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वाराणसी

लॉकडाउन की कोठरी में काली हो गई बनारसी पान की सुर्ख लाली

बनारसी पान की मिठास उसकी लाली महज स्वाद और रंग ही नहीं है, बल्कि काशी की संस्कृति का अंग है।

वाराणसीApr 03, 2020 / 01:12 pm

Neeraj Patel

लॉकडाउन की कोठरी में काली हो गई बनारसी पान की सुर्ख लाली

लॉकडाउन की कोठरी में काली हो गई बनारसी पान की सुर्ख लाली

आशीष शुक्ला

वाराणसी. ये शहर गलियों, मंदिरों, घाट, गंगा आरती और बनारसी साड़ी के लिए ही नहीं प्रसिद्ध हैं, बल्कि एक और चीज़ है जो दुनिया के दूसरे शहरों से बनारस को जुदा बनाती है और वो है ‘बनारसी पान। इस पान की मिठास उसकी लाली महज स्वाद और रंग ही नहीं है, बल्कि काशी की संस्कृति का अंग है। पर लॉकडाउन की मार देखिये, बनारसी पान की लाली भी आज घर-घर की कोठरियों में काली हो रही है।

बनारसी पान के कारोबार का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि यहां से पान की आपूर्ति पूर्वांचल समेत बिहार, बंगाल,उड़ीसा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र समेत देश के कई राज्यों में है। लॉकडाउन के कारण बनारसी पान का कारोबार ठप हो गया है। तीन चार पीढ़ियों से इस कारोबार में जुटे शहर के हज़ारों लोग इंतज़ार कर रहे हैं की जल्द उन्हें इस मुश्किल से मुक्ति मिले।

अचानक लॉकडाउन से लाखों का चूना लगा

पान का कारोबार करने वाले अनिल चौरसिया ने बताया की यहां पूर्वांचल की सबसे बड़ी पान मंडी है। बनारस में कई राज्यों से कच्चा पान (हरे पान) का आयात होता है। हर रोज 10 ट्रक पान बाहर से आकर उतरता है। यहां उस पान को कोयले की आंच पर बनाया जाता है। जिसके बाद इसपर सफेद, पीला या गुलाबी सा रंग चढ़ता है। दो हज़ार से अधिक परिवारों का ये पुस्तैनी धन्धा है। जिसमें एक लाख से अधिक कारीगर भी काम करते हैं। जो पान को बनारसी पान का रंग देते हैं। यहीं से पूरे पूर्वांचल में पान की सप्लाई होती है। पर अचानक लॉकडाउन के कारण बाहर से आये हरे पान घरों में डंप हो गए। हर पान के काम में लगे लोगों के लाखों रुपये पत्ते में नष्ट हो गए।

बनारसी पान पर दोहरी मार

पान विक्रेता संघ और पानदरीबा आढ़त से जुड़े दिनेश कहते हैं की बनारस की एक बड़ी आबादी पान कारोबार से जुड़ी है। हर कदम पर पान की दुकानें हैं। बनारसी पान के पत्ते की सप्लाई करने वाले तो मार ही खाये, शहर के पचास हज़ार से अधिक दुकानदार भी रोटी रोजी के संकट से गुजरने को मजबूर हैं। अप्रैल मई का महीना ही सबसे बड़ा सीजन होता था। लगन बारात त्योहार सब की भीड़ पान की मांग औऱ रंगत बढाती थी। हम इस सीजन में साल भर की कमाई कर लेते थे पर लग रहा ये साल बर्बाद हो जाएगा।

कारोबारियों पर 15 करोड़ की चोट

1952 में रजिस्टर्ड बनारस की सुप्रसिद्ध श्री बरई सभा काशी के महामंत्री अंजनी बरई कहते हैं की इस लॉकडाउन में बनारसी पान को 15 करोड़ का नुकसान हुआ है। इसके साथ ही पान में लगने वाले सामान जैसे खास, मुकम्मर, गुलाब जल , पीला जर्दा किमाम गुलकंद जैसे सामान भी फेकने होंगे, क्योंकि अब 21 दिन बाद ये बेस्वाद हो जाएंगे। इसकी कीमत भी बहुत अधिक है।

10 बरॉयटी खाने वालों का सहारा बनी कच्ची और केशर

बनारस में पान खाने वाले ऐसे भी शौकीन हैं जो दिन में अलग अलग राज्यों के पत्ते खाते और लपेटवा के ले जाते। उनकी पोटली में ना ना करते मघई, पारादीपी, सांची, जगन्नाथी, चंद्रकला, मोहनपुरी, मिदनापुरी, मिठुआ, जबलपुरी देशी जैसे पान के तमाम ब्रांड मिल मिल जाते जो हर थोड़ी देर में मुँह में घुलाये जाते थे। पर लॉकडाउन के बाद पप्पू दूबे और राम निरंजन सिंह कहते हैं की गुरु मुँहवा के त जैसे हरण होई गइल बा। जिंदगी में ऐसा दिन आएगा नहीं सोचा था। अब कच्ची सुर्ती या केशर गुटखा दबा के काम चला रहे है।

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