अमरनाथ यात्रा इस बार 3 जुलाई से शुरू हो रही है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद होने वाली ये यात्रा सुरक्षा के लिहाज से काफी अहम मानी जा रही है। यही वजह है कि केन्द्र की मोदी सरकार और जम्मू कश्मीर की अब्दुल्ला सरकार के लिए कड़े इम्तिहान से कम नहीं है। आतंकी हमले के बाद पैदा हुए डर के कारण इस बार श्रद्धालुओं का रुझान थोड़ा कम हुआ है। दो महीने की बजाय इस बार 38 दिन तक चलने वाली इस यात्रा के लिए अब तक 85 हजार लोगों ने ही रजिस्ट्रेशन करवाया है। इसके बावजूद सुरक्षा मापदंड़ों पर ये अब तक की सबसे कड़ी सुरक्षा निगरानी में होने वाली यात्रा मानी जा रही है। ड्रोन और जैमर से लेकर करीब 50 हजार सैनिक तीर्थ यात्रियों को सुरक्षा प्रदान करेंगे। यात्रा में इस बार काफी बदलाव किया गया है। जिसके तहत पहली बार यात्रियों को अकेले सफर करने की अनुमति नहीं होगी। वो सुरक्षा काफिले के साथ ही सफर कर सकेंगे। लखनपुर से जम्मू तक नेशनल हाइवे 44 मार्ग पूरी तरह सुरक्षा घेरे में रहेगा। इसके साथ ही कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, ताकि निगरानी प्रभावी रूप से की जा सके। गुफा तक जाने वाले दोनों मार्गों पर CRPF, ITBP और जम्मू-कश्मीर पुलिस की टीमें तैनात रहेंगी। ड्रोन से निगरानी और RFID आधारित ट्रैकिंग से यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।