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वाराणसी

पुलवामा के 4 साल: मां ने कहा- कलेजे का टुकड़ा- टुकड़ाें में घर लौटा, बेटे की मौत की खबर TV पर मिली, उसके बाद कभी TV नहीं देखी

14 फरवरी जब भी आती है। ऐसा लगता है मानो प्राण निकल रहे हों। मन करता है बस एक बार बेटे से मिल लेते। लेकिन मेरा बेटा अब नहीं मिलेगा। कांपते होंठ और डबडबाई हुई आंखें बेटे की याद में इससे ज्यादा कुछ न कह पाईं। बेटे के लिए मां राजमती देवी का दुःख उनकी आंखों से आंसुओं के रूप में झर-झर बह रहा था।

वाराणसीFeb 14, 2023 / 11:38 am

Vikash Singh

14 february 2019 pulwama attack

रमेश जब आखिरी बार छुट्टी पर आए थे तो मेरे से कहा था कि अबकी बार जब भी आऊंगा तो गिरवी रखी जमीन को छुड़ा लूंगा। उनके यह अरमान अधूरे रह गए।

पुलवामा हमले की आज चौथी बरसी है। साल 2019 में आज ही के दिन कश्मीर के पुलवामा में CRPF के जवानों से भरी बस में RDX से लोडेड SUV ने टक्कर मारी थी। धमाका इतना जबरदस्त और भयंकर था कि बस के परखच्चे उड़ गए थे। हमले में कुल 40 जवान शहीद हुए थे। शहीद जवानों में 12 जवान उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे।

आज की कहानी है उसी हमले में शहीद हुए वाराणसी के तोफापुर गांव के रहने वाले रमेश यादव की।

हमने रमेश के पिता श्याम नारायण यादव, माता राजमती देवी और पत्नी रेनू देवी से बात की। रमेश से जुड़े जितने भी किस्से हैं, उनको जाना, सरकार ने जो वायदे किये थे उनमें कितना पूरा हुआ और कितने अधूरे रह गए, इसको लेकर सवाल भी पूछे।

आइए उन्हीं कहानियों में एक-एक करके उतरते हैं…

संघर्ष के बाद बेटा CRPF में हुआ था भर्ती
माता राजमती देवी बहते आंसुओं को पोंछने और थोड़ी देर संभलने के बाद बताती हैं कि 4 साल हो गए। पल-पल, रात-दिन महेश की याद आती है। बहुत कष्ट से उसको साल 2017 में नौकरी मिली थी। भैंस चराने, गर्रा-माटी से लेकर दूसरे का ट्रैक्टर चलाने तक उसने सभी काम किए। लेकिन, नौकरी मिलने के बाद वो उसका बहुत दिन तक लाभ भी नहीं उठा पाया। जब कष्ट के दिन दूर हुए तब तक काल ने उनको लील लिया।
 
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बेटे की फौजी टोपी पहनने की इच्छा पूरी हो गई, लेकिन अरमान रह गए अधूरे
महेश के पिता श्याम नारायण यादव ने बताया, “महेश का सपना था कि वो भर्ती हो, डिफेंस में जाए। तमाम कष्ट झेलने के बावजूद उसने अपने सपने को सच करके दिखाया भी। उसको पढ़ाने और भर्ती कराने में घर के सामने के 3 बीघे खेत 5 लाख रुपये में गिरवी रखने पड़े थे।

रमेश जब आखिरी बार छुट्टी पर आए थे तो मेरे से कहा था कि अबकी बार जब भी आऊंगा तो गिरवी रखी जमीन को छुड़ा लूंगा। उनके यह अरमान अधूरे रह गए। घर का खेवनहार तो बीच मझधार में ही छोड़ कर स्वर्गलोक के रास्ते पर चला गया।
 
जबरदस्त विस्फोट, बस मलबे में तब्दील और सड़कों पर बिखरे पड़े मां भारती के लालों के टुकड़े…

ऊपर की लाइन पढ़कर आपके दिमाग में किसी वीभत्स सीन की इमेजिनरी सीन क्रिएट हो रही होगी न? ठीक वैसे ही जैसे कोई फिल्म का सीन दिमाग में घूम रहा होता है। जी हां, कुछ ऐसा ही हुआ था उस 14 फरवरी के मनहूस दिन को।
केन्द्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स यानी CRPF के 78 बसों का काफिला कश्मीर के पुलवामा जिले से गुजर रहा था। इन बसों में कुल 2500 जवान सवार थे। दोपहर के करीब 3:30 बज रहे थे। भारत मां के लाल बसों में आराम से बैठे थे।

काफिला अपने तय रूट पर आगे बढ़ रहा था। कुछ जवान बस में गुनगुना रहे थे, कुछ चुटकुले सुना रहे थे, कुछ ठहांका लगा रहे थे और कुछ जम्हाई ले रहे थे।

