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वाराणसी

इस विश्वविद्यालय में जीवित होगी गुरुकुल पंरम्परा, देश में पहली बार होगा शास्त्रार्थ महाकुंभ

विश्व के 100 विद्वान होंगे शामिल, प्राचीन भारतीय परम्परा से ही साबित होती थी विद्वानों की श्रेष्ठता

वाराणसीJul 10, 2019 / 08:41 pm

Devesh Singh

Sampurnanand sanskrit University VC pro Rajaram Shukla

Sampurnanand sanskrit University VC pro Rajaram Shukla

वाराणसी. प्राचीन भारत में शास्त्रार्थ का बहुत महत्व होता था। किसी भी विद्वान को अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए शास्त्रार्थ में विजयी होना आवश्यक होता था लेकिन समय के साथ यह मूल्यवान परम्परा खत्म होती गयी थी। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ने फिर से अपनी गौरवशाली परम्परा को जीवित करने की तैयारी की है। बुधवार को विश्वविद्यालय के वीसी प्रो. राजाराम शुक्ला ने बताया कि 12 जुलाई ने इंटरनेशनल शास्त्रार्थ महाकुंभ का आयोजन किया गया है। इस महाकुंभ में देश व विदेश के 100 से अधिक विद्वान शामिल होंगे।
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वाइसचांसलर प्रो.राजाराम शुक्ला ने बताया कि आधुनिक समय में देश में पहली बार ऐसा आयोजन किया जा रहा है। परिसर के बहुत छात्र ऐसे हैं जो अध्ययन करने के बाद विदेशों में अपनी प्रतिभा का प्रकाश फैला रहे हैं। शास्त्रार्थ महाकुंभ में उन पूर्व छात्रों भी आमंत्रित है। महाकुंभ में वर्मा, नेपाल, भूटान, इटली, श्रीलंका म्यांमार व मॉरीशस से ही करीब 20विद्वान आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त देश के नामी विद्वान भी इस महाकुंभ में शिरकत करेंगे।
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कुलपति व पूर्व कुलपति भी लेंगे भाग, देश के इन राज्यों से आयेंगे विद्वान
वीसी प्रो.राजाराम शुक्ल ने बताया कि शास्त्रार्थ महाकुंभ में आधा दर्जन से अधिक कुलपति व पूर्व कुलपति भी शामिल होंगे। महाकुंभ में मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, , यूपी, बिहार, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल सिक्किम आदि प्रदेशों के विद्वान भी भाग ले रहे हैं। महासम्मेलन में वाक्यार्थ सभा, गुरुकुल परम्परा व अष्टावधान मित्रविंदा परम्परा का आयोजन होगा। उन्होंने कहा कि हम लोगों का उद्देश्य भारतीय शिक्षा पद्धति रही गुरुकुल परम्परा को फिर से नया जीवन देना है। विद्वान जब धनुर्वेदों, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, वेदांत, वैशेषिक दर्शन, ज्योतिष, भारतीय गणित पर विद्वान जब शास्त्रार्थ करेंगे तो नवीन जानकारी भी सामने आयेगी। उन्होंने कहा कि शास्त्रार्थ महाकुंभ में दो अतिविशिष्ठ विद्वान आचार्य मणि शास्त्री द्रविड़ व आचार्य देवदत्त पाटिल को सम्मानित व पुरस्कृत किया जायेगा। इन दोनों विद्वानों ने कर्नाटक व महाराष्ट्र में 100से अधिक विद्यार्थियों को गुरुकुल पद्धति से तैयार कर प्राचीन भारतीय परम्परा रक्षा की है।
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