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वाराणसी

बाल गंगाधर तिलक ने 123 साल पहले काशी में की थी गणेशोत्सव की शुरुआत

-2 सितंबर से शुरू हो रहा है गणेशोत्सव – अब भव्यता की ओर पहुंच चुका है यह उत्सव-दर्जनों स्थान पर मनाया जाता है गणेशोत्सव-सभी को जोड़ना, सामाजिक कुरीतियो को दूर करना है इसका लक्ष्य-जन-जन में राष्ट्र प्रेम जगाना है इस महा उत्सव की परंपरा
– घासी टोला में लोकमान्य सार्वजनिक श्री गणेशोतस्व समिति मनाएगा 21वां उत्सव

वाराणसीSep 01, 2019 / 03:07 pm

Ajay Chaturvedi

श्री गणेश

श्री गणेश

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. वो स्वातंत्र्य आंदोलन का दौर था, अग्रेजी हुकूमत ने रैली निकालने पर पाबंदी लगा रखी थी। ऐसे में आंदोलन को गति देने का नायाब तरीका खोज निकाला लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने। उन्होंने पुणे में गणेशोत्सव की शुरूआत की। श्री गणेश का उत्सव जगह-जगह मनाया जाने लगा। इसके माध्यम से स्वतंत्रता का बिगुल फूंका जाने लगा। लेकिन लोकमान्य तिलक का केवल यही मकसद नहीं था। उनका मकसद इस उत्सव के माध्यम से कुरीतियों को जड़ से समाप्त करना भी था। लोगों को आपस में जोड़ना भी था। ऐसे में यह उत्सव पुणे से बाहर भी ले जाना था। इसी कड़ी में वह बनारस भी आए और 123 साल पूर्व धर्म नगरी काशी में गणेशोत्सव की शुरूआत की।

भोले शंकर की नगरी में 123 साल पहले लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव की शुरूआत की। इसके तहत सबसे पहले गठित हुई काशी गणेशोत्सव समिति। ब्रह्मा घाट पर सरदार आंद्रे का बाड़ा में पहली बार 1896 में गणेशोत्सव मनाया गया। इस बार 123वीं वर्षगांठ मना रही है काशी गणेशोत्सव समिति। भव्य रूप में इसे मनाया जाता है। विविध प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं। विविध सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। मकसद एक ही है समूचे समाज को एक सूत्र में पिरोना।
वक्त के साथ लोकमान्य तिलक द्वारा काशी में शुरू गणेशोत्सव का प्रचलन बढता गया। धीरे-धीरे कई संस्थाएं आगे आईँ। बनारस में गणेशोत्सव से शिद्दत से जुड़े डॉ उपेंद्र विनायक सहस्त्रबुद्धे बताते हैं कि काशी में 123 साल पहले गणेशोत्सव का आगाज तो हो गया पर यह उत्सव अपने उद्देश्य में पूर्णतया सफल नहीं हो सका। वजह इसे जितना प्रचार प्रसार मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। हालांकि इन लगभग सवा सौ साल में कई संस्थाएं आगे आईं पर दायरा सीमित रहा। वजह ये भी रही कि गणेशोत्सव परंपरागत रूप में विशुद्ध आध्यात्मिक अंदाज में पूरे अनुशासन में मनाया जाता रहा। इसे अन्य धार्मिक जलसों की तरह नहीं मनाया जाता था। वह बताते हैं कि इसकी लोकप्रियता में कमी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 75वें साल में जब पंडित कमलापति त्रिपाठी समारोह में बतौर मुख्यमंत्री आए तो उन्हें यह कहना पड़ा कि मेरी भी उम्र 75 साल है पर मुझे यह आज तक पता ही नहीं चला कि काशी में इतने भव्य स्वरूप में गणेशोत्सव भी मनाया जाता है।
वह बताते हैं कि धीरे-धीरे वक्त बीतता गया, 1998 में लोकमान्य सार्वजनिक श्री गणेशोत्सव शुरू हुआ। इसका उद्देश्य भी जन-जन को सामाजिक सरोकारों से जोड़ना रहा। बच्चों की तमाम प्रतियोगिताओं का आयोजन शुरू हुआ। स्कूलों को जोड़ा गया। स्कूलों के जुड़ते ही यह उत्सव अपने मकसद में सफल होता दिखने लगा। डॉ सहस्त्रबुद्धे बताते हैं कि आज विभिन्न सरकारें पौध रोपण पर जोर दे रही हैं पर लोकमान्य सार्वजनिक श्री गणेशोत्सव समिति ने 15 साल पहले गणेशोत्सव में आयोजित विविध प्रतियोगिताओं के प्रितभागियों और विजेताओं को पुरस्कार स्वरूप पौधा देने की परंपरा शुरू की। वह कहते हैं कि पहले साल लोगों ने इस पर आश्चर्य जताया कि ये कौन सी परंपरा है। बच्चे पौधों को फेंक देंगे। ये पौधे सूख जाएंगे। पर तीसरे साल ही परिणाम नजर आने लगा, जब पुरस्कृत बच्चे यह कह कर पौधे बदलने का आग्रह करने लगे कि यह तो वो लगा चुके हैं, कोई दूसरा पौधा दिया जाए। यानी शहर को हरा-भरा करने की एक छोटी कोशिश कामयाब होती दिखी।
डॉ उपेंद्र विनायक सहस्त्रबुद्धे ने पत्रिका से विशेष बातचीत में बताया कि संस्था का यह उत्सव अब किसी एक स्थान पर नहीं अपितु अलग-अलग स्थान पर मनाया जाता है। यह 21वां साल है, इस बार इसकी शुरूआत 2 सितंबर को संस्था के घासी टोला स्थित कार्यालय में श्री गणेशजी की रजत प्रतिमा पूजन से होगी। परंपरागत रूप से 56 भोग लगाए जाएंगे। शाम को दूर्वार्चन व अभिषेक होगा। पांच दिवसीय आयोजन के तहत 3 सितंबर को पत्रकारपुरम परिसर में गणेश यंत्र का सामूहिक पूजन व अभिषेक होगा। अगले दिन 4 सितंबर को शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर 21 शिक्षकों सहित रंगमंच, संगीत, पत्रकारिता तथा समाजसेवा सहित विविध क्षेत्रों के लिए लगभग तीन दर्जन विशिष्ट लोगों को कार्यश्री सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इसमें 21 अध्यापक होंगे। यह आयोजन दुर्गा चरण गर्ल्स इंटर कॉलेज में दिन के 10.30 बजे से होगा। फिर 5 सितंबर को 10.30 बजे चितईपुर स्थित डैजलिंग डायमंड स्कूल में गणेश यंत्र का पूजन और अभिषेक होगा। अंतिम दिन 6 सितंबर को घौसाबाद स्थित गोपीचंद जी आवास पर गणेश प्रतिमा का सामूहिक पूजन व अभिषेक होगा।

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