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वाराणसी

काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी परिसर के सर्वेक्षण मामले में सुनवाई पूरी, 8 अप्रैल को आएगा फैसला

-मांगी गयी जानकारी जो जमीन है, वह मंदिर का अवशेष है या नहीं, ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का मौजूद है या नहीं

वाराणसीApr 03, 2021 / 05:58 pm

Mahendra Pratap

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क

वाराणसी. काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद परिसर (Kashi Vishwanath Gyanwapi campus Decision) का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराए जाने के मामले पर शुक्रवार को बहस पूरी हो गई है। सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत ने दोनों पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद अब आठ अप्रैल को फैसला सुनाएंगे।
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वर्ष 1991 में ज्ञानवापी में नए मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजा पाठ का अधिकार देने के लिए मुकदमा दायर किया गया था। इस मामले में निचली अदालत व सत्र न्यायालय के आदेश को वर्ष 1997 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट से स्टे होने से वाद लम्बित रहा। वर्ष 2019 में सिविल जज सीनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) की कोर्ट में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने अपील दायर किया कि, संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर का भौतिक, पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से राडार तकनीक से सर्वेक्षण कराया जाए। जिसका अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व सुन्नी सेंट्रल वफ्फ बोर्ड ने विरोध जताया।
राडार तकनीक से सर्वेक्षण कराया जाए :- कोर्ट में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वरनाथ के वाद मित्र विजयशंकर रस्तोगी ने दलील देते हुए कहाकि, मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के आराजी नंबर 9130, 9131, 9132 रकबा एक बीघे नौ बिस्वा जमीन है। जिसका पुरातात्विक सर्वेक्षण रडार तकनीक से कर बताया जाए कि जो जमीन है, वह मंदिर का अवशेष है या नहीं। साथ ही विवादित ढांचा का फर्श तोड़कर देखा जाए कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का मौजूद है या नहीं।
खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा :- विजयशंकर रस्तोगी ने कहाकि, दीवारें प्राचीन मंदिर की है या नहीं। रडार तकनीक से सर्वेक्षण से जमीन के धार्मिक स्वरूप का पता चल सकेगा। 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथम तल में ढांचा और भूतल में तहखाना है, जिसमें 100 फुट ऊंचा शिवलिंग है, यह खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा। मंदिर 2050 विक्रमी संवत में राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। फिर सतयुग में राजा हरिश्चंद्र और वर्ष 1780 में अहिल्याबाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया था। विजयशंकर रस्तोगी ने कहाकि, जब औरंगंजेब ने मंदिर पर हमला किया था तब वर्ष 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं था।
कोर्ट का दायित्व शांति बनी रहे :- सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील अभय नाथ यादव ने कहाकि, दावे के अनुसार जब मंदिर तोड़ा गया, तब ज्योतिर्लिंग उसी स्थान पर मौजूद था। जहां आज है। बादशाह अकबर के वित्तमंत्री टोडरमल की मदद से नरायन भट्ट ने मंदिर बनवाया था, जो उसी ज्योतिर्लिंग पर बना है। ऐसे में विवादित ढांचा के नीचे दूसरा शिवलिंग कैसे आ सकता है। इसलिए खुदाई नहीं होनी चाहिए। अभय नाथ यादव ने दलील दी कि, कोर्ट का दायित्व है कि वहां शांति बनी रहे। इसी तरह से सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड से मिलती-जुलती दलीलें अंजुमन इंतजामिया कमेटी की ओर से भी पेश की गई।
वादी-प्रतिवादी के वकीलों के नाम :- कोर्ट में लार्ड विश्वेश्वरनाथ की तरफ से अमरनाथ शर्मा, सुनील रस्तोगी, रितेश राय, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की तरफ से रईस अहमद खान, अफताब अहमद व मुमताज अहमद और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से तौफीक खान कोर्ट में मौजूद रहे। सुनवाई के बाद कोर्ट ने आदेश आठ अप्रैल तक सुरक्षित कर लिया।

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