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मुलायम सिंह यादव व शिवपाल यादव का यूपी की राजनीति में अपना प्रभाव है। शिवपाल यादव की बात की जाये तो पूर्वी यूपी से अधिक पश्चिम यूपी में उनकी ताकत दिखती है। यह बात शिवपाल भी जानते हैं इसलिए पूर्वी यूपी में अपनी पार्टी को खड़ा करने के लिए अधिक मेहनत कर रहे हैं। अखिलेश यादव व मायावती के गठबंधन में पश्चिम की अधिक सीट बसपा को मिली है जबकि पूर्वी यूपी की अधिक सीटे सपा के पास आयी है। सीटों के इसी बंटवारे से शिवपाल यादव को बड़ा मौका मिल गया है। पश्चिम यूपी में सपा व बसपा गठबंधन से नाराज कार्यकर्ता व नेताओं को साधने में शिवपाल यादव जुट गये हैं। सपा को सबसे अधिक समर्थन यादव समाज का मिलता है। यादव वर्ग के जो नेता सपा व बसपा गठबंधन या सपा की सीट बसपा में जाने से नाराज है वह शिवपाल यादव के साथ आ सकते हैं यदि ऐसा हुआ तो अखिलेश यादव को सबसे बड़ा झटका लगना तय है। सपा के कैडर वोटों में बंटवार हो जाने से शिवपाल यादव की ताकत बढ़ जायेगी। लोकसभा से अधिक यूपी में २०२२ में होने वाले विधानसभा चुनाव में शिवपाल यादव को इसका अधिक फायदा मिलेगा।
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बसपा ने पश्चिम यूपी की सीटों को ज्यादा पसंद किया है जबकि पूर्वांचल की कई सीटों पर बसपा 2014 में द्वितीय स्थान पर थी लेकिन अब इन सीटों पर सपा चुनाव लडऩे वाली है। पूर्वांचल की मिर्जापुर, चंदौली, महाराजगंज, राबट्र्सगंज सीट पर बसपा दूसरे स्थान पर थी इन सीटों पर अब सपा प्रत्याशी उतारेगी। इसके अतिरिक्त सपा को पश्चिम यूपी की हाथरस, बांदा, खीरी, हरदोई सीट भी दी गयी है। सपा के लिए सबसे अधिक परेशानी का सबब पश्चिम यूपी की सीट हो सकती है जहां पर शिवपाल यादव के पास पहले से अपना जनाधार है और वह सपा नेताओं को जोड़ कर कहानी बदलने में लगे हुए हैं।
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