क्यों मनाई जाती है देव दीपावली?
तीनों लोक त्रिपुरासुर दैत्य के आतंक से आतंकित था। देवताओं पर अत्याचार और उनकों तप को रोकने के लिए त्रिपुरासुर ने स्वर्ग लोक पर भी अपना कब्जा जमा लिया था। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था। उसके तप से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा ने उसे दर्शन दिया। त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव ,जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया था। विष्णु ने भी त्रिपुरासुर से लड़ने के लिए मना कर दिया था, क्योंकि कोई भी देव उसकी मृत्यु का कारण नहीं बन सकता था। विष्णु के कहने पर देवता ब्रह्मा जी से मिले।
तीनों लोक त्रिपुरासुर दैत्य के आतंक से आतंकित था। देवताओं पर अत्याचार और उनकों तप को रोकने के लिए त्रिपुरासुर ने स्वर्ग लोक पर भी अपना कब्जा जमा लिया था। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था। उसके तप से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा ने उसे दर्शन दिया। त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव ,जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया था। विष्णु ने भी त्रिपुरासुर से लड़ने के लिए मना कर दिया था, क्योंकि कोई भी देव उसकी मृत्यु का कारण नहीं बन सकता था। विष्णु के कहने पर देवता ब्रह्मा जी से मिले।
ब्रह्मा जी ने देवताओं को त्रिपुरासुर के अंत का रास्ता बताया। देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे और उनसे त्रिपुरासुर को मारने के लिए प्रार्थना की। तब महादेव ने त्रिपुरासुर के वध का फैसला किया। महादेव ने तीनों लोकों में दैत्य को ढूंढ़ा। चतुर त्रिपुरासुर को ये पता चल चुका था कि महादेव उसे तलाश रहे हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया। उसी दिन देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीपावली मनाई। तभी से ये परंपरा काशी में चली आ रही हैं ।