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अखिलेश यादव के सबसे करीबी इस दिग्गज राजनेता ने फिर सैकड़ों लोगों को पछाड़कर जीत लिया पार्टी का भरोसा

कुशल रणनीतिकार कहे जाने वाले नरेश को पार्टी संगठन और कैडर जोड़ने में भी मुलायम सिंह ने हमेशा साथ रखा

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अखिलेश यादव के सबसे करीबी इस दिग्गज राजनेता ने फिर सैकड़ों लोगों को पछाड़कर जीत लिया पार्टी का भरोसा

वाराणसी/ फतेहपुर. एमएलसी चुनाव के लिए सोमवार को समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी और सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने नामांकन दाखिल कर एक बार फिर साबित कर दिया कि मुलायम के बाद अखिलेश यादव की अध्यक्षता में भी नरेश उत्तम का कद समाजवादी पार्टी में बहुत उंचा है। जहां अखिलेश यादव यादव ने चाचा शिवपाल के हाथों से 2017 प्रदेश अध्यक्ष का पद छीनकर नरेश को थमा दिया था वहीं वहीं सैकड़ों धुरंधरों को पीछे करते हुए अखिलेश ने नरेश चंद्र उत्तम को एक बार फिर एमएलसी का उम्मीदवार बनाकर उनपर बड़ा भरोसा जताया है।

कहते हैं कि राजनीति करना कोई आसान काम नहीं होता इसके लिए धनबल और बाहुबल की जरूरत होती है। लेकिन नरेश ने इस मिथक को अपने राजनीति के शुरूआती दिनों में तोड़कर ये साबित कर दिया कि शालीनता और कुशल रणनीति के साथ पार्टी का भरोसेमंद होना भी राजनीति में आपको बड़ा मुकाम दे सकता है। जी हां बेहद ही सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले नरेश उत्तम कि पिता किसान थे। छोटी सी खेती-बारी कर वो अपने घर का गुजारा करते थे। लेकिन राजनीति में आने के साथ सादगी और विवाद से बचने की कला ने नरेश को लगातार बड़ा मुकाम दिया।

मुलाय़म सिंह यादव के बेहद करीबी रहे नरेश उत्तम

जिले के जहानाबाद इलाके के लहुरी गांव के रहने वाले नरेश उत्तम की शुरू से ही राजनीति में दिलचस्पी रही। कुर्मी बिरादरी से आने वाले उत्तम शुरूआती शिक्षा अपने गांव के ही विद्लाय से ली। बाद में उन्होने कानपुर विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई की। मुलायम सिंह जिन दिनों अपनी राजनीतिक उभार के लिए संघर्ष कर रहे थे। उसी दौरान 1980 में नरेश मुलायम के संपर्क में आये। मुलायम के संपर्क में आने के बाद वो सक्रिय राजनीति में आ गये। शालीन व्यवहार संगठन में समय देने और कुशल रणनीतिकार कहे जाने वाले नरेश को पार्टी संगठन और कैडर जोड़ने में भी मुलायम सिंह ने हमेशा साथ रखा। 1989 में पहली बार नरेश उत्तम जनता दल प्रत्‍याशी के रूप में जहानाबाद से विधायक चुने गए थे। 1989 से 1991 के बीच मुलायम सिंह की पहली सरकार में वे मंत्री थे। 1993 में मुलायम के दूसरे कार्यकाल में दौरान उन्‍हें यूपी पिछड़ा आयोग का सदस्‍य बनाया गया और मंत्री पद दिया गया। 2006 और 2012 में भी वे एमएलसी थे।

परिवार की लड़ाई में अखिलेश के साथ खड़े हुए थे नरेश

2017 विधानसभा चुनाव से पहले सपा में जमकर रार चल रही थी। एक तरफ शिवपाल अखिलेश का राजनीतिक कद कम करना चाहते थे त दूसरी तरफ अखिलेश शिवपाल का सपा में राजनीतिक वर्चस्व खत्म कर देना चाहते थे। पूरी पार्टी में हड़कंप मचा था। नरेश उत्तम अखिलेश यादव के साथ खड़े हुए शिवपाल की अपेक्षा अखिलेश को संगठन के बारे में अनुभव कम था लेकिन नरेश ने अखिलेश पूरी मजबूती दी। अखिलेश का कद बढ़ा वो सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये। फिर शिवपाल से कुर्सी छीनकर अखिलेश ने नरेश का सपा प्रदेश अध्यक्ष बनाकर ये साबित कर दिय़ा कि उनकी राजनीति में कितनी अहम भूमिका है।

फूलपुर और गोरखपुर सीट जीत के लिए बनाई शानदार रणनीति

नरेश उत्तम की राजनीतित सूझबूझ को इसी बात से समक्षा जा सकता है कि जिस समय लोगों को लग रहा था कि भाजपा को कहीं भी शिकस्त देना किसी भी दल के लिए आसान नहीं है। उसी समय गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने की आहट हुई। सपा के कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए नरेश लगातार पूरे प्रदेश में संगठन को मजबूत करने में जुटे थे। गैर यादव पिछड़ी जातियों को भाजपा ने एक साल पहले ही साध लिया था। यादव वोटों के सहारे जीत की नैया पार करना आसान न था। ऐसे में सभी पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों का साथ में लाने के लिए अखिलेश यादव के साथ नरेश उत्तम ने नई रणनीति बनाई। गोरखपुर सीट पर निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे को सपा में की टिकट पर मैदान में उतारा तो वहीं फूलपुर सीट पर अपने बिरादरी के युवा नेता नागेन्द्र पटेल को टिकट देकर सबको चौंका दिया। उधर बसपा का समर्थन मिला तो सपा मजबूती के साथ मैदान मारने में जुट गई। नरेश ने सपा के कार्यकर्ताओं को बसपा वोटरों को बूथ तक पहुंचाने के लिए तैयार कर लिया। उसका परिणान ये रहा कि दोनों ही सीटों पर जीतकर सपा ने पूरे देश को ये संदेश दिया कि भाजपा को आसानी से हराया जा सकता है।