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वाराणसी

Indus Valley Civilization: शाकाहारी थे सिंधु घाटी सभ्यता के लोग, कैम्ब्रिज और बीएचयू की ज्वाइंट रिसर्च में दावा

2007 से दोनों विश्वविद्यालय सभ्यता के पतन की असल वजह जानने में जुटे हैं
13 साल के गहन शोध के बाद सामने आए कई चौंकाने वाले तथ्य

वाराणसीJan 19, 2021 / 07:40 pm

रफतउद्दीन फरीद

Indus Vally

सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
वाराणसी. सिंधु घाटी सभ्यता का अंत आर्यों के हमले से नहीं बल्कि माॅनसून की कमी के चलते हुआ था। इसके अलावा इस सभ्यता के लोग शाकाहारी थे। ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं काशी हिंदू विश्व विद्यालय और इंग्लैंड की युनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज के संयुक्त शोध में। दोनों चोटी के विश्वविालय मिलकर 2007 से सिंधु घाटी सभ्यता के पतन की असल वहज को जानने में जुटे हैं। 2007 में कैम्ब्रिज के डाॅक्टर कैमरा एन पैट्री और बीएचयू के आर्कियोलाॅजी विभाग के बीच इसके लिये ज्वाइंट रिसर्च का समझौता हुआ था।

 

डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलाॅजी बीएचयू के प्रोफेसर आरएन सिंह के मुताबिक 13 साल के गहन शोध के बाद कई बातें निकलकर सामने आयी हैं। उन्होंने बताया कि कई बार दावे किये गए हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मांसाहारी थे, पर ये गलत हैं। जैसे-जैसे रिसर्च आगे बढ़ रही है चौंकाने वाले नतीजे सामने आ रहे हैं। उनके मुताबिक उस दौरान महज कुछ फीसदी लोग ही मांसाहारी थे। खोदाई के दौरान वहां से मिले मिट्टी के बर्तनों की रेडियो कार्बन डेटिंग और एएमएस कार्बन डेटिंग में मांस पकाने के बेहद कम साक्ष्य मिले हैं। बल्कि बर्तनों की कार्बन डेटिंग से पता चला है कि इस सभ्यता के लोग शाकाहारी थे और वो लोग चावल, गेहूं और मिर्च जैसी चीजों की खेती करते थे।

 

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प्राेेे. आर एन सिंह, डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलाॅजी बीएचयू IMAGE CREDIT:

 

आरएन सिंह ने बताया कि सभ्यता का पतन आर्यों के हमले से नहीं हुआ था। रिसर्च से जो नई जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक करीब 200 साल तक माॅनसून की कमी के चलते ऐसा हुआ। उन्होंने बताया कि 1900 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व तक माॅनसून की भयंकर कमी इस संस्कृति के पतन का कारण बनी।

 

आरएन सिंह ने बताया कि सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बारे में सही जानकारी के लिये दोनों युनिवर्सिटियों के एक्सपर्ट ने महत्वपूर्ण स्थलों का सर्वे किया। खुदाई में हजारों मिट्टी के बर्तन जैसी चीजों के सैम्पल कलेक्ट किये गए हैं। ताजा आंकड़े उनमें से करीब 150 से अधिक बर्तनों के सैम्पल की कार्बन डेटिंग के जरिये इकट्ठा किये गए हैं।

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