कांग्रेस की रणनीति है कि पर्याप्त समय रहते ही यूपी में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया जाए, ताकि लोग उसे अच्छी तरह जान समझ सकें। इसमें और कोई नाम पार्टी के पास है नहीं। और कोई ऐसा चेहरा है नहीं जिसके दम पर पार्टी विधानसभा चुनाव में उतर कर अच्छी लड़ाई लड़ सके। ऐसे में प्रियंका गांधी को ही सीएम के चेहरे के रूप में पेश किया जाएगा।
वैसे भी पहले पूर्वांचल प्रभारी फिर यूपी प्रभारी के रूप में वह काम कर ही रही हैं। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद उन्होंने जिस तरह से पहले सोनभद्र नरसंहार प्रकरण को लपका और विपक्षियों को मात दी उसने पार्टी को प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में काफी आगे खड़ा कर दिया। जिस अंदाज में वह उम्भा प्रकरण के तत्काल बाद यानी दो दिन बाद ही पीडि़तों से मिलने बनारस आईँ, यहां से सोनभद्र कूच किया। भले ही शासन-प्रशासन को उन्हें रोकना पड़ा लेकिन वह भी खुद प्रियंका गांधी और कांग्रेस के पक्ष में ही गया। फिर विपक्ष में रहते उम्भा प्रकरण के मृतकों को 10-10 लाख रुपए और गंभीर रूप से घायलों को 1-1 लाख रुपये सहायता राशि कांग्रेस ने दी। उसके बाद वादे के मुताबिक प्रियंका खुद 13 अगस्त को सोनभद्र गईं और एक-एक पीड़त से मिल कर उनका दुःख बांटा। उनकी हर संभव मदद की घोषणा की। वह खुद उनके और पार्टी के हित में जाता दिख रहा है, ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है।
ये भी पढें-पूर्वाचल की 27 सीटें, मिली थी 1, जमीन तैयार करने के लिए प्रियंका कर रही सोनभद्र का दौरा राजनीतिक विश्लेषक बताते है कि उम्भा प्रकरण ही क्यों, उन्नाव प्रकरण को भी जिस तरह से प्रियंका ने कैश किया वह भी उनकी दूर दृष्टि और कूटनीतिक चाल को दर्शाता है। बतौर महिला नेता प्रियंका ने प्रदेश की बेटी के लिए जो जज्बात दिखाए वह और कोई नहीं दिखा पाया। उनके निर्देश पर पूरे प्रदेश भर में उन्नाव पीड़ित के समर्थन में कांग्रेस के लोगों ने धरना, प्रदर्शन, कैंडिल मार्च किए। बनारस में तो हवन-पूजन तक किया गया।
ये भी पढें-#patrikaNews#Justice for Unnao rape victim- कांग्रेस की मुहिम से जुड़ने लगे लोग, हस्ताक्षर को लगने लगी भीड़ अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि प्रियंका के नेतृत्व में ही यूपी में कांग्रेस कुछ कर सकती है। वही डूबते को तिनके का सहारा हैँ। फिर जिस तरह से प्रियंका गांधी ने पूरे यूपी की संगठनात्मक इकाइयों को भंग किया और अब नए सिरे से हर जिले के एक-एक सक्रिय कार्यकर्ता से व्यक्तिगत तौर पर मिल कर फीडबैक ले रही हैं, उससे कांग्रेसियों में भी उत्साह का माहौल बना है।
ये भी पढें-#PatrikaNews-युवाओं को पार्टी से जोड़ने की नई कवायद में जुटी कांग्रेस वैसे भी अमेठी और रायबरेली में जिस तरह से प्रियंका ने बूथ स्तर पर कांग्रेस को खड़ा किया है। ठीक वैसे ही जैसे भाजपा ने देश भर में बूथ कमेटियों को सक्रिय कर रखा है। उससे ये लगता है कि प्रियंका का सारा जोर फिलहाल 2022 के चुनाव से पहले हर जिले में सक्रिय बूथ कमेटियों का गठन करना चाहती हैं। जिला व शहर इकाइयों में, विधानसभा इकाइयों में सक्रिय, कर्मठ युवाओं और महिलाओं को तरजीह देना चाहती हैं। राजनीतिक विश्लेषक इन सभी बातों के आधार पर प्रियंका को बेहतर नेता साबित कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रियंका को अगर सीएम का चेहरा बनाया जाता है तो न केवल पार्टी में उत्साह आएगा बल्कि आमजन के बीच पार्टी की विश्वसनीयत बढेगी और बीजेपी का विकल्प तलाशने वालों के लिए रास्ता आसान हो पाएगा। दरअसल, पार्टी के निशाने पर मुस्लिम और सवर्ण मतदाता हैं। रणनीति यह है कि मुस्लिम और सवर्ण मतदाताओं के सामने कांग्रेस को बीजेपी के विकल्प के तौर पर पेश किया जाए। पार्टी की सोच है कि आने वाले दिनों में सवर्ण मतदाता बीजेपी से नाराज होकर कांग्रेस की तरफ ही रुख करेंगे।
उधर कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि पार्टी की रणनीति है कि समय से पहले ही जनता के सामने एक मजबूत चेहरा देकर बीजेपी को चुनौती दी जाए। साथ ही बीजेपी के मुकाबिल मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में कांग्रेस को पेश किया जाए। सूत्र बताते हैं कि इसी के तहत पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने भी चुनाव से ढाई साल पहले से ही चुनाव संचालन समिति का अध्यक्ष और मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा करने का निर्णय लिया है। ये दोनों जिम्मेदारी प्रियंका को ही सौंपने का फैसला लिया गया है।
रणनीति के तहत आने वाले दिनों में हर छोटे-छोटे मुद्दों पर प्रियंका गांधी न केवल त्वरित प्रतिक्रिया देती दिखेंगी बल्कि जमीनी संघर्ष और जरूरत पड़ने पर जेल तक जाने को तैयार नजर आएंगी।