राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी की सियासत में 2014 के बाद से लगातार पिछड़ रहे विपक्ष के लिए यह सुनहरा मौका था। विपक्ष का शीर्ष नेतृत्व अपनी पूरी ताकत झोंक कर योगी सरकार को हरा कर अपना वर्चस्व कायम कर सकता था। विधानसभा में अपनी सीटें बढ़ा सकता था लेकिन यह मौका भी उन्होंने जाया किया। यह दर्शाता है कि वो अपने लोगों के लिए कितने संवेदनशील हैं। लोकतंत्र की रक्षा का शोर मचाने वाले ये नेता लोकतंत्र के प्रति कितने संजीदा हैं।
जहां तक समाजवादी पार्टी का सवाल है तो उसके मुखिया अखिलेश यादव कहीं निकले भी तो सिर्प रामपुर गए जहां तमाम आरोपों में घिरे आजम खां की पत्नी चुनाव लड़ रही हैं। बता दें कि पत्रिका ने शुक्रवार को ही एक खबर चलाई थी जिसमें बताया था कि सपा सुप्रीमों अखिलेश की इस रणनीति से आम कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं।
अब विधानसभा उप चुनाव के लिए हो रहा प्रचार शनिवार शाम को 6 बजे थम जाएगा। उसके बाद कोई भी प्रत्याशी शोर-शराबा कर प्रचार नहीं कर सकेंगा। 21 अक्टूबर को सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक मतदान होगा। 24 अक्टूबर को मतगणना होगी।
उत्तर प्रदेश की लखनऊ कैंट, बाराबंकी की जैदपुर, चित्रकूट की मानिकपुर, सहारनपुर की गंगोह, अलीगढ़ की इगलास, रामपुर, कानपुर की गोविंदनगर, बहराइच की बलहा, प्रतापगढ़, मऊ की घोसी और अंबेडकरनगर की जलालपुर विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं।
प्रदेश की जिन 11 सीटों पर 21 अक्टूबर को मतदान होना है, उनमें सबसे ज्यादा चर्चा मऊ की घोसी सीट की हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि बीजपी ने इस सीट से सब्जी बेचने वाले के बेटे को अपना उम्मीदवार बनाया है। घोसी सीट से बीजेपी के प्रत्याशी विजय राजभर हैं। विजय राजभर को फागू चौहान के बेटे का टिकट काटकर उम्मीदवार बनाया गया है।
उधर सपा के मऊ की घोसी सीट से प्रत्याशी का और रालोद के अलीगढ़ के इगलास सीट से प्रत्याशी का पर्चा खारिज हो गया था। अचानक लगे इस झटके से उबरने के लिए समाजवादी पार्टी ने फौरन नई रणनीति अपनाई और उसी प्रत्याशी को निर्दलीय के तौर पर समर्थन दे दिया।