव, माता राजमती देवी और पत्नी रेनू देवी से बात की। रमेश से जुड़े जितने भी किस्से हैं, उनको जाना, सरकार ने जो वायदे किये थे उनमें कितना पूरा हुआ और कितने अधूरे रह गए, इसको लेकर सवाल भी पूछे।
आइए उन्हीं कहानियों में एक-एक करके उतरते हैं… संघर्ष के बाद बेटा CRPF में हुआ था भर्ती
माता राजमती देवी बहते आंसुओं को पोंछने और थोड़ी देर संभलने के बाद बताती हैं कि 4 साल हो गए। पल-पल, रात-दिन महेश की याद आती है। बहुत कष्ट से उसको साल 2017 में नौकरी मिली थी। भैंस चराने, गर्रा-माटी से लेकर दूसरे का ट्रैक्टर चलाने तक उसने सभी काम किए। लेकिन, नौकरी मिलने के बाद वो उसका बहुत दिन तक लाभ भी नहीं उठा पाया। जब कष्ट के दिन दूर हुए तब तक काल ने उनको लील लिया।
महेश के पिता श्याम नारायण यादव ने बताया, “महेश का सपना था कि वो भर्ती हो, डिफेंस में जाए। तमाम कष्ट झेलने के बावजूद उसने अपने सपने को सच करके दिखाया भी। उसको पढ़ाने और भर्ती कराने में घर के सामने के 3 बीघे खेत 5 लाख रुपये में गिरवी रखने पड़े थे।
रमेश जब आखिरी बार छुट्टी पर आए थे तो मेरे से कहा था कि अबकी बार जब भी आऊंगा तो गिरवी रखी जमीन को छुड़ा लूंगा। उनके यह अरमान अधूरे रह गए। घर का खेवनहार तो बीच मझधार में ही छोड़ कर स्वर्गलोक के रास्ते पर चला गया।
काफिला अपने तय रूट पर आगे बढ़ रहा था। कुछ जवान बस में गुनगुना रहे थे, कुछ चुटकुले सुना रहे थे, कुछ ठहांका लगा रहे थे और कुछ जम्हाई ले रहे थे। सड़क की दूसरे तरफ से आ रही एक SUV ने काफिले के साथ चल रही एक बस में टक्कर मार दी। SUV जैसे ही जवानों के काफिले से टकराई, वैसे ही उसमें जबरदस्त विस्फोट हो गया।
धमाका इतना भयंकर था कि बस के परखच्चे उड़ गए। इसके बाद घात लगाए आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इस हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हो गए। शहीद हुए इन जांबाजों ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
शादी के समय घर भी नसीब नहीं था, गौना में रमेश ने पूछा- मां बहू कहां रहेगी रमेश की शादी उनके शहादत से 5 साल पहले हुई थी। जिस समय उनकी शादी हुई उस समय घर के नाम पर सिर्फ बांस-पतलो और घास-फूस से बनी मड़ई थी। शादी के बाद जब रमेश का गौना का तय हुआ तब रमेश ने मुझसे पूछा कि मां बहू कहां रहेगी? तब मैंने किसी तरह से 2 कमरे का पक्का मकान बनवाया। उनके शहादत तक यही मकान था।
रमेश की पत्नी रेनू यादव ने पत्रिका से बातचीत के दौरान बताया कि पति के खोने के दुःख को सरकारी पैसे और नौकरी से नहीं भरा जा सकता। एक बेटा है। वही रमेश की आखिरी निशानी है। उसमें ही रमेश क देखने की कोशिश करती हूं। पढ़ लिख कर वह देश के प्रगति में अपना योगदान दे सके यही हमारी इच्छा है।
रेनू को राज्य सरकार से वाराणसी के जिलाधिकारी कार्यालय में बड़े बाबू की नौकरी मिली है। मायके से ही वह ऑफिस आती-जाती हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार और LIC से जितने पैसे सभी सभी जवानों के परिजनों को मिले उतने उनको भी मिले हैं। केंद्र और राज्य सरकार ने सभी शहीद जवानों को 25-25 लाख रुपए दिए थे।
10 से 15 की संख्या में बैठे लड़कों का एक ग्रुप बैठा हुआ किसी मुद्दे पर चर्चा कर रहा था। हमारे वहां पहुंचते ही सभी सवालिया लहजे में हमारे तरफ देखने लगे। किसी अनजान चेहरे को अपने बीच देखकर कुछ पूछना चाह रहे थे लेकिन संकोचवश पूछ नहीं पा रहे थे।