सड़क की दूसरे तरफ से आ रही एक SUV ने काफिले के साथ चल रही एक बस में टक्‍कर मार दी। SUV जैसे ही जवानों के काफिले से टकराई, वैसे ही उसमें जबरदस्त विस्‍फोट हो गया।

धमाका इतना भयंकर था कि बस के परखच्चे उड़ गए। इसके बाद घात लगाए आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इस हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हो गए। शहीद हुए इन जांबाजों ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
लेकिन, यह कोई फिल्म का सीन नहीं था। यह मौत का नंगा नाच था। देश के आन बान और शान पर कायराना हमला था। ऐसा हमला जो पूरे देश के युवाओं, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को आक्रोशित कर दिया था। सबके खून में उबाल था। हर भारतीय किसी भी कीमत पर दोषियों से बदला लेना चाहता था। ठीक वैसे ही जैसे इन जवानों के साथ हुआ था।
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बेटे की मौत की खबर TV पर देखी थी, उसके बाद कभी टीवी नहीं देखी

मां राजमती देवी ने बताया कि जिस दिन यह हमला हुआ था। उस दिन हम सबको टीवी के माध्यम से ही सबसे पहले जानकारी मिली। जिस टीवी पर बेटे की मौत की खबर सुनी थी उस टीवी को4 साल हो गए दुबारा कभी नहीं देखा और न ही कभी देख पाउंगी।

शादी के समय घर भी नसीब नहीं था, गौना में रमेश ने पूछा- मां बहू कहां रहेगी

रमेश की शादी उनके शहादत से 5 साल पहले हुई थी। जिस समय उनकी शादी हुई उस समय घर के नाम पर सिर्फ बांस-पतलो और घास-फूस से बनी मड़ई थी। शादी के बाद जब रमेश का गौना का तय हुआ तब रमेश ने मुझसे पूछा कि मां बहू कहां रहेगी? तब मैंने किसी तरह से 2 कमरे का पक्का मकान बनवाया। उनके शहादत तक यही मकान था।
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रमेश यादव की पत्नी बेटे आयुष के साथ अपने मायके चंदौली में रहती हैं। उनसे हमने टेलीफोन से बातचीत की। सरकारी सुविधाओं से लेकर उनको मिली नौकरी तक सभी पहलुओं पर बात की। आइए, उनके हिस्से की कहानी को जानते हैं…

रमेश की पत्नी रेनू यादव ने पत्रिका से बातचीत के दौरान बताया कि पति के खोने के दुःख को सरकारी पैसे और नौकरी से नहीं भरा जा सकता। एक बेटा है। वही रमेश की आखिरी निशानी है। उसमें ही रमेश क देखने की कोशिश करती हूं। पढ़ लिख कर वह देश के प्रगति में अपना योगदान दे सके यही हमारी इच्छा है।

रेनू को राज्य सरकार से वाराणसी के जिलाधिकारी कार्यालय में बड़े बाबू की नौकरी मिली है। मायके से ही वह ऑफिस आती-जाती हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार और LIC से जितने पैसे सभी सभी जवानों के परिजनों को मिले उतने उनको भी मिले हैं। केंद्र और राज्य सरकार ने सभी शहीद जवानों को 25-25 लाख रुपए दिए थे।
 
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जिस ग्राउंड पर दौड़ लगाते थे वहां से रिपोर्ट, लड़के बोले- दौड़ने में वो एक्सीलेंट थे

अपने गांव तोफापुर से 3 किलोमीटर दूर बरियासनपुर के जिस ग्राउंड पर रमेश यादव दौड़ने के लिए जाते थे। हम उसी ग्राउंड पर पहुंचे और डिफेंस की तैयारी कर रहे युवाओं से बातें की। शाम के 5 बज रहे थे। ग्राउंड पर कोई वॉलीबॉल खेल रहा था तो कोई दर्द मिटाने के लिए तेल से मालिश करवा रहा था।

10 से 15 की संख्या में बैठे लड़कों का एक ग्रुप बैठा हुआ किसी मुद्दे पर चर्चा कर रहा था। हमारे वहां पहुंचते ही सभी सवालिया लहजे में हमारे तरफ देखने लगे। किसी अनजान चेहरे को अपने बीच देखकर कुछ पूछना चाह रहे थे लेकिन संकोचवश पूछ नहीं पा रहे थे।
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साइलेंस को ब्रेक करते हुए मैंने उन सबका परिचय पूछा और एक-एक करके कहानियों और किस्सों में उतरने लगा। बातचीत के दौरान लड़कों ने बताया कि रमेश भैया ग्राउंड पर एक्सीलेंट दौड़ते थे। बहुत मेहनती थे।जीते जी उनका जीवन कष्ट में बीता उनके जाने के बाद उनके माता-पिता का कष्ट में बीत रहा है। बेटे की याद ने उनको अंदर से तोड़ दिया है।

